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श्री अष्ट
प्रकार पूजा
* श्रीमजिनेन्द्रायनमः . श्रीमान धिमा सानहरिनाराज के कसे भेटे
भूमिका। यः पुष्पैर्जिनमर्चति स्मितसुरस्त्री लोचनः सोऽय॑ते । यस्तं वन्दत एकशस्त्रिजगता सोऽहर्निशं वन्द्यते ॥ यस्तं स्तौति परत्र वृत्रदमनस्तोमेन स स्तूयते । यस्तं ध्यायति रुकृप्तकम निधनः स ध्यायते योगिभिः ।।
सशोकअनुसार जैन शासन में पूजा दो प्रकार की कही है, द्रव्य और भाव, श्रावक लोग प्रतिदिन द्रव्य। पूजा से लाभ उठाते हैं और साधुगण अदर्निश भाव पूजा किया करते हैं परन्तु भावपूजा द्रव्य पूजा के विना कठिन साध्य
और दुर्बोध है, अतः द्रव्य पूजा का ही इस पुस्तक में विवरशा दिया गया है। इसके मूल मूत्र शासा, राय पसेशी और जीवाभिगम श्रादि हैं, इन में पूजा के कई प्रकार सविस्तर वर्णन, परन्तु मुख्य भेद गन्धादि पाठ हैं। इन्हीं आठों को लेकर धर्मोपदेश दाता श्री विजयचन्द्र केवली ने अपने पुत्र राजा हरिश्चन्द्र के सामने अष्टप्रकार की पूजा विधि और प्रत्येक का महात्म्य सविस्तर कथा के साथ दिखाया। गुजराती भाषा में यह पुस्तक छप चुकी है परन्तु उस पुस्तक से हिन्दी जनता
को लाभ नहीं पहुंचता था, इस कठिनाई को मिटाने के लिये हिन्दी भाषा में छपवाने का प्रयत्न किया गया। इस कार्य में । जिन २ सोत्साह धार्मिक बाइयों ने द्रव्य सहायता दी, उनका नामोल्लेख धन्यवाद सहित यहां प्रकाशित किया जाता है। k१ ॥
علم للجلد
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