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________________ १८०३ • एसिड लीव्यूलिनिकम् एसिडम् - लीव्युलिनिकम् -[ ले० acidum levu linicum ] एसिड लोब्युलिनिक । एसिडम्-लैक्टिकम्-[ ले० cum ] दुग्धाम्ल । एसिडम्-लैक्टिकम्-डायल्यूटम् [ ले० acidum lacticum dilutum ] जलमिश्रित दुग्धाम्ल । एसिडम्-लोरीसिकम् - [ ले० acidum-lauricicum ] लोरिसिक एसिड । एसिडम्-सल्फ्युरिकम् - [ ले。acidum-sulphuricum ] गन्धकाम्ल | दे० " गन्धक" । एसिडम्-सल्फ्युरिकम्-एरोमेटिकम्-[ले०acidum sulphuricum aromaticum ] सुरभित गन्धकाम्ल | दे० " गन्धक" । एसिडम्- सल्फ्युरिकम् - डायल्युटम् [ ले०acidum sulphuricum-dilutum ] जलमिति गन्धकाम्ल | दे० "गन्धक" । एसिडम्- सल्फ्युरोसम् - [ ले०acidum-sulphurosum ] एक प्रकार का वर्ण रहित द्रव, जिसमें से गंधक की तीव्र गन्ध श्राती है । यह भी एक प्रकार का गंधकाम्ल है । पर्याο [० - सल्फ्युरस एसिड । गन्धकाम्ल । फिशल (Official.) रासायनिक सूत्र ( H2SO 2) निर्माण-कम-गंधक को खुली हवा या श्रोषजन (Oxygen ) में जलाने या गन्धकाम्लको काष्ठाङ्गार- लकड़ी का कोयला या पारद वा ताम्र के साथ कथित करने से सल्फ्युरस अनुहाइड्राइड के जो वा प्रादुर्भूत होते हैं, उनको जल में जब कर लेते हैं। इसमें पाँच प्रतिशत ( भार में ) सल्फ्युरस न्हाइड्राइड होता है। इसका श्रापेक्षिक भार १०२५ होता है । acidum-lacti मिश्रण वा खोट - सल्फ्युरिक एसिड (गंधकाल) और खनिज पदार्थ । प्रभाव - यह पराश्रयी कीटघ्न (Antiparasitic.), पचननिवारक (Antiseptic ) और दौर्गन्ध्यहर है । मात्रा - 2 से १ फ्लुइडड्राम = ( २० से ४० घन शतांश मीटर ) । एसिडम् सल्फ्युरोसम् सम्मत योग (Official preparations ) सोडियाई सल्फिस ( Sodii sulphis )। दे० "सोडियम् साल्ट्स" । असम्मत योग Not official preparations सोडियाई हाइपो - सल्फिस Sodii Hyposulphis, सोडियम् वियोसल्फेट ( Sodium theosulphate ) - यह स्फटिकीय होता और समानभाग जल में विलीन हो जाता है; किन्तु एलकोहल में विलेय होता है। इसका १० प्रतिशत का सोल्युशन ( घोल ) क़ोश्राज्मा ( व्यङ्ग वाई) और रिंगवर्म ( द ) प्रभृति पर लगाने से उपकार होता है। आध्मान (Flatul ent) में इसको ५ प्रन की मात्रामें भोजन के दो घंटे के उपरांत देने से लाभ होता है। मात्रा -१० से ६० प्रेन =५ से ३० रत्ती तक = ( ६५ से ४ ग्राम ) सल्फ्युरस एसिड के प्रभाव तथा उपयोग ( वाह्य ) सल्फ्युरस एसिड एक प्रबल शोधक - कृमिनाशक और दौर्गन्ध्यहर है । इसलिये प्रायः संक्रामक रोगों मैं गृह को रोग की छूत से स्वच्छ-सुरक्षित रखने के लिए, उसमें गन्धक सुलगाया करते हैं। जिस कमरे में गन्धक सुलगाना हो, उसके सभी दरवाजे और खिड़कियाँ बन्द कर देनी चाहिए। यदि छिद्र आदि हों, तो उनपर काग़ज़ चिपका दें। पुनः गंधक को एक दो गेठियों में सुलगा कर और कमरे के भीतर रखकर, तुरंत बाहर निकल आना चाहिए । नोट - (१) कमरे के भीतर गंधक सुलगा कर उसके कपार्टी को ६ या ७ घण्टे तक बंद रखना चाहिए। और फिर उसके समग्र दरवाजे और खिड़कियाँ खोल देनी चाहिए, जिसमें कमरे में शुद्ध वायु का भलीभाँति आवागमन होने लगे । (२) प्रति सहस्र घन फुट वायु को स्वच्छ एवं कीटशून्य करने के लिए दो पौंड गन्धक जलाना चाहिये । (३) कमरे में गंधक जलाने से पूर्व, उस कमरे के फर्श को पानी से वर कर देना चाहिये,
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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