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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१०१७) ॥४०॥मेधां स्मृति कान्तिमनामयत्वमायुःप्रकर्ष पवनानुलोम्यम्॥स्त्रीषुप्रहर्ष बलमिन्द्रियाणामग्नेश्च कुर्याद्विधिनोपयुक्तः॥४॥ दशमल खरेहटी नागरमोथा जीवक ऋषभक कमल सालिपर्णी पृश्निपर्णी पीपल काकडाशिंगी मैदा भूमीआँवला इलायची ॥ ३३ ॥ जीवंती कालाअगर दाख पोहकरमूल चंदन कचूर नखी काकोली क्षीरकाकोली रक्तनिशोत गिलोय ॥ ३४ ॥ विदारीकंद वांसाकी जड ये सब चार ४ तोले लेकर मिलावै इन्होंको और ५०० आंवलोंको १०२४ तोले पानीमें पकावै ॥ ३५ ॥ जब चौथाई भाग शेषरहै, तब गुठलियोंसे वर्जित किये आंवलोंको ग्रहणकर पीछे ४८ तोलेभर घत और तेलसे भून ॥३६॥ पीछे२०० तोले राब मिलाके लेहकी तरह पकावै, और सिद्ध होनेमे २४ तोले शहद और १६ तोले वंशलोचन ॥३७॥ पीपल ८ तोले और दालचीनी इलायची तेजपात नागकेशर इन्होंका चूर्ण ४ तोले पछि कुटीमें स्थितहुआ और पथ्यरूप भोजनको करनेवाला वह मनुष्य मात्राको चाटै ॥ ३८ ॥ यह च्यवनप्राश्यहै इसको खाके च्यवनमुनि वृद्ध अवस्थाको त्यागकर नारियोंको आनंदित करनेवाले होगयेथे ॥ ३९ ।। खांसी श्वास ज्वर शोष हृद्रोग वातरक्त मूत्ररोग वीर्य्यरोग स्वरका बिगडजाना इन्होंको नाशताहै, और बालक वृद्ध क्षतक्षीण कृश मनुष्यों के अंगोंको बढाताहै ॥ ४० ॥ धारणा स्मृति कांति आरोग्य आयुकी वृद्धि वातकीअनुलोमता स्त्रियों में आनंद और इंद्रियोंका तथा जठराग्निका बल इन्होंको विधिसे प्रयुक्तकिया करताहै ।। ४१॥ मधुकेन कवक्षीर्या पिप्पल्या सिन्धुजन्मना॥पृथग्लोहैः सुवर्णेन वचया मधुसर्पिषा ॥४२॥ सितया वा समायुक्ता समायुक्ता रसायनम् ॥ त्रिफला सर्वरोगनी मेधायुःस्मृतिबुद्धिदा॥४३॥ मुलहटी वंशलोचन पीपल सेंधानमक लोहा चांदी तांबा सीसा रांग सोना वच शहद घृत ॥ ४२ ॥ मिसरीके संग पृथक् २ युक्तकरी त्रिफला सब रोगोंको नाशतीहै और रसायनहै और धारणा आयु स्मृति बुद्धिको देतीहै ।। ४३ ॥ मण्डूकपर्णाःस्वरसं यथाग्निक्षीरेण यष्टीमधुकस्य चूर्णम्॥रसं गुडूच्याः सहमूलपुष्प्याः कल्कं प्रयुञ्जीत च शंखपुष्प्या॥४४॥ आयुःप्रदान्यामयनाशनानि बलाग्निवर्णस्वरवर्द्धनानिमेिध्यानि चैतानि रसायनानि मेध्या विशेषेण तु शंखपुष्पी ॥४५॥ मंडूकपर्णीके स्वरसको प्रयुक्तकरै अथवा जठराग्निके बलके अनुसार मुलहटीके चूर्णको दूधके संग पीवै, तथा गिलोयके स्वरसको प्रयुक्तकरै, तथा जड़ और फूलोंसे सहित शंखपुष्पीके कल्कको प्रयुक्तकरै ।। ४४ ॥ ये योग आयुको बढातेहैं. और रोगोंको नाशतेहैं और बल अग्नि वर्ण स्वरको बढाते हैं, और पवित्रहैं रसायनहैं और विशेषकरके शंखपुष्पी धारणाको देतीहै ॥ ४५ ॥ नलदं कटुरोहिणी पयस्या मधुकं चन्दनसारिवोग्रगन्धाः॥त्रिफला कटुकत्रयं हरिद्रे सपटोलं लवणं च तैः सुपिष्टैः॥४६॥त्रि For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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