SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । एकयो नीलघून्विद्यादपूपानुत्तरोत्तरम् ॥ हरिणकुरङ्गर्क्षगोकर्णमृगमातृकाः ॥ ४१ ॥ उत्तरोत्तर क्रमसे. हलके हैं और हरिण - एण - कुरंग - ऋक्ष - गोकर्ण - मृग - मातृक ॥ ४१ ॥ शशशम्बरचारुष्कशरभाद्या मृगाः स्मृताः ॥ लाववर्त्तीकवार्त्तीररक्तवर्त्मककुक्कुभाः ॥ ४२ ॥ शश - रा - शंबर - चारुष्क - शरभ इन आदि दश मृग कहे हैं और लावा - वर्तक- अर्थात् वनचिडा वातर- रक्तवर्त्मक- वनमुरगा ॥ ४२ ॥ (६१) कपिञ्जलोपचकाख्यचको रकुरुबाहवः ॥ वर्त्तको वर्त्तिका चैव तित्तिरिः क्रकरः शिखी ॥ ४३ ॥ कपिंजल अर्थात् पपेय्या - उपचक्र अर्थात् हंसावशेष - चकोर - कुरु-कुरुपक्षी - वर्त-कतीतरगांजिणपक्षी - करढोक पक्षी - मोर ॥ ४३ ॥ ताम्रचूडाख्यबकरगोनर्दगिरिवर्तिकाः ॥ तथा शारदेन्द्राभवारटाचेति विष्किराः ॥ ४४ ॥ मुरगा - करपक्षी - गोनर्दपक्षी - पर्वतवासी - तीतरपक्षी - शारपदपक्षी - कंकपक्षी पक्षिविशेष बारटपक्षी ये विष्किरसंज्ञक पक्षी ॥ ४४ ॥ जीवजीवक दात्यूहभृंगाह्वशुकसारिकाः ॥ लटाकोकिलहारीतकपतिचटकादयः ॥ ४५ ॥ चकोरभेद - जलकाक - भोरा - तोता-मैना - गांव चिमणी- कोईल-तिलगिरु पक्षी - कपोत-चिडा इन आदि पक्षी ॥ ४५ ॥ प्रतुदा भेकगोधाहिश्वाविदाद्या विलेशयाः ॥ गोखराश्वतरोष्ट्राश्वद्वीपिसिंहर्क्षवानराः ॥ ४६ ॥ प्रतुद कहाते हैं, और मेंडक - गोधा - सर्प - सेह - आदि जीव बिलेशय कहाते हैं । और गाय - खरखिच्चर - ऊंट - अश्व-गैंडा - सिंह - रीछ-वानर ॥ ४६ ॥ मार्जारमूषकव्याघ्रवृकवश्रुतरक्षवः ॥ लोपाकजम्बुकश्येन चाषवान्तादिवायसाः ॥ ४७ ॥ बिलाव -मूषा- व्याघ्र - भेडा-नोला - तिरखु - लोपाख्यगीदड - गोदड - शिकरा - पपैय्या-कुत्ता - काक ॥ ४७ ॥ शशघ्नीभास कुररगृध्रोलूककुलिंगकाः ॥ धूमिका मधुहा चेति प्रसहा मृगपक्षिणः ॥ ४८ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy