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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३४) - अष्टाङ्गहृदये- - . संसर्गाद्रसरुधिरादिभिस्तथैषां दोषांस्तु क्षयसमताविवृद्धिभेदैः॥ आनंत्यंतरतमयोगतश्च याताञ्जानीयादवहितमानसो यथास्वम् ।७८॥ __ और ये दोषभेद केवल ६३ तरेसटही नहीं हैं किन्तु रुधिर रसआदिकोंके मिलाप होनेसे और दोषोंके मिलाप होनेसे और क्षय समता वृद्धि इत्यादिक होनेसे और ज्यादे अति ज्यादे होनेसे इन्होंके अनंत अर्थात् असंख्यात भेद जानने इनमें सात रसके और दोष लिखें तौ चारसे चौतीस होते हैं ।। ७८ ॥ इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां सूत्रस्थाने द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥ त्रयोदशोऽध्यायः। अथातो दोषोपक्रमणीयमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर दोषोपक्रमणीयनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। वातस्योपक्रमः स्नेहः स्वेदः संशोधनं मृदु ॥ स्वाद्वम्ललवणोष्णानि भोज्यान्यभ्यङ्गमर्दनम् ॥ १॥ स्नेह-स्वेद-कोमल जुलाब-और स्वादु-अम्ल-लवण-उष्ण-ऐसे भोजन -अभ्यंग-मर्दन।।१।। वेष्टनं त्रासनं सेको मद्यं पैष्टिकगौडिकम् ॥ स्निग्धोष्णा बस्तयो बस्तिनियमः सुखशीलता ॥२॥ वस्त्रादिसे वेष्टन त्रासन-राजपुरुषादिसे डराना-सेक-पष्टिकमदिरा-गौडिकमदिरा स्निग्ध और उष्ण-बस्ति-बस्तिका नियम सुखशीलपना ॥ २ ॥ दीपनैः पाचनैः सिद्धाः स्नेहाश्चानेकयोनयः॥ विशेषान्मध्यपिशितरसतैलानुवासनम् ॥३॥ दीपन और पाचन औषधोंकरके सिद्ध अनेक योनिवाले स्नेह पवित्ररूप मांसका रस-तेलका अनुवासन-बस्ति ये सब विशेषकरके वातके उपक्रम है ॥ ३॥ . पित्तस्य सर्पिषः पानं स्वादुशीतैविरेचनम् ।। स्वादुतिक्तकषायाणि भोजनान्योषधानि च ॥४॥ घृतका पान-स्वादु और शीतल औषधोंकरके विरेचन-स्वादु-तिक्त-कषाय भोजन और औषध ॥ ४ ॥ सुगन्धशीतहृद्यानां गन्धानामुपसेवनम् ॥ कण्ठे गुणानां हाराणां मणीनामुरसा धृतिः॥५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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