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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
एकयो नीलघून्विद्यादपूपानुत्तरोत्तरम् ॥ हरिणकुरङ्गर्क्षगोकर्णमृगमातृकाः ॥ ४१ ॥
उत्तरोत्तर क्रमसे. हलके हैं और हरिण - एण - कुरंग - ऋक्ष - गोकर्ण - मृग - मातृक ॥ ४१ ॥
शशशम्बरचारुष्कशरभाद्या मृगाः स्मृताः ॥ लाववर्त्तीकवार्त्तीररक्तवर्त्मककुक्कुभाः ॥ ४२ ॥
शश -
रा - शंबर - चारुष्क - शरभ इन आदि दश मृग कहे हैं और लावा - वर्तक- अर्थात् वनचिडा वातर- रक्तवर्त्मक- वनमुरगा ॥ ४२ ॥
(६१)
कपिञ्जलोपचकाख्यचको रकुरुबाहवः ॥
वर्त्तको वर्त्तिका चैव तित्तिरिः क्रकरः शिखी ॥ ४३ ॥
कपिंजल अर्थात् पपेय्या - उपचक्र अर्थात् हंसावशेष - चकोर - कुरु-कुरुपक्षी - वर्त-कतीतरगांजिणपक्षी - करढोक पक्षी - मोर ॥ ४३ ॥
ताम्रचूडाख्यबकरगोनर्दगिरिवर्तिकाः ॥
तथा शारदेन्द्राभवारटाचेति विष्किराः ॥ ४४ ॥
मुरगा - करपक्षी - गोनर्दपक्षी - पर्वतवासी - तीतरपक्षी - शारपदपक्षी - कंकपक्षी पक्षिविशेष बारटपक्षी ये विष्किरसंज्ञक पक्षी ॥ ४४ ॥
जीवजीवक दात्यूहभृंगाह्वशुकसारिकाः ॥
लटाकोकिलहारीतकपतिचटकादयः ॥ ४५ ॥
चकोरभेद - जलकाक - भोरा - तोता-मैना - गांव चिमणी- कोईल-तिलगिरु पक्षी - कपोत-चिडा इन आदि पक्षी ॥ ४५ ॥
प्रतुदा भेकगोधाहिश्वाविदाद्या विलेशयाः ॥
गोखराश्वतरोष्ट्राश्वद्वीपिसिंहर्क्षवानराः ॥ ४६ ॥
प्रतुद कहाते हैं, और मेंडक - गोधा - सर्प - सेह - आदि जीव बिलेशय कहाते हैं । और गाय - खरखिच्चर - ऊंट - अश्व-गैंडा - सिंह - रीछ-वानर ॥ ४६ ॥
मार्जारमूषकव्याघ्रवृकवश्रुतरक्षवः ॥
लोपाकजम्बुकश्येन चाषवान्तादिवायसाः ॥ ४७ ॥
बिलाव -मूषा- व्याघ्र - भेडा-नोला - तिरखु - लोपाख्यगीदड - गोदड - शिकरा - पपैय्या-कुत्ता -
काक ॥ ४७ ॥
शशघ्नीभास कुररगृध्रोलूककुलिंगकाः ॥ धूमिका मधुहा चेति प्रसहा मृगपक्षिणः ॥ ४८ ॥
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