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________________ San Arakende www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagansert Gyanmandie البطولید को देखा, राजा ने उसको अपने गोद में लेली, बड़े हर्ष को प्राप्त हुमा, मानो अपना शरीर अमृत की धारा में से सींचा जाता है। पुत्रा को गद्गद् स्वर से पूछता है-हे बसे । तेरे शरीर में पीड़ा कम हुई ? पुत्री ने कहा पिता * जी! मेरे शरीर में कुछ भी वेदना नहीं है। यहां चिता क्यों बनाई गई? स्मशान भूमि में मुझे लाने का क्या कारण है ? यह मण्डलादि क्यों किये गये? इतने आदमी क्यों इकट्ठहोकर रुदन और विजाप करते हैं ? यह सब सुन राजा बोला, हे पुत्री ! तुझे काले सांप ने डसा था । जब तू निश्चेष्ट हुई और वैद्य तथा-मन्त्रवादी अलग हुए, तब यहां श्मशान भूमि में तूलाई गई है, परन्तु इस हितकारी पुरुष ने तुझे और मुझे प्राणदान दिया है, यह निष्कारण परोपकारी है। यह सुन कन्या बोली हे पिता जी! यदि यह बात इसी प्रकार है, तो यह पुरुष मेरा प्राणप्रिय भर्ता है। ऐसी बात सुन राजा प्रमुख सब लोगों ने “अच्छा २" वचन उच्चारण किया। पीछे हाथी के स्कंध पर कुमार सहित कन्या को बैठाकर हर्ष, मंगलगीत, पाय और उत्सव सहित 5 नगर में प्रवेश करा कर राजा अपने घर ले आया। वहां पुत्री का जन्मोत्सव बड़ी धमधाम से कराया और प्रधान मन्त्री को बुलाकर कुमार की मूलशुद्धि पूची। तब मंत्री ने कहा, यह सार्थवाह के पास कर्मकर (दास) है, ऐसा सुनते हैं, असली बात सार्थवाह को F त पूबने से पता लगे। तब राजा ने सुधन सार्थवाह को बुलाया और पूछा। तब उसने कहा हे स्वामी ! इसकी المعلم المحلية For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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