SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (११५) कुष्ठवातात्रपित्तालगुल्मोपकुशकामलाः॥ . व्यङ्गाग्निनाशसंमोहरक्तत्वङ्नेत्रमूत्रताः॥९॥ कुष्ठ वातरक्त रक्तपित्त गुल्म उपकुशनामक दंतरोग, कामला, व्यंग, अग्निनाश, मोह और स्वचा. नेत्र. मूत्रका रक्तपना इन रोगोंको उपजाता है ॥९॥ मांसं गण्डार्बुदग्रन्थिगण्डोरूदरवृद्धिताः॥ कण्ठादिष्वधिमांसं च तद्वन्मेदस्तथा श्रमम् ॥१०॥ बढाहुआ मांस गलगंड अर्बुद ग्रंथि गंवृद्धि उदरवृद्धि और कंटआदिमें मांसकी अधिकताको करता है, और बढाहुआ मेदभी इन पूर्वोक्त रोगोंको करता है ॥ १० ॥ अल्पेऽपि चोष्टिते श्वासं स्फिक्स्तनोदरलम्बनम् ॥ अस्थ्यध्यस्थ्यधिदन्तांश्च मज्जा नेत्राङ्गगौरवम् ॥११॥ परंतु अल्पचेष्टा करनेमेंभी श्रम श्वास और फीच चुंची उदर इन्होंका अवलंबन इन सबोंको उपजाती है, बढीहुई हड्डी हड्डियोंमें हड्डीको और दन्तोमें अधिक दंतको उपजाती है, बढीहुई मन्ना नेत्र और अंगोंके भारीपनको करती है ॥ ११ ॥ पर्वसु स्थूलमूलानि कुर्यात् कृच्छ्राण्यरूंषि च ॥ अतिस्त्रीकामतां वृद्धं शुक्र शुक्राश्मरीमपि ॥ १२॥ और अंगुलियोंमें मोटापन और कष्टसाध्य अरूंषि अर्थात् फुन्सियोंको उपजाताहै, बढाहुआ आर्य अतिम्त्रीसंगकी इच्छा-और वीर्यकी पथरीको उपजाता है ॥ १२ ॥ कुक्षावाध्मानमाटोपं गौरवं वेदनां शकृत् ॥ मृत्रन्तु वस्तिनिस्तोदं कृतेऽप्यकृतसंज्ञताम् ॥ १३॥ बढाहुआ विष्टा कुक्षिमें आध्मान-गुडगुडपना-भारीपन-शूलको उपजाता है । बढाहुआ मूत्र बस्तिमें शूल और मूत्रके करने पश्चात्भी नहीं करनेकी तरह संज्ञाको उपजाता है अर्थात् मूत्रकरनेकी इच्छा बनी रहती है ॥ १३॥ स्वेदोऽतिस्वेददौर्गन्ध्यकण्डूरेवं च लक्षयेत् ॥ दूषिकादीनपि मलान् बाहुल्यगुरुतादिभिः ॥ १४॥ बढाहुआ स्वेद अतिपसीना-दुर्गन्धता-खाजको उपजाताहै इसी प्रकारसे बहुलता और भारीपन आदिकरके दूषिकादि मलोंकोभी अनुमान करे ॥ १४ ॥ लिङ्गं क्षीणेऽनिलेऽङ्गस्य सादोऽल्पं भाषिते हितम् ॥ संज्ञामोहस्तथा श्लेष्मवृद्धयुक्तामयसम्भवः ॥१५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy