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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१०२७) शीलयेल्लशुनं शीते वसन्तेऽपि कफोल्बणः॥ घनोदयेऽपि वाताः सदा वा ग्रीष्मलीलया ॥ १४ ॥ स्निग्धशुद्धतनुः शीतमधुरोपस्कृताशयः॥ तदुत्तंसावतंसाभ्यां चर्चितानुचराजिरः॥ १५॥ शीतकालमें और वसंतऋतुमे कफकी अधिकतावाला ल्हस्सनका अभ्यासकरै और वातसे पीडितहुआ वर्षाकालमेंभी अभ्यासकर, अथवा ग्रीष्मऋतुचर्याके आचरणसे वातसे पीडितहुआ सब कालमें अभ्यासकरै ॥ १४ ॥ स्निग्ध और शुद्ध शरीरवाला शीतल और मधुर सहित आशयवाला और तिस ल्हस्सनके शेखर और कर्णपूरोसे मंडित सेवक और आंगनवाले मनुष्यके ॥ १५ ॥ तस्य कन्दान्वसन्तान्ते हिमवच्छकदेशजान् ॥ अपनीतत्वचो रात्रौतीमयेन्मदिरादिभिः॥१६॥तत्कल्कं स्वरसं प्रातः शुचि तांतवपीडितम् ॥ मदिरायाः सुदृढायास्त्रिभागेन समन्वित म् ॥१७॥मद्यस्यान्यस्य तैलस्य मस्तुनः कांजिकस्य वा॥तत्काल एव वा युक्तं युक्तमालोच्यमात्रया॥१८॥तैलसपिर्वसामजक्षीरमांसरसैःपृथक् ॥काथेन वा यथाव्याधि रसं केवलमेव वा ॥ १९॥ पिवेवंडूषमात्रं प्राकंठनाडीविशुद्धये ॥ प्रततं स्वेदनं चानु वेदनायां प्रशस्यते ॥ १२०॥ वसंतऋतुके अंतमें शीतलदेश और एकदेशमें उपजेहुये और त्वचासे वजित ल्हस्सनके कंदोंको रात्रि में मदिरा और विजोरेके रस आदिसे क्लेोदितकरे ॥ १६ ॥ तिसके कल्कको पवित्र वस्त्र के पीडितकर स्वरस निकाल और सुंदररूढहुई मदिराके त्रिभागसे अन्वितकरै ॥ १७ ॥ अन्य मदिराके और तेलके और दहीके मस्तुके और कांजीके त्रिभागसे अन्वितकर, अथवा तिसीकालमें मदिरा आदिसे युक्त यथायोग्य मात्रासे अच्छी तरह देख ॥ १८ ॥ तेल घृत वसा मज्जा दूध मांसका रस इन्होंसे पृथक पृथक् अथवा रोगके अनुसार क्वाथसे अथवा केवलही रसमात्रको ॥१९॥ पहिले कुलामात्र पवि, कंठकी नाडीकी शुद्धिके अर्थ और पीडा उपजे तो निरंतर स्वेदकर्म श्रेष्ठहै ॥१२०॥ शीतांबुलके सहसा वमिमूर्छाययोर्मुखे ॥ छर्दि और मूर्छा उपजे तो शीघ्रही मुखमें शीतलपानीका सेक श्रेष्ठहै ॥ शेषं पिवेत्क्लमापाये स्थिरतां गत ओजसि॥२१॥ और ग्लानिके नाशमें और स्थिरताको प्राप्तहुए बलमें शेष रहे रसको पावै ॥ २१ ॥ विदाहपरिहाराय परं शीतानुलेपनः ॥ धारयेत्सांबुकणिका मुक्ताः कर्पूरमालिकाः ॥ २२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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