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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९९८) अष्टाङ्गहृदयेयस्य यस्यैव दोषस्य लिङ्गाधिक्यं प्रतयेत् ॥ तस्य तस्यौषधैः कुर्याद्विपरीतगुणैः क्रियाम् ॥ १६ ॥ जिस जिस दोषके लक्षणोंकी अधिकता जानें, तिस तिस दोषसे विपरीत गुणवाले औषधोंसे क्रियाको करै ॥ १६॥ हृत्पीडो/निलस्तम्भः शिरायामोऽस्थिपर्वरुक् ॥ घूर्णनोद्वेष्टनं गात्रश्यावता वांतिके विषे ॥१७॥ वातकी अधिकतावाले विषमें हृदयमें पीडा और ऊपरले वायुका स्तंभ और नाडियोंका आयाम और हड्डियोंका संधिमें पीडा, चूर्णन उद्वेष्टन और शरीरका धूम्रपना होताहै ॥ १७ ।। संज्ञानाशीष्णनिःश्वासौहृद्दाहः कटुकास्यता॥ मांसावदरणं शोफो रक्त :पीतश्च पैतिके ॥१८॥ पित्तकी अधिकतावाले विषमें संज्ञाका नाश, और गरमश्वास और हृदयमें दाह और कडवा मुख और मांसका विदीर्णहोना लाल और पीला शोजा ये होतेहैं ॥ १८ ॥ छZरोचकहल्लासप्रसेकोलेशपीनसैः॥ सशैत्यमुखमाधुय्यैर्विद्याच्छ्रेष्माधिकं विषम् ॥ १९ ॥ छर्दि अरोचक थुकथुकी प्रसेक उत्क्लेश पीनस शीतलता मुखका मधुरपना इन्होंकरके कफकी अधिकतावाले विषको जानों ॥ १९॥ पिण्याकेन व्रणालेपस्तैलाभ्यंगश्च वाचिके॥ नाडीस्वेदो पुलाकाद्यैर्वहणश्च विधिर्हितः॥२०॥ वातकी अधिकतावाले विषमें खलसे घावपै लेप, तेलकी मालिश, नाडीस्वेद, पुलाक आदिसे बृंहणविधि हितहै ॥ २० ॥ । पैत्तिकं स्तम्भयेत्सेकैः प्रदेहैश्वातिशीतलैः॥ पित्तकी अधिकतावाले विषको अत्यंत शीतलसेक और लेपोंसे स्तंभितकरै ॥ लेखनच्छेदनस्वेदवमनैः श्लैष्मिकं जयेत् ॥ २१॥ . और लेखन स्वेद वमनसे कफकी अधिकतावाले विषको जीते ॥ २१ ॥ कीटानां त्रिःप्रकाराणां त्रैविध्येन प्रतिक्रिया॥ स्वेदालेपनसेकास्तुकोष्णान्प्रायोवचारयेत् ॥ २२ ॥ अन्यत्र मूछितादशपाकतः कोथतोऽथ वा ॥ तीन प्रकारवाले कीडोंकी तीन प्रकारके चिकित्सा हितहै, और प्रायताकरके कुछेक गरमरूप स्वेद लेप सेकको उपाचरितकरै।।२२।।मूछितहुये मनुष्यको और दंशक पाकको और कोथको वर्जकरै ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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