SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ San Mahavir lain Aradhana Kendra Acharya Sha Kaassaganan Gyanmand पूजा श्री भ्रष्ट । अचल है। निर्मल सूर्य के सामने दृष्टि है। भयंकर कठिन तपस्या करते हैं। इनकी कान्ति देवताओं से भी अधिक प्रकार है। तेज़ से सूर्य समान है। मध्यान्ह काल में सूर्य की तीक्ष्ण किरणों से तपे हुए शरीर से पसीना होता है। . जिस से देह का मैल भीग जाता है पुनः शरीर से दुःखदायी दुर्गन्ध प्रकट हुई है। ऐसे राजा के बचन सुनकर रानी ॥ ३ ॥ बोली। इस मुनिराज का धर्म तो सुन्दर है, श्री वीतराग प्रभु ने शाखों में निरूपण किया है, यदि मामुक (कास), । जल से साधु को स्नान कराया जाय तो कुछ दोष नहीं। ऐसा सुनकर राजा ने कहा है सुन्दरी ! ऐसी बात मत कहो। देखो जो साधु होते हैं वे संयम रूप जल से ही स्नान करके सुखी और पवित्र होते हैं। यह बात सुन रानी ने कहा मैं ज़रूर स्नान कराऊंगी, जिससे इस साधु की यह दुर्गन्ध मिट जायगी । पुनःपति ने एकवार,दोवार D निषेध किया तथापि स्त्रियों के हठीले स्वभाव से पति के वचन को नहीं माना। तब राजा अपनी प्रिया का हल । जानकर पर्वत के झरणों का जल वृक्ष के पत्तों का दोना बनाकर प्रामुक जानकर मँगाया और रानी को सौंपा। D रानी ने प्रसन्न होकर अपना मनोरथ पूर्ण जाना । पुनः अत्यन्त प्रसन्न हो उस साधु के शरीर को अत्यन्त स्नेह से । । स्नान कराया और वस्त्र से पूछ कर सुगन्धित द्रव्य और पावन चन्दन से लेप किया, फिर दोनों ही राजा रानी D मुनि को बन्दन कर, विमान पर चढ़ कर अगाडी चले। For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy