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________________ ऐलबा (वा) लुक १८२६. ऐलबा (वा) लुक - संज्ञा पुं० [सं०ली० ] एलबालुक । श० २० । ऐलाइल- ट्रिब्रोमाइड - [c allyl-tribromide] एक डाक्टरी औषध | ऐलाष्टर - [ सेलखड़ी । ० alabaster ] संगजराहत । ऐलिक्सिया - स्टिलेटा - [ ले० mlyxia stellata, Rom. & Sch. ] एक प्रकार का पौधा । ऐलिसिकार्पस - लॉङ्गिफोलियस - [ ले० alysioar pus-longifolius, W. & A. ] शिम्बी वर्ग का एक पौधा, जिसकी जड़ मुलेठी की प्रतिनिधि है । ऐलिसिकार्पस-वैजिनेलिस-[ले० alysicarpusvaginalis, D. C. ] नागबला । ऐलीगर - [ ० alegar ] यवशुक्र । जौ का सिरका | ऐलीपीन - [ श्रंo alypin ] दे० "एलीपीन " | ऐलेट (न्थस एक्सेलसा - [ ले० sailant (b ) us excelsa, Roxb. ] महानिम्ब । महारुख | ऐलेण्ट(न्थ)स ग्लैण्ड्युलोसा- [ ले० ailant (ii) us glandulosa, Desf. ] पौधा विशेष । ऐलेण्टस- मालाबैरिका - [ श्रं० ailantus-mal; harica, D. C. ] गुग्गुलधूप - ( बम्ब० ) । महिपाल - (मद०) । ऐलेटिक एसिड - [ श्रं० ailantic acid ] महानिम्बाम्ल | ऐलेण्टोल–[ श्रं० ailantol ] रासन (Elecampane ) का पकाया हुआ एक प्रकार का अर्क जो 7 बूँद की मात्रा में राजयक्ष्मा में उपयोगी सिद्ध होता है । ऐलेय (क) - संज्ञा पुं० [सं० नी० ] ( १ ) नलुका | शाक । ( २ ) एलबालुक । श्रम० । “ऐलेय विश्वधान्यकम्" । सि० यो० । च० द० रक्त ऐल्केन्ना टिंक्टोरिया कल्क द्रव्य - दारचीनी, श्वेत चन्दन, सुगंधवाला, धूपसरल, कुमुद, निलोफर, मेदा, महामेदा, मुलेठी, मुनक्का, वंसलोचन, सौंफ, काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, ऋषभक, कस्तूरी, बनतुलसी और कपूर प्रत्येक अर्ध अर्ध पल प्रमाण लेकर जल में पीसकर कल्क बनाएँ । पुनः श्रग्निसंस्कार करें । सिद्ध हो जाने पर निम्न रोगों में प्रयुक्त करें । गुरण तथा उपयोग - शिरोरोग और नेत्र रोगों में नस्य, श्रभ्यङ्ग, उद्वर्तन, आलेपन आदि द्वारा व्यवहार करना चाहिये एवं कान में डालना चाहिए। इसके व्यवहार से शिरोभ्रमण, कंप, शरीर का दाह, शिर का दाह, नेत्र का प्रयन्त दाह, विसर्प, शिर के घाव, मुखशोष, भ्रम और पित्त जन्य रोगों का नाश होता है । र०र० स० २१ श्र० । ऐले यसर्पि-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] उक्त नाम का एक श्रायुर्वेदीय योग । निर्माण-विधि - एलवालुक नामक फल का स्वरस और उसके समान गोदुग्ध तथा चन्दन, मुलेठी, दाख, महुए का पुष्प, वंसलोचन और मिश्री इनके कल्क से घृत सिद्ध करें । पि० चि० । वासाखण्ड कुष्माण्ड । ऐलेयक-तैल-संज्ञा पु ं० [सं० क्ली० ] उक्त नाम का एक योग जिसमें एलबालुक ही प्रधान द्रव्य है । निर्माण-विधि - एलवा लुक स्वरस १ चाढक, कुमारी स्वरस १ श्राढक, श्रामले का रस २ प्रस्थ, शतावरी का स्वरस २ प्रस्थ, गो दुग्ध १ द्रोण, तिल तैल १ ढक | गुण-प्रयोग - इसके उपयोग से पित्तजन्य विकार, वात और पित्त मिले हुये रोग, शिरोभ्रम और कंप का नाश होता है । २०२०स० २१ श्र० । ऐल्कलाइड - [ अं० alkaloid ] क्षारोद | ऐल्कलाइन - [ श्रं० alkaline ] जारी | ऐल्कलाई–[ श्रं० alkali ] [ श्रु० अल्कलिय ] [ बहु० - इस, - ईज़ ] तार । ऐल्क लिज - [ ० बहु० alkalis ] दे० "ऐल्कलाई” । ऐल्कली - [ ० alkali ] दे० "ऐल्कलाई " । ऐल्कलीज़ - [ श्रं० बहु० alkalis ] दे० "ऐल्कलाई”। ऐल्का (के) लाइन डेण्टिफ्राइसेज-[श्रं०alkaline dentifrices] क्षारीय दंत- मञ्जन । ऐल्कुहाल - [ श्रं० alcohol ] दे० "एलकोहल" । ऐल्केन्ना - टिंकटोरिया - [ ले० alkanna-tinetoria ] रजनजोत ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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