SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (५२) www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टाङ्गहृदय तद्गुणा वारुणी हृद्या लघुतीक्ष्णा निहन्ति च ॥ शूलकासव मि श्वासविबन्धाध्मानपीनसान् ॥ ६८ ॥ और ऐसेही गुणोंवाली वारुणी मदिरा है, यह सुंदर है हलकी और तीक्ष्णहै शूल खाँसी छर्दि श्वास विबंध आध्मान पनिसको नाशती है. आध्मान -( अफारा ) दूर करे है स्रोतों में लेपन करने से दोषों को दूर करती है ॥ ६८ ॥ नातितीत्रमा लध्वी पथ्या वैभीतकी सुरा || व्रणे पाण्डामये कुष्ठे न चात्यर्थं विरुध्यते ॥ ६९ ॥ बहेडेकी मदिरा अतितीक्ष्णमदवाली नहीं है, और हलकी है, पथ्य है व्रणमें पाण्डुरोगमें कुष्टमें अतिविरुद्ध नहीं हैं ॥ ६९॥ यथाद्रव्यगुणोऽरिष्टः सर्वमद्यगुणाधिकः ॥ ग्रहणीपाण्डुकुष्ठार्शः शोफशोषोदरज्वरान् ॥ ७० ॥ द्रव्यों के अनुसार गुणोंवाला और मदिरा से अधिक गुणोंवाला अरिष्ट है, अर्थात् जैसे द्रव्योंसे बनाया जाय वैसाही गुण रखता है, यह ग्रहणीदोष - पांडु कुष्ट-- बवासीर - शोजा- शोष - उदररोगज्वरको नाशता है जो पकी हुई औषधोंको जलसे अर्थात् काथ आदिसे मद्य बनता है उसे अरिष्ट कहते हैं ॥ ७० ॥ हन्ति गुल्मकृमिप्लीहान कषायः कटुवातलः ॥ मार्क लेखनं हृद्यं नात्युष्णं मधुरं सरम् ॥ ७१ ॥ गुल्म कृमि लहरोगको नाशता है. कसैला है कटु है और वातको करता है मुनक्का दाखों की मदिरा लेखन है सुंदर है अतिगरम नहीं है मधुर है सर है ॥ ७१ ॥ अल्पपित्तानिलं पाण्डुमेहारीः कृमिनाशनम् ॥ अस्मादल्पान्तरगुणं खार्जूरं वातलं गुरु ॥ ७२ ॥ अल्पवित्त और वातको करें है और पांडु मेह कृमि बवासीरको नाशती है और इससे अल्प गुणोंवाली खजूरकी मंदिरा है यह वातको करती है और भारी है ॥ ७२ ॥ शार्करः सुरभिः स्वादुर्हयो नातिमदो लघुः ॥ सृष्टमूत्रशकृद्वातो गौडस्तर्पणदीपनः ॥ ७३ ॥ खांडसंबंधी मदिरा सुगंधित है स्वादुहै सुंदर है अतिमदवाली नहीं है, हलकी है गुडसंबंधी मदिरा मूत्र विष्ठा वातको रचती है तर्पण और दीपन है ॥ ७३ ॥ वातपित्तकरः सीधुः स्नेहश्लेष्मविकारहा ॥ मेदःशोफोदरार्शोघ्नस्तत्र पक्करसो वरः ॥ ७४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy