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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७८) अष्टाङ्गहृदये इयं रसायनवरा त्रिफलाऽक्ष्यामयापहा ॥ रोपणी त्वग्गदक्लेदभेदोमेहकफास्रजित ॥ १५७ ॥ इन तीनोंके मिलनेसे त्रिफला कहाता है, यह रसायनोंमें उत्तम रसायन है, और नेत्रों के रोगोंको नाशता है, रोपणहै, और त्वचाका क्लेद-मेद प्रमेह कफ-रक्त--इन्होंको जीतता है१५७ सकेसरं चतुर्जातं त्वपत्रैलं त्रिजातकम् ॥ पित्तप्रकोपि तीक्ष्णोष्णं रूक्षं दीपनरोचनम् ॥ १५८ ॥ दालचीनी तेजपात, इलायची, इन्होंको त्रिजातक कहते हैं, और इन तीनोंमें नागकेसर मिलजावै तो चतुर्जातक कहाता है, ये दोनों जातक पित्तको कोपित करते हैं तीक्ष्ण और गरम हैं रूक्ष हैं दीपन हैं और रोचन हैं ॥ १५८ ॥ रसे पाके च कटुकं कफन्नं मरिचं लघु ॥ श्लेष्मला स्वादुशीतार्दा गुर्वी स्निग्धा च पिप्पली ॥ १५९ ॥ मिरच रसमें और पाकमें कट है, कफको नाशती है और हलकी है और गीली पीपली स्वादु और शीतल है कफको करती है और शीतल वीर्यवाली है भारी है चिकनी है ॥ १५९ ।। सा शुष्का विपरीतातः स्निग्धा वृष्या रसे कटुः॥ स्वादुपाकाऽनिलश्लेष्मश्वासकासापहासरा ॥ १६० ॥ और सूखी पीपली पूर्वोक्त पीपलीसे विपरीत गुणोंवाली है चिकनी है वीर्यमें हित है रसमें कटु है और पाकमें स्वादु है और वात कफ श्वास्त खांसीको नाशती है और सर है ॥ १६० ॥ न तामसुपपुजीत रसायनविधि विना ॥ नागरं दीपनं वृष्यं ग्राहि हृद्यं विवन्धनुत् ॥ १६१॥ रसायनविधिके विना इस पीपलीको अतिप्रयुक्त करना नहीं, सूंठ दीपन है वीर्यमें हित है स्तंभन ह हृदामें हित है और विबंधको नाशैहै ।। १६१ ॥ रुच्यं लघु स्वादुपाकं स्निग्धोष्णं कफवातजित् ॥ तद्वदाईकमेतञ्च त्रयं त्रिकटुकं जयेत् ॥ १६२ ॥ रुचिमें हित है हलकी है पाकमें स्वादु है चिकनी है गरम है, कफवातको जीतती है ऐसेही गुणोंवाला अदरक है और झूठ--मिरच--पीपली--यह त्रिकटु ॥ १६२ ॥ स्थौल्याग्निसदनश्वासकासश्लीपदपीनसान् ॥ चविका पिप्पलीमूलं मारिचाल्पान्तरं गुणैः ॥ १६३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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