SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 632
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कसौजा कसौजा कसुदी-(मारवाड़ी)। कैफेटीर डीस नेग्रेस | पैदा होती है। हर एक कार्य करने की उमंग पैदा Cafetier des Negres (फ्रां.)। होती है। जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा वीर्य. गुणप्रकाशिका संज्ञा-"कासारिः"। स्थान शुद्ध होकर कामोद्दीपन शक्ति भी बहुत बढ़ती शिम्बी वर्ग है। (जंगलनी जड़ी बूटी) (N. O. Leguminosæ ) गुणधर्म तथा प्रयोग उत्पत्ति-स्थान--कसौंदी का तुप संसार के ) आयुर्वेदीय मतानुसारउष्ण प्रधान प्रदेश और भारतवर्ष में हिमालय से | लेकर पश्चिम बंगाल, दक्षिण भारत, ब्रह्मा और कासमर्दः सुतिक्तः स्यान्मधुरः कफवातजित् । लंका पर्यंत समग्र स्थानों में यत्र तत्र होता है । विशेषत: पित्तहरः पाचन: कण्ठशोधनः ।। रासायनिक संघटन-इसके बीज में बसामय (ध०नि०) . पदार्थ (Olein and Margarin) कसौंदी-कडुई, मधुर तथा कफ एवं वात कषायाम्ल, शर्करा, निर्यास, श्वेतसार, काष्ठोज नाशक है और विशेषतः पित्तनाशक, पाचन एवं (Cellulose) एक्रोसीन, कैल्सियम सल्फेट कंठ को शुद्ध करनेवाली है। और फास्फेट अंशमात्र, लवण, मेग्नेसियम सल्फेट कासमर्दः सतितोष्णो मधुर: कफवातजित् । लौह, सिकता (Silica ), सेवाम्ल (Ma. - lic acid) ओर क्राइसोफेनिक एसिड-ये अजीण कास पित्तघ्नः पाचनः कण्ठशोधनः ।। द्रव्य पाये जाते हैं। (फा० इं० १ भ० पृ० (रा०नि०) १२० । ई० मे० मे० पृ० १८१) कसौंदी-कडुई, गरम, मधुर कफवातनाशक, औषधार्थ व्यवहार-पत्र, मूल और बीज । पाचन स्वर को सुधारने वाली और अजीर्ण एवं औषध- निर्माण-पत्रस्वरस । खाँसी को दूर करनेवाली तथा पित्त नाश करने मात्रा-१-२ तोले। वाली है। मलकल्क-२-४ श्राना भर। अग्निदीपन: स्वादुश्च । (राज.) बीज-चूर्ण-(शिशु को) १ आना भर। विविध वात विहन्ता मूत्रवात कफेहितः । मूलनिर्मित फाण्ट Infusiori of root (२० मे०१) मधुरः कफवातघ्नः पाचनः कण्ठशोधनः । मात्रा-११-२॥ तोले । समग्र क्षुप का काढ़ा, विशेषतः पित्तहर इत्युक्तः कासमईक ॥ .. (१० मे०१). मात्रा--२-६ ड्राम । बोज-चूर्ण (अत्रि. १६ अ.) . निर्मित क्वाथ (१० मे०१), मात्रा--२॥ तो० कसौंदी-अग्निदीपक और मधुर है (राज.)। . से । छटाँक पर्यंत मृदुरेचक, मलावरोध में कसौंदी-नाना प्रकार के वायु एवं विदोष सेव्य है को नाश करती और मूत्र, वात एवं कफ में हित. आयुर्वेदिक काफी-कसौंदी के बीज । सेर कारी है तथा मधुर, कफवात नाशक, पाचक लेकर हलकी आँच पर घी में सेंक लेना चाहिये । और कंठ को शुद्ध करने वाली है। विशेषकर यह फिर उसको पोसकर उस चूर्ण में छोटी इलायची पित्त नाश करनेवाली है। के बीज १ तोला, कंकोल प्राधा तोला,तज प्राधा मधुरः कफवातघ्न: पाचनः कण्ठशोधनः । तोला, जायफल 'तीन माशे, जावित्री ३ माशे, सौंफ ३ माशे, केशर १॥ माशे लेकर सबका चूर्ण विशेषतः पित्तहरः सतिक्त: कासमईकः ।। करके मिला देना चाहिये । इसे काफी की तरह (सु० सू० ४६ १०) बनाकर पीने से बालक, जवान और बुड्ढे सबको कसोंदी-मधुर, कफवातनाशक, पाचन, गले . बड़ा लाभ होता है । इसके पीने से काम काज से को साफ करने वाली और विशेषतः पित्तनाशक भाने वाली सुस्ती दूर होती है। मन में प्रसन्नता । और कबुई है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy