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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . मूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६९) हलके पत्तोंवाला जो यत्र शाकविशेष है वह बथुवाके समान गुणोंवाला है और अरनी और वरणा स्वादु है तिक्त है कफ और वातको जीतता है ॥ ९५ ॥ वर्षाभ्वी कालशाकं च सक्षारं कटुतिक्तकम् ॥ दीपनं भेदनं हन्ति गरशोफकफानिलान् ॥ ९६ ॥ दोनों सांठी और कालशाक कछुक खारा है कटु है तिक्त दीपन है भेदन है और विष-शोजा कफ वात-इन्होंको नाशता है ॥ ९६ ॥ दीपनाः कफवातघ्नाश्चिरबिल्वाकुराः सराः॥ शतावर्यकुरास्तिक्ता वृष्या दोषत्रयापहाः ॥ ९७ ॥ पूतिकरंजुवाके अंकुर दीपन हैं कफ और वातको नाशते हैं, और सर हैं, शतावरीके अंकुर तिक्त हैं वीर्यमें हित हैं और त्रिदोषको नाशते हैं ॥ ९७ ॥ रूक्षो वंशकरीरस्तु विदाही वातपित्तलः॥ पत्तुरो दीपनस्तिक्तः प्लीहार्शःकफवातजित् ॥ ९८॥ वांसका अंकुर रूखा है विदाही है और वात पित्तको देताहै, पतंग दीपनहै रसमें तिक्त है और प्लीहरोग-बवासीर-कफ-वातको जीतता है ॥ ९८॥ कृमिकासकफोक्लेदान् कासमदों जयेत्सरः॥ रूक्षोष्णमम्लं कौसुंभं गुरु पित्तकरं सरम् ॥ ९९ ॥ कसोंदा सरहै और कृमि-खांसी-कफ--स्रोतोंके गीलापनको जीतताहै; कुसुंभ शाक रूक्ष है, खट्टा है गरम है भारी है पित्तको करता है, और सर है ॥ ९९ ॥ गुरूषणं सार्षपं बद्धविण्मूत्रं सर्वदोषकृत् ॥ यहालमव्यक्तरसं किञ्चित्क्षारं सतिक्तकम् ॥ १००॥ सरसोंका शाक भारी है, वीर्यमें उष्ण है विष्ठा और मूत्रको बांधता है, और सब दोषोंको करता है जो छोटीमूली उत्पन्नहोकर थोडी बढी है और अव्यक्त रससे संयुक्त हो और कछुक खारी हो और तिक्त हो ॥ १० ॥ तन्मूलकं दोषहरं लघुसोष्णं नियच्छति ॥ गुल्मकासक्षयश्वासत्रणनेत्रगलामयान् ॥ १०१ ॥ ऐसी मूली दोषको हरती है और हलकी है गरम है और गुल्म खांसी-क्षय-श्वास-व्रण-नेत्र ..-रोग--गलरोग ॥ १०१ ॥ स्वराग्निसादोदावर्तपीनसांश्च महत्पुनः॥ रसे पाके च कटुकमुष्णवीयं त्रिदोषकृत् ॥ १०२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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