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________________ सीट एलाइड १८०८ उपयोग - ऐण्टिकामनिया को ज्वरहर (Antipyretic), स्पर्शाज्ञताजनक (Anodyne ) ओर वेदनास्थापक ( analges.c) रूप से ज्वर, वातज वेदना, शिरःशूल, श्रमवात प्रभृति व्याधियों में देते हैं । ( ३ ) ऐण्टिनर्वोन Antinervin— सैोमैलिड Saloromalid इसमें सैलीसिलिक एसिड, ऐस्टिफेत्रीन और पोटाशिम् श्रीमाइड मिली हुई होती है । 14 योग - वातवेदना ( Neuralgia ) मृतिप में गुणकारी है। प्रभृ ( ४ ) ऐण्टिसेप्सीन Antisepsin या मोनोब्रोम एसीट श्रनीलाइड MouobromAcet-anilide — इसके सफेद नुकीले स्वाद रहित बारीक-बारीक रवे होते हैं। इसमें भी ऐरिटफेत्रीन मिलो हुई होती है । उपयोग - यह दवा मुख मंडलगत वातवेदना (Facl neuralgia ), नाडी- प्रदाह( Neuritis ) र श्रमवात ( Rheum atism ) में गुणकारी है । मात्रा -१ से ८ प्रन= 1⁄2 से ४ रत्ती तक | नोट – इस औषध को भी ऐस्टिफेब्रीन की तरह अधिक मात्रा में देने से शरीर नीला पड़ जाता है, इत्यादि । (दे० फेनाजूनम् के अंतर्गत ऐण्टिफेत्रीन जन्य विषाक्रता श्रादि ) (५) हिनोन Hypnone —यह एक बेरंग तरल श्रोषध है, जो १॥ से ५ बूंद तक की मात्रा में गोंद के लुनाब या शर्बत प्रभृति में मिलाकर निद्राजनन प्रभाव के लिए व्यवहार में श्राती है । परन्तु इसका उक्त प्रभाव विश्वसनीय नहीं तथा इसके उपयोग में सावधानी नितांत पेक्षित होती है । (६) मेरेटीन Maretin — यह भी एक सफ़ ेद स्फटिकीय चूर्ण है, जिसमें ऐण्टिफेत्रीन होती है । यह पानी में अत्यल्प विलीन होता है। वातज शिरःशूल ( Neuralgic headache ) में यह एक गुणकारी औषध है। इसके उपयोग से शिरोशूल तत्काल निवृत्त होता है । ज्वरघ्न रूप से उरः ततजन्य तीव्र ज्वर में भी इसका उपयोग करते हैं । एसटीड मात्रा - ३ से १० प्रन=१ ॥ से ५ रत्ती तक । (७) न्युरोनल Neuronal — इसमें ४१ प्रतिशत ब्रोमीन होती है । मात्रा - १० से २० प्रोन = ५ से १० रत्ती तक | उपयोग - यह श्रोषध निद्राजनक ( Hypnotic) और श्रवसादक ( Sedative ) गुण के लिये बहुप्रयुक्त होती है । नोट- मृगी में यह श्रौषध विशेष उपकारी प्रमाणित हुई है । इसमें अधिक परिमाण में ब्रोमीन होने के कारण यह वात- सूत्रों के क्षोभ निवारण करने में उत्तम सिद्ध होती है । इससे नींद और शांति (तसकीन ) दोनों ही गुण भली-भाँति प्राप्त होते 1 ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के सन् १९७५ ई० के चुने हुये लेखों में यह उल्लेख है कि एक पागलखाने में ४० उन्माद रोगियों पर निद्राजनन एवं श्रवसादन गुण के लिये इस श्रौषध का उपयोग किया गया, ( श्रद्ध' ग्रेन की मात्रा से उक्त श्रौषध का प्रयोग प्रारम्भ किया गया। पर जब रोग का वेग होता तो इसकी मात्रा ३ प्रोन तक कर दी जाती । तथापि श्रहर्निशि में ६ प्रेन से अधिक एक रोगी को नहीं दी गई । ) फलतः अन्य निद्राजनक श्रौषधों की अपेक्षा इसे आशुप्रभावकारी पाया गया । लंडन का लैंसेट नामक प्रसिद्ध पत्र भी इसका प्रशंसक है। उसके अनुसार श्रनिद्रा (Irso mnia) और कम तीव्र उन्माद ( Subacute mania) में यह एक प्रत्युपयोगी श्रौषध है । इसको कई दिन तक निरंतर देते रहने से इसका कोई हानिकर प्रभाव प्रकट नहीं होता । जब इसे परित्याग कर दिया जाता है तो अन्य निद्राजनक औषधों के विरुद्ध, इसे त्याग देने से रोगी को किसी प्रकार का कष्ट अनुभव नहीं होता। क्योंकि वह इसका अभ्यासी नहीं होजाता । (८) फेनलजीन Phenalgin—यह भी ऐस्टिफेबीन और श्रमोनिया प्रभृति का एक सफ़ ेद रंग का चूर्ण होता है, जो जल में विलेय
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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