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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०४२) अष्टाङ्गहृदयेमालिस उद्वर्तन सेक गंधवाली काव्य माला पत्ते वस्त्र आभरणके प्रकारोंसे संयुक्त और गीत तथा काव्य आदिकी कथामें प्रवीण और समान स्वभाववाली और वसमें प्राप्तहुई अच्छी अवस्थावाली ॥ ४२ ॥ अपनेही स्थानके समीप बनीहुई और कमलकी रज और . मधुकरके मदवाले पक्षियोंवाली, और नीले सानु भागवाले पर्वतके शृंगरूपी नितंबके निकटवाले बगीचे पुरके समीपमें होवें ॥४३॥ दृष्टीको सुखके देनेवाली और अनेक तरहकी वृक्षोंकी जाती और कानों में सुखका देनेवाला और कलकलरूप कोकिलका शब्द शरीरका सुख और ऋतुके बशसे विभूषित और चित्तको सुखके देनेवाला सकलपरिवार ।। ४४ ॥ नागरपान श्रेष्टमदिरा प्रकाशितहुई स्त्री और चंद्रमासे संयुक्तहुई रात्री और जो जो मनको वांछितहोवे वह सब वाजीकर कहाहै ॥ ४५ ॥ मधुमुखमिव सोत्पलं प्रियायाः कलरणनापरिवादिनी प्रियेव॥ कुसुमचयमनोरमाचशय्या किसलयिनी लतिकेव पुष्पिताया ॥४६॥देशे शरीरे चनकाचिदतिरथेषु नाल्पोऽपि मनोविघातः॥ वाजीकराः सन्निहिताश्च योगाः कामस्य कामं परिपूरयंति॥४७॥ कमलसे संयुक्त किये मार्दीक मदिराकी तरह प्रियाके मुखकी तरह और अच्छी तरह मधुर शब्दको कहनेवाली वीणा प्रियाकी तरह और फूलोंसे संचितकरी मनोहर श्याम पत्तोंवाली और फूलोंसे प्रधान हुई बेलकी समान ॥ ४६ ॥ देशमें और शरीरमें किसीप्रकार पीडा न हो, और प्रयोजनमें कछुभी मनका विघात नहींहोवे ये सब योग वाजीकर कहेहैं कामनाबालेकी कामनाकोपूरनेवालेहैं।।४७॥ मुस्तापर्पटकं ज्वरे तृषि जलं मृद्धृष्टलोष्टोद्भवं लाजाछर्दिषु बस्तिजेषु गिरिजं मेहेषु धात्रीनिशोपांडौ श्रेष्ठभयोभयानिलकके प्लीहामये पिप्पली संधाने कृमिजा विशेषुकतरुमेंदोनिले गुग्गुलुः॥४८॥वृषोस्रपित्ते कुटजोतिसारे भल्लातकोऽर्श:सुगरेषु हेम ॥स्थलेषु ताक्ष्यं कृमिषु क्रिमिन्नं शोषे सुराच्छागपयोऽनुमांसम् ॥४९॥ अक्ष्यामयेषु त्रिफलागुडूची वातास्ररोगेमथितं गृहिण्याम् ॥ कुष्ठेषुसेव्यः खदिरस्यसारः सर्वेषुरोगेषु शिलाह्वयं च ॥५०॥ उन्मादं घृतमनवं शोकं मयं विसंस्मृती ब्राह्मी॥ निद्रानाशं क्षीरंजयतिरसाला प्रतिश्यायम् ॥ ५१ ॥ मासं कार्य लशुनः प्रभंजनं स्तब्धगात्रतांस्वेदः ॥ गुडमंजर्याः खपुरो नस्यां स्कंधांसबाहुरुजम् ॥५२॥ नवनीतखंडमर्दितमौष्ट्र मूत्रं पयश्च हंत्युदरम् ॥ नस्यं मूर्द्धविकारान्विद्रधिमचिरोत्थमस्रविस्रावः ॥५३॥ नस्यंकवलमुखजां नस्यांजन For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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