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________________ २३४५ कशीरास कश्गेम, करंजेम कशोरास-[.] तेखिनी मक्खी ।ज़रारीह। कशेरु-संज्ञा पुं० [सं० स्त्री.] कसेरू । तृणकंद कशोरु-[फा०] Cotoneaster num. विशेष । mularia, Fiscls. एक पेड़ जिससे शीर- कशोधा-[ मन० ] अञ्जनी । लोखंडी।। खिस्त निकलता है । स्याह चोव । कश्श-[अ०] गिरिगिट । कृकलास । कशीश-संज्ञा पु. [ देश द.] हीरा कसीस। कश्ः -[अ] कसूस । कसीस। कश्रीर:-[अ.] किसी किसो ज्वर में होनेवाली कशू-[फा०] कछुपा। - वह दशा जिसमें बुखार चढ़ने से रोंगटे खड़े हो कशूर-[फा०] खटमीठा अंगूर । जाते हैं । रोमहर्षण । शैत्य । झुरझुरी। फुरेरी कशूर-[१०] वह दवा जो चेहरे पर, उसका रंग | कुराशः।रीगर Rigor, चिल chill [अ॰] । निखारने के लिये मली जाये। | कश्क-संज्ञा पुं० [अ०] (१) उबाले हुए जौ का कशूस-संज्ञा पुं० [अ० कशूस.] (1) आकाश- पानी । पाश । प्राश जौ । (२) सूखा दही घेल । (२) तुम कसूस । प्राकाशबेल का जिसे कहत भी कहते हैं। (२)हरोसा । (४) बीज। वह जौ जिसमें से कूट फटक कर भूसी साफ़ करदी कशूस. रूमी-[.] अफ्रसंतीन । गई हो । निस्तुषीकृत यव । जौ मुकरशर । जौ कशूसा-संज्ञा पुं॰ [.] ३० "कशूस"। बिरहना। कशूके कलि-ता०] लाल पटुवा । लाल अंबाड़ी। संज्ञा पुं॰ [फा०] (१) महोखा पनी । कशेरु, कशेरुक, कशेरू-संज्ञा पुं॰ [सं० पु. क्री.] अक्रमक । (२) पनीर । भक्ति । पीठ को लंबी हड्डी । रीद । पृष्ठ कोकस । मेरु- | कश्कक-[फा०] प्राश हलीम। . दंड। मोहरा । (Vertelers ) हला०1 | कश्कब,कश्काब-[फा०]माश जौ वा प्राश हलीम । __संज्ञा पुं॰ [सं० की.] कसेरू । २० मा०। कश्कीन,कश्कीन:-[फा०] जौ की रोटी । जौ की दे० "कसेरू"। मिली हुई रोटी। कशेरु स अक्षका-संज्ञा स्रो० [सं०] एक पेशी कश्कुश्शाई र-[३०] उबाले हुए जव का पामी । विशेष। ___कश्काब । प्राश जौ। जो पाश । माउश्शईर । कशेरुक, कशेरूक-संज्ञा पुं॰ [सं० श्री.] कशेरु । arent arex Barley Water ( 90 ).. कसेरू । प० मु०। कश्गेम,कश्जेम-[ लेपचा ] गुरुव । पाखी । कुची । कशेरुका कशेरूका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] () आश जौ और कश्क जौ का अर्थान्तर- . पीठ की लंबी हही। पृष्ठवंश । रोड़। रत्ना। . यदि भूसी दूर किये हुये जौ को जल में पका वैःनिघ।(२)कसेरू। अमः। कर बिना मले छान लें, जिसमें केवल उसका कशेरुका कंटक-संज्ञा पुं॰ [सं०] रीढ़ की हड्डी का | सूचमांश ही पाने पावे, स्थूल भाग नहीं, तो उसे मोकीला प्रवर्द्धन। आश जौ कहते हैं । यदि कथनोपरांत जौ को मल(Spine of vertelera) प्र. शा० । घोटकर गाढ़ा पानीलें, तो उसे करकुश्शाई.र, करक कशेरुका कीट-संज्ञा पुं॰ [सं०] कीट विशेष ।। शईर वा कश्क जो कहेंगे । इसके निर्माण-क्रमादि कशेरुका प्रीवा-संज्ञा स्त्री० [सं०] रीढ़ की अस्थि के लिए देखिए "माउश्शाईर"। की गरदन । प्र. शा०। प्रकृति-रूक्षता लिये हुये शीतल । ... कशेरुका पृष्ठ-संज्ञा पुं० [सं०] रीढ़ की अस्थि की गुणधर्म तथा प्रयोग-यह प्राश जो की पीठ। प्र० शा०। कशेरुका पाश्चात्य प्रवद्धन-सं० पुं० [सं० को०] अपेक्षा अधिक सांद्र है, पैत्तिक प्रतिसार के लिए रीढ की हड़ी का एक उभार ।। गुणकारी और उष्ण प्रकृति वालों तथा तपेदिक कशेरुपत्रक-संज्ञा पुं० [सं०] कशेरुफलक । (La के रोगियों के लिए प्रत्युत्तम पथ्य है। यह शक्ति mina of Vertelerse.) की रक्षा करता, शीघ्र उत्तम रक उत्पा करता ७४ का
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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