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________________ कसीकून, कसील २३५६ कसीस कर्नल चोपरा के मतानुसार यह रकशोधक है। कसीवमालस-[रू. ] हशीशतुजुजाज। - इसकी जड़ें मासिकधर्म की अनियमितता को दूर कसीस-संज्ञा पु० [सं० कासीसम् ] लोहे का एक करने के काम में ली जाती है। प्रकार का विकार जो खानों में मिलता है और कसीकून, कसील-[यू०] जंगली सोसन । रासायनतः इसे प्रयोगशालाओं में भी तैयार करते कसीतरोर-[?] सज्जी की कलई। हैं । योग भेद से यह विविध वर्ण और प्राकृति क्रसीद-[१०](1) सूखा मांस । खुश्क गोश्व । का होता है। आयुर्वेद में मुख्यतः इसके ये दो सुखाया हुआ गोश्त ।। भेद लिखे हैं-एक हरा जिसे 'धातुकासीस' क्रसीदस-यू.] काकनज । अथवा हरा वा हीरा कसोस कहते हैं, दूसरा पीला क सोदः, कसूद-[अ० ] मोटा गूदा। मख्ख फर्बः । जिसे 'पांशु' वा 'पुष्प कासीस' कहते हैं। कसीदा-[?] काला तज । स्याह सलीला । हकीमों ने ज़ाज का कसीस और शिव का कसीफ-[अ० कसीफ़ ] सांद्र । गाढ़ा। ग़लीज़ । घना। अकिल । भद्दा । गेंदला | Dense फिटकिरी अर्थ किया है और यह सभी लोग लतीफ का उलटा। जानते हैं कि उन दोनों पदार्थ एक दूसरे से सर्वथा कसीर-[१० कसीर ] (१) कोताह । छोटा । कम। भिन्न हैं। जाज (कसीस) खनिज और कृत्रिम (२) कोताही करनेवाला । दोनों प्रकार की होता है और नाना वर्ण की होती कसीर-[ १० कसीर] हैं। इनमें से सफ़ेद, पीला,लाल और हरा कसीस संज्ञा [ देश० ५० ] कचूर। प्रमुख हैं। हरे कसोस को ज़ाज सब्ज वा हीरा (रू.] हलफाड़। कसीस कहते हैं। जाजुल प्रसाकिफः दोनों कसोस कसीराऽ-संज्ञा पुं० [ कतीरा का मुश्र०] कताद | के नाम हैं। जाजुल प्रसाकितः को ज़ाज कप्तगराँ की गोंद। भी कहते हैं और लिखते हैं कि यह जाज स्याह कसीराम-[ सिरि० ] जंगली खीरा (रू यार)। है। यह जब पानी में पड़ती है, काली हो जाती कसीरी-[अ०] अज़ादहे का एक भेद । है । इसे ही शुतुर दंदाँ ( उष्टदंता) कहते हैं। जाज सुखं (रक कासीस) के भीतर का भाग कसीरा-[फा० कतीरा से मु१०] कतीर । गुलू की कृष्ण वर्ण होता है और उसमें छिद्र होते हैं और गोंद । उससे दुगंधि पाती है। इसमें से जो नीलवर्ण कसीरू-संज्ञा पु० दे० "कसेरू"। होती है, वह अपेक्षाकृत निर्वलतर होती है । जाज क़सीरू-[१] हल्फ़ा। सुन और ज़ाजुल प्रसाकिफ़ः दोनों को ज़ाज सफ़ेद कसारुल अज्लाअ-[१०] बारतंग । श्वेत कासीस भेद लिखा है । पर, आश्चर्य तो कसीरुल अरिज्ल-[१०] विसफाइन । यह है कि जाज सक्नेद का अर्थ स्फटिका करते हैं। कसीर ऊस-[अ० ] कस अनः। यद्यपि स्फटिका का कोई ऐसा भेद नहीं है जो पानी में पड़ने से कृष्ण वर्ण हो जाय । इससे ज्ञात कसीरुगिजा-[१०] वह वस्तु जिसका प्रायः भाग होता है कि ज़ाज सफ़ेद का अर्थ स्फटिका नहीं शरीरावयव में परिणत हो जाय । वह चीज़ करना चाहिये । अपितु जाज का अर्थ कसीस करके जिससे खून ज़्यादा पैदा हो । कसीरुल तग़ाज़ियः । कसीस के चार भेद निर्धारित करना चाहिये । Polytrophia वृहणीय आहार । सफेद, पीला, हरा और लाल। किंतु ग्रंथोक कसीरुल मुन्फअत-[अ०] ख़त्मी ।। भ्रमात्मक विवेचना के कारण जाज सफेद का कसोरुल वरिक-[ अ० ] ( १ ) हजुबुल । ग्रहण स्फाटिका के अर्थ में होने लगा। (२) मुफ़िलुन । जालीनूसके मतानुसार ज़ाज वा कसीस के सम्पूर्ण कसीरुश्शश्रर-[अ० ] हंसराज | परसियावशाँ । भेद जलीय द्रवांरा हैं, जो सांद्रीभूत हो जाते हैं। कस्रीला-[ नन्ती ] एक पौधे की लकड़ी। किंतु वे अपूर्णावस्था में हो रह गयेहें। जब पानीमें
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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