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________________ कलियारी कलियारी में विशिष्ट होने के कारण इसका सावधानी पूर्वक कलिकारी कटुष्णा च कफ वात निकृन्तनी। उपयोग करना चाहिये । पर मोहीदीन शरीफ़ इसे गर्भान्तः शल्य निष्कास कारिणी सारिणीपरा ।। १२ प्रेन (६ रत्ती) तक की मात्रा में विषाक्त (रा. नि. ४ व०) "नहीं मानते, प्रत्युत इसके विपरीत इसे वे परिवर्त्त __ कलिकारी-करियारी कटु स्वाद, उष्ण वीर्य, नीय बल्य और नियतकालिक ज्वरनाशक (Ant और कफ वात नाशक है तथा गर्भ और अतः -- iperiodic ) बतलाते हैं । वे लिखते हैं कि शल्य को निकालने वाली एवं दस्त लानेवाली है। प्रथम मैंने इसका स्वयं प्रयोग किया, तदुपरांत कलिहाकारी सरा कुष्ट शोफाशों व्रण शूलजित् । दूसरों को इसका प्रयोग कराया। संभव है कि सक्षारा श्लेष्म जित्तिक्ता कटुका तुवरापिच । यह अपेक्षाकृत अत्यधिक मात्रा में विषाक हो, | तीक्ष्णोष्णा क्रिमिहल लध्वी पित्तला गर्भपातनी परन्तु जहाँ तक संभव था मैंने इसका परीक्षण (भा.) किया, और इसमें एकोनाटिया (Aconitia) करियारी-दस्तावर, क्षार रस विशिष्ट, कफ नाश का प्रभाव पाया गया । इंडियन मेटीरिया मेडिका करने वाली, कडुई, चरपरी, कषैली, तीखी, उष्ण में इसकी (श्वेतसार) मात्रा ५ से १० ग्रेन तक कृमिघ्न, हलकी, पित्त वर्द्धक और गर्भपात लिखी है। कारक है तथा यह कोढ़, सूजन, बवासीर, व्रण औषध निर्माण-लांगल्यादि गुटिका (ग० और शूल रोग को नष्ट करती है। नि. कुष्ठे), लांगली कल्प रसायन (वा० रसा- हलिनी करवीरश्च कुष्ठदुष्टव्रणापहो । यन प० ३६) लांगल्यादि लोहम्,कनकवती वटी (राज.) इत्यादि। हलिनी अर्थात् करियारी और करवीर-कनेर कलिकारी शोधन-कलिहारी सात उपविर्षों । दोनों कोढ़ और दुष्ट व्रण को नष्ट करते हैं। . में से एक उपविष है। अस्तु, इसे शुद्ध करके ही सुश्रुत ने भी इसे "कुष्टदुष्टतणनाशक" लिखा औषध कार्य में लेना चाहिये। इसके शोधन की है। दे. "सु० सू० ३६ अ० कफशोधन" । विधि यह है-करियारी के छोटे छोटे टुकड़े करके कलिकारी सरा तीक्ष्णा कुष्ठ दुष्ट व्रणापहा । दिन भर गोमूत्र में डालकर धूप में रखने से यह (वि. ति० भा०) शुद्ध हो जाती है। यथा-लांगली शुद्धिमायाति कलिहारी-सारक, तीक्ष्ण और कुष्ठ तथा दिनं गोमूत्र संस्थिता" । अथवा इसके छोटे छोटे दुष्ट व्रण को नष्ट करनेवाली है। टुकड़े कर किंचित् नमक मिले हुये छाछ में छोड़ कलिकारो सरा तीक्ष्णा गर्भशल्यत्रणापहा । देना चाहिये । इस प्रकार ५-६ बार पूर्वोक्त प्रकार शुष्कगर्भ च गर्भं च पातयेल्लेपमात्रतः ।। से रात्रि को तक में भिगोकर दिन में सुखाते रहने (शो०नि०) से यह शुद्ध हो जाती है। पुनः इसे खूब सुखाकर कलिहारी-सरा ( दस्तावर ) और तीचण है मुरक्षित रखें। तथा गर्भ शल्य एवं व्रणनाशक है । गुणधर्म तथा प्रयोग कालिकारीसरातिक्ता कट्वी पवी च पित्तला । आयुर्वेदीय मतानुसार तीक्ष्णोष्णा तुवरीलध्वी कफवात कृमिप्रणुत् ॥ लाङ्गली कटुरुष्णा च कफ वात विनाशनी । वस्तिशूलं विषंचार्शः कुष्ठं कण्डु व्रणंतथा। तिक्ता सारा च श्वयथुर्गर्भ शल्य व्रणापहा ।। 'शोथ शोषं च शूलं च पातयेदिति कीर्तिता ॥ (ध०नि० ४ व०) शुष्क गर्भं च गर्भं च पातयेदिति कीर्तिताः । लागली-करियारी स्वाद में कटु, तिक, उप्ण (नि०र०) वीर्य एवं कफ नाशक है तथा रेचक है और __कलिहारी-सारक, कड़वी, चरपरी, खारी, ... सूजन, गर्भ तथा शल्य एवं ग्रणको नष्ट करती है। पित्तकारी, तीक्ष्ण, गरम, कसेली, तथा .हलकी है
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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