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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४६) - ‘अष्टाङ्गहृदयेदोषगत्यातिरिच्यन्ते ग्राहिभेद्यादिभेदतः ॥ उपक्रमा न ते द्वित्वाद्भिन्ना अपि गदा इव ॥ ३७॥ संसर्ग और सन्निपातोंके अत्यन्त भेदकरके अनंतपनेको प्राप्त हुये और पृथक रूपोंवाले दोषोंकी गतिकरके और ग्राही तथा भेदीआदि भेदसे बहुतसे उपक्रम अर्थात् चिकित्सा क्रम हैं परंतु ये सब उपक्रम लंघन और संतर्पणकरके भिन्न नहीं हैं, अर्थात् अनंतप्रकारवालेभी उपक्रम अपतर्पण और संतर्पण भेदकरके दो प्रकारके हैं, जैसे वातआदि दोषोंके वशसे अनेक प्रकारवाले ज्वरआदि रोग बृंहणपना-लंघनपना-साध्यपना-सामपना-निरामपना-इन्होंको नहीं उल्लंधित करते हैं तैसे उपक्रमभी हैं ।। ३७ ॥ इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताष्टांगहृदयसहिताभाषाटीकायां सूत्रस्थाने चतुर्दशोऽध्यायः ॥ १४॥ --- 0 39300 पंचदशोऽध्यायः। अथातः शोधनादिगणसंग्रहमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर शोधनादिगणसंग्रहनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। मदनमधुकलम्बानिम्बबिम्बीविशाला पुसकुटजमूर्वादेवदालीकृमिघ्नम् ॥ विदुलदहनचित्राः कोशवत्यौ करञ्जः कणलवणवचैलासर्षपाश्छर्दनानि॥१॥ मैनफल-मुलहटी अथवा महुवा-तुंबी-नींब-बिंबीफल-इंद्रायण-कडुवी काकडी-कृडा-मूर्वादेवदाली अर्थात् ताडका गूदा-वायविडंग-जलवेत-चीता-मूषापर्णी-दोनों तरहकी कडुतोरीकरंजुआ-पीपल-सेंधानमक-बच-इलायची-सरसों ये सब छर्दन अर्थात वमन लानेवाले औषधहैं १ निकुम्भकुम्भत्रिफलागवाक्षीसुशलिनीनीलिनितिल्वकानि॥ शम्याककम्पिल्लकहेमदुग्धादुग्धं च मूत्रं च विरेचनानि ॥२॥ जमालगोटाकी जड-निशोत--त्रिफला--गडूमा--थोहरका दूध-शांखिनी-नलिपुष्पा-लोधअमलतास--कपिला--चोख--दूध--मूत्र ये सब विरेचन अर्थात् जुलाबको लाते हैं ॥ २ ॥ मदनकुटजकुष्ठदेवदालीमधुकवचादशसूलदारुरास्नाः ॥ यवमितिकृतवेधगंकुलत्थो मधुलवणं त्रिवृतानिरहणानि ॥३॥ १ एला छिलके युक्तबडी इलायची For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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