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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५६ ) अष्टाङ्गहृदये तृणधान्यं पवनकुलेखनं कफपित्तहृत् ॥ १० ॥ कांगनी - कोदू - नीवार - शामक - इन आदि तृण अन्न शीतल और हलका है और वातको करता है लेखन है कफ और पित्त के हरता है ॥ १० ॥ भग्नसन्धानकुत्तत्र प्रियबृंहणी गुरुः ॥ कौरदषः परं ग्राही स्पर्शशीतो विषापहः ॥ ११ ॥ तिन्होंमें कांगनी टूटेको जोडती हैं, और धातुओं को पुष्ट करती है, और भारी है और कोदू उत्तम स्तंभन है, और स्पर्शमें शीतल है और विषको नाशती हैं ॥ ११ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूक्षः शीतो गुरुः स्वादुः सरोः विधातकृद्यवः ॥ वृष्यः स्थैर्यकरो सूत्रमेदः पित्तकफाञ्जयेत् ॥ १२ ॥ जय रूखा है शीतल है भारी है स्वादु है सर है विष्ठा के त्रिघातको करता है और वृष्य है स्थिरताको करता है, और मूत्र मेद - पित्त-कफको जीतता है ॥ १२ ॥ पीनसश्वासकासोरुस्तम्भकण्ठत्वगामयान् ॥ न्यूनो यवादन्ययवो रूक्षोष्णो वंशजो यवः ॥ १३ ॥ और पीनस - श्वास-खांसी - ऊरुरतंभ - कंठरोग - त्वचारोग - धान्यको जीतता है और शुक धान्य विशेष जब इस पूर्वोक्त जबसे हीन है, और वंशसे उपजा जब रूखा और गरम है ॥ १३ ॥ वृष्यः शीतो गुरुः स्निग्धो जीवनो वातपित्तहा ॥ सन्धानकारी मधुरो गोधूमः स्थैर्यकृत्सरः ॥ १४ ॥ गेहूं वृष्य हे शीतल है भारी है चिकना है जीवन है बात और पित्तको नाशता है और टूटी हुई जांघ आदिको जोडता है और मधुर है और स्थिरताको करता है सर है ॥ १४ ॥ पथ्या नन्दीमुखी शीता कषायमधुरा लघुः ॥ मुद्गाढकीमसूरादि शिम्बीधान्यं विबन्धकृत् ॥ १५ ॥ नंदीमुखी अर्थात् दीर्घ सूक्ष्म गेहूं अन्न पथ्य है, शीतल है कसैला और मधुर है और हलका है और मूंग - तूरी - मसूर - इनआदि शिवी अन्न विबंध करता है ॥ १५ ॥ कषायं स्वादु संग्राहि कटुपार्क हिमं लघु ॥ मेदः श्लेष्माखपितेषु हितं लेपोपसेकयोः ॥ १६ ॥ और कसैला है स्वादु है स्तंभन है पाकमें कटु है शीतल है हलका है और मेद कफ-रक्तपित्त इन रोगों के अर्थ लेप और उपसेकमें हित है ॥ १६ ॥ aise सुगोऽल्पचलः कलायस्त्वतिवातलः ॥ राजमापोऽनिलक रूक्षो बहुशकृद्गुरुः ॥ १७ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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