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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आराधनास्वरूप । [ ४१ उत्तर - जैसे रागादिक मिटाबनेका जानना होय सोइ जानना सो सम्यक ज्ञान है । प्रश्न – सम्यक् चारित्र किसको कहते है ? उत्तर—जैसे रागादिक मिदे सोही आधार सम्यकुचारित्र है ऐसा मोक्षमार्ग प्रकाश पृष्ठ ३२६ में कहा है । प्रश्न - राग किसको कहते है ? उत्तर - किसी पदार्थको इष्ट (मनकुं प्रसन करे) ऐसा जानकर उसमें प्रीतिरूप परिणाम उसको राग कहते है । प्रश्न - द्वेष किसको कहते है ? उत्तर -- किसी पदार्थको अपना अनिष्ट (अप्रिय) ज्ञान उसमें अप्रीति परिणाम उसीको द्वेष कहते है । शिष्यका प्रश्न | ज्ञानवंतको भोग निर्जरा हेतु है। अज्ञानीको भोग बंध फल देतु है | यह अचरजकी बात हिये नहि आवही, पुछे कोउ शिष्य गुरू समझावही || उत्तर (सवैया ३१ सा. 1) दया दान पूजादिक विषय कषायादिक दुहु कर्म भोगये दुहूको एक खेत हे || ज्ञानी मूढ करम करत दीसे एकसे पैं परिणाम भेद न्यारो न्यारो फल देत है ॥ ज्ञानवंत करनी करे पैं उदासीन रूप ममता न घरे ताते निर्जराको हेतु है | वह करतुति मुढ करे पे मगन रूप अंध भयो ममतासों बंध फल लेत है । अष्टांग वंदनाकी स्तुति । जुगल पानी जुगल पांड, पंचम शीस सपर्श भूवी । विमल मनोवच काय, यह अष्टांग प्रणाम हुवी ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020069
Book TitleAradhana Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Harjivandas
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages61
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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