SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका । (९) इसके सिवाय ग्रंथकारने अपने ग्रंथको छःस्थानमें विभक्त कियाहै १ सूत्रस्थान ( दिनचर्या ऋतु औषधियोंके गुण आदिका वर्णन ) २ शारीरस्थान ( शररिकी उत्पत्ति अस्थिआदिका वर्णन ) ३ निदानस्थान ( रोगोंके लक्षण ) ४ चिकित्सा स्थान ( सब रोगोंकी औषधी ) ५ कल्पस्थान ( वमन विरेचन बस्ति आदिका वर्णन ) उत्तरस्थान ६ ( बालग्रह सर्प विषादिका प्रतिषेध ) । इसके पढनेसे वैद्यजनोंको पूर्ण विज्ञता और रोगादिके निवारणमें पूर्ण सामर्थ्य होजाती है । जिस समय यह ग्रंथ केवल संस्कृतहीमें था उस समय संस्कृतज्ञोंके सिवाय अन्य जन इसके गुण गौरव जाननेको समर्थ नहीं होते थे और दीर्घकाल साध्य होनेके कारण इस बृहत् ग्रंथका पठन पाठन नहीं करसक्तेथे इसी कारण इसका प्रचार बहुत न्यून होगयाथा इसको · महान् उपकारक विचारकर हमारे परम अनुग्राहक सर्वगुणागार नयनागर सेठजी श्रीखेमराज श्रीकृष्णदासजीने इसका भाषाटीका बनवाकर सर्व साधारणके सुबीतेके लिये निज यंत्रालयमें छापकर प्रकाशित किया कि सर्व साधारणको लाभहो और अभ्यासशील पाठकवर्गभी इससे कार्य सिद्ध करें इसके टीके सहित प्रगट होनेसे यह ग्रंथ सबके लिये सुलभ होगया । .. इस समय जिस प्रकारसे अंग्रेजी चिकित्साकी वृद्धि है और वैद्य जनोंका संस्कृत पढनेकी और बहुत कम ध्यान है पढे बेपढे सब उसी अंग्रेजी औषधीकी ओर झुकते हैं यदि वैद्यक के ग्रंथोंका भाषाटीका न कियी जाती तो कुछ दिनमें संस्कृत वैद्यकका सम्पूर्ण ही लोप होजाता इसकारण संस्कृत वैद्यकके प्रचारमें भाषाटीका बहुत ही उपयोगी है. - परन्तु केवल पुस्तकोंका टीका देखकर सहसा चिकित्सामें प्रवृत्त होना बुद्धिमानीका काम नहीं है ऐसा करनेसे कभी कभी हानि भी उठानी पडती है परन्तु इतनी बात है कि भाषाटोका देखकर पढनेवालों को सहायता प्राप्त होगी, विशेष लाभ और पूर्ण ज्ञान चिरकाल अभ्यास गुरुसेवन और ग्रंथके हस्तामलक करनेसे हो सकता है, कारण कि देश काल अवस्था प्रकृति आदि विचार . कर जो वैद्य चिकित्सा प्रवृत्त होताहै वही. यशोभागी होताहै अन्यथा नहीं इसकारण भाषाटीका अभ्यास करनेवालोंके लिये परम उपयोगी है। बहुतसे लोग कहा करते हैं कि अब हिन्दुस्तानकी औषधियोंमें गुण नहीं रहा अंग्रेजी औषधी गुण करती हैं यह कथन करना उनका सर्वथा भ्रम है औषधी का गुण कदाचित् अन्यथा नहीं होता परन्तु हानि यह हुई है कि औषधी अच्छी नहीं मिलती वहीं कई कई बर्षकी सडी गली पुरानी औषधी पसारी देदेते हैं वही रोगियोंको आंख मीच पिलाई जाती है फिर वह क्या गुण दिखासक्ती हे अंग्रेजी दवा बहुधा इन्ही औषधियोंसे तयार की जाती हैं ( दूसरेदेशोंकीभी होतीहै ) परन्तु वह नवीन श्रेष्ठ औषधियोंकी बन्ती हैं इस कारण तुरत गुण करती हैं पसारी औषधियोंके स्थानमें घास कूडा जो मनमें आताहै सो देदेते हैं ग्राहक विना पहचाने ले आते हैं फिर वह क्या गुण कर सक्ती हैं इसी कारण इस समय ऐसे ग्रंथभी बनने लगे हैं जिनमें औषधियोंके चित्रादि दियेजायँ और सर्व साधारणको उनकी पहचान होजाय यह क्या थोडा लाभ है। For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy