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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१४३) युक्तिकरके व देश-काल-आदिके बलका अनुरोध करके तिन रोगियोंकी चिकित्सा करे, 'अर्थात् लंधित नहीं करवावै, और बृंहित होनेसे बल-पुष्टि-बृंहण साध्यरोगोंका नाश होताहै १६॥ विमलेन्द्रियता सर्गो मलानां लाघवं रुचिः॥ क्षुत्तृट्सहोदयः शुद्धहृदयोद्गारकण्ठता ॥ १७॥ इंद्रियोंका विमलपना-मलोंका बंधेज-हलकापन-रुचि-मूख और तृषाका साथ उदय हृदयकी शुद्धि-शुद्ध डकारोंका कंठमें आना ॥ १७ ॥ व्याधिमार्दवमुत्साहस्तन्द्रानाशश्च लङ्धिते ॥ अनपेक्षितमात्रादिसेविते कुरुतस्तु ते ॥१८॥ रोगका कोमलपना-उत्साह-तंद्राका नाश-ये-सब लंघन करते उपजते हैं, और अनपेक्षितमात्रा आदिकरके सेवित किये बृहण और लंबन ॥ १८ ॥ अतिस्थौल्यातिकार्यादीन्वक्ष्यन्ते ते च सौषधाः ॥ रूपं तैरेव च ज्ञेयमतिबंहितलविते ॥ १९॥ अतिस्थूलपना--अतिकृशपना आदि रोगोंको करते हैं, सो औषधोंकरके सहित कार्यआदि रोगोंको वर्णन करेंग और अतिबृहितमें और अतिलंघितमें अतिस्थूलपना आदि और अतिकशपना आदिकरके रूपजानना योग्य है ।। १९॥ अतिस्थौल्यापचीमेहज्वरोदरभगन्दरान् ॥ काससंन्यासकृच्छ्रामकुष्ठादीनतिदारुणान् ॥२०॥ अतिवृहित करनेसे अतिस्थूलता अपची-प्रमेह-बर-उदररोग भगंदर--खांसी संन्यासरोगआम--कुष्ठ-आदि दारुणरोग उपजते हैं ॥ २० ॥ तत्र मेदोऽनिलश्लेष्मनाशनं सर्वमिष्यते ॥ कुलत्थजूर्णश्यामाकयवमुद्गमधूदकम् ॥ २१॥ इन अतिस्थूलता आदिमें मेद-वात-कफको नाशनेवाला औषध वांछित है, और कुर्थाचणक-श्यामाक-जब-मूंग-शहद-पानी ॥ २१ ॥ मस्तुदण्डाहतारिष्टचिन्ताशोधनजागरम् ॥ मधुना त्रिफलां लिह्याद्गुडूचीमभयां धनम् ॥ २२ ॥ दहीका पानी-बिलोया दही-अरिष्ट-चिंता-शोधन-जागना-और त्रिफला-गिलोय हरडैनागरमोथा-इन्होंको शहदमें मिलाना ।। २२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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