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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४८) अष्टाङ्गहृदयेविदार्यादिरयं हृद्यो बृंहणो वातपित्तहा ॥ शोषगुल्माङ्गमर्दोर्ध्वश्वासकासहरो गणः ॥१०॥ इन औषधोंको विदार्यादिगण कहते हैं, यह सुंदर है, बृंहण है, वात और पित्तको नाशता है और शोष-गुल्म-अंगमर्द-उर्ध्वश्वास-खांसी इन्होंको हरता है ॥ १० ॥ सारिवोशीरकाश्मर्यमधूकशिशिरद्वयम् ॥ यष्टीपरूषकं हन्ति दाहपित्तात्रतज्वरान् ॥११॥ सारिवा अनंतमूल-खस-गंभारी--महुवा-सफेदचंदन-लालचंदन--मुलहटी--फालसा यह सारिवादिगण दाह--रक्तपित्त--तृषा--ज्वर इन्होंको नाशता है ॥ ११ ॥ पद्मकपुण्डौ वृद्धितुगद्धयः शृंग्यमृतादशजीवनसंज्ञाः॥ स्तन्यकराघ्नन्तीरणपित्तं प्रीणनजीवनबृंहणवृष्याः॥१२॥ पीलाकमल--पौडा-वृद्धि--वंशलोचन-ऋद्धि-काकडासींगी-गिलोय-पूर्वोक्त जीवनीयगणके सब औषध-यह पद्मकादिगण दूधको उपजाताहै और वातपित्तको नाशता है और प्रीणन है, जीवन है, बृंहण है और वृष्य, है वीर्यबढाता है ॥ १२ ॥ परूषकं वरा द्राक्षा कट्फलं कतकाफलम् ॥ राजाढे दाडिमं शाकं तृणमूत्रामयवातजित् ॥ १३॥ फालसा-त्रिफला--दाख-कायफल-निर्मलीफल-अमलतास-अनार-शाकवृक्ष-यह परूषकादिगण तृषा-मूत्ररोग--वातको जीतता है ॥ १३ ॥ अञ्जनं फलिनी मांसी पद्मोत्पलरसाञ्जनम् ॥ सैलामधुकनागाढ विषान्तर्दाहपित्तनुत् ॥ १४ ॥ दोनों प्रकार के अंजन अर्थात् सुरमा--प्रियंगु--जटामांसी- कमल--कुमोदिनी--रसोत--इलायचीमुलहटी-नागकेसर यह अंजनादि गण विष-अंतर्दाह-पित्तको नाशता है ॥ १४ ॥ पटोलकटुरोहिणी चन्दनं मधुस्रवगुडूचिपाठान्वितम् ॥ निहन्तिकफपित्तकुष्ठज्वरान् विषंवमिमरोचकंकामलाम॥१५॥ परवल-कुटकी-चन्दन-गंधसार-गिलोय-पाठा-यह पटोलादिगण कफ-पित्त-कुष्ठ-ज्वर विष-छर्दि-अरोचक--कामलाको नाशता है ॥ १५ ॥ गुडूचीपद्मकारिष्टधानका रक्तचन्दनम् ॥ पित्तश्लेष्मज्वरच्छर्दिदाहतृष्णानमग्निकृत् ॥ १६ ॥ गिलोय-पद्माक-नींब-धनियां-रक्तचंदन--यह-गुडूच्यादिगण पित्त-कफ-ज्वर-छर्दि-दाह-तृषाको नाशता है और जठराग्निको करता है ॥ १६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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