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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीः॥ उपोद्धात। श्रीवाग्भटसंहिता जैसी उत्तमहै जितनी उपकारिणीहै यह विशेषकहनेकी आवश्यकता नहीं है। और ऐसे उत्तम पुस्तकका भाषानुवाद होकर जितना संसारका उपकार हुआहे सोभी गुप्त नहीं है । इस ग्रंथका हिंदी भाषानुवाद जो पं० रविदत्तजीने कियाहै यद्यपि उन्होंने अच्छाही परिश्रम कियाहै परंतु इससमयकी प्रचलित सरल हिंदी भाषा पढने वालोंको इसकी भाषा सुरोच्य नहीं और कई जगह अर्थ अर्थाशभी ठीक समझमें नहीं आता तथापि इसकी दो आवृत्ति छपी और निकलगई। अस्तु।अब तृतीयावृत्ति छपनेमें आर्यविद्याकमलदिवाकर शास्त्रोद्धारक श्रीमान् सेठ खेमराज श्रीकृष्णदासजी महोदय "श्रीवेङ्कटेश्वर" स्टीम् प्रेसके स्वामीने इसके पुनः संशोधनका भार मुझे समर्पण किया अस्तु मैंने यथासंभव इसकी भाषाकोभी इस समयके अनुसार सरल हिंदी करनेमें प्रयत्न किया, और अर्थअर्थाशमेंभी जहां कहीं त्रुटी प्रतीत हुई सोभी ठीक (शुद्ध)करदीहै परंतु फिरभी हमारी रचित सुश्रुतटीका जैसी सरलता प्रतीत न भी हो तौ पाठक क्षमा करें। क्योंकि, स्थान निर्माणके आकार और शोभनत्वादिका मुख्यकारण प्रथम सूत्रारंभ खात और. शिलान्यासही होताहै अर्थात् जैसी नींव होतीहै उसीपर स्थान निर्माण होताहे । • शोधनकरनेवाला उसकी मरम्मत और सुपेदी आदि करनेवालेके समान हो सत्ताहै स्थान रचनाका कुल ढंग नहीं बदल सक्ता और यदि वह कुलढंगही बदलदे तो वह संशोधक नहीं कहलासक्ता, नूतन रचयिता होसक्ताहै । सो अभीष्ट नहीं था। अस्तु फिरभी यथाशक्य सबप्रकार बहुत कुछ संशोधन कियागयाहै। । अब समस्त पाठक महाशयोंसे निवेदनहै कि, वे इसके आरंभिक अनुवादक प्रथम संशोधक . तथा प्रकाशक और मुझको अनुग्रहीत कर सदयदृष्टिसे भवलोकन करें और ईश्वरसे प्रार्थना करें कि, सदैव इस विद्याकी उन्नति होकर देशमें सुख और आनंदकी वृद्धि होती रहे । विशेष शुभम् ॥ निवेदक. पं. मुरलीधर शर्मा रा. वै. मे. आ. सु. फरुखनगर. For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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