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________________ कलशपोतक २३०१ कलहड़पात . प०-घटः, कटः, निपः, (१०), कलसं (ख), कलनादः, मरालकः (रा.)। "पराकलसिः, कलसी, कलशि, कलशी. कलशं, (अ० | . धूसरैहँसाः कलहंसा इतिस्मृताः ।" हला० । (३) टी.), कुम्भः, करीरः (हे.)। (२) एक पीले रंग का हंस । (४) जलमुर्गा । जल प्रकार का मान जो द्रोण (१६ सेरवा ८ सेर) कुक्कुट । वै० निघः । के बराबर होता था। (३) चोटी । सिरा। पय्यो०-कादम्बः (ख), कलनादः । मराकलशपोतक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] एक सर्प । लकः ( रा०) (भारत, आदि ३६ अ.) (५) सहिजन बीज १८, मिर्च १०, पीपर कलशि, कलशी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (१) २०, अदरख १ पल, गुड़ १ ५०, काँजी ३ प्रस्थ, पिठवन । पृष्ठपर्णी । रस्ना०। (२) गगरी । तथा विड लवण १ ५०, इन सब श्रोषधियों को छोटा कलसा। उक्र परिमाण में लेकर एक निर्मल पात्र में डालकलशी संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] पिठवन । पृष्ठपर्णी कर मंथन दण्ड से मंथन करें । फिर इसमें दाल नि०शि० । रा०नि०। चीनी, इलायची, तेजपत्र नागकेशर इनका चूर्ण कलस-संज्ञा पुं० दे० "कलश"। एक पल परिमाण में डाल दें। . [१] किलस। गुण-इसे उपयुक्त मात्रा में सेवन करने से कलसा.-[सिरि० ] लिसोदा। हजारों प्रकार के ब्यञ्जन पच जाते हैं और अरुचि कलसादलावहज-[सिरि०] वह चूना जो पानी में | नष्ट हो जाती है । कण्ठस्वर हंसवत मनोहर हो न मारा गया हो । विना बुझा चूना । कली। जाताहै। इसीलिए इसका नाम "कलहंस" है। कलसरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० काला+सर वा सिर ] मात्रा-१-२ तो0 तक। एक चिड़िया जिसका सिर काला होता है। कलहंसक-संज्ञा पुं० [सं० वी०] अरोचकाधिकारोक कलसा-संज्ञा पुं॰ [सं० कलस] [स्त्री. अल्पा० कवल मात्र । उक्त कवल के धारण करने से मुख कासी ] दे० "कलश"। वैशद्य और रुचि उत्पन्न होती है। च० द० अरो. कलसाना-[ यू० ] गुले लाला । चि०। कलसि, कलसी-संज्ञा स्त्री० [ सं० स्त्री.] (1) कलह-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) मुण्डी । वा. पृश्निपर्णी । पिठवन । प० मु० । रा. नि. व.४। सू० सुरसादि व०। (२) खड्ग । तलवार । सु० सू० ३८ अ० । सि० यो०। च. द. ज्व० मे०। (३) तलवार की म्यान | खड्गकोष । चि. किरातादि । यक्ष्म० चि. वलाद्यघृत । वा. कलह-[१०] (१) उश्शक । एमोनाइकम् । (२) चि० । श्र.। “कोल सूक्ष्माम्ल कलसी"। (२) दाँतों की मैल जो दाँतों की जड़ों में जम जाती है । गगरी । जलपात्र विशेष । पिलाई लिये एक प्रकार की मैल जो दाँतों की कलसिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (१) पृश्निपर्णी, जड़ों में जमकर पथरा जाती है। दंतमल । हजर। पिठवन । भैष० (२) कल्लस । के। टार्टार Tartar (अं)। कलसिस-संज्ञा [देश॰] सिरिस । कलहत्ती-[क० ] डीकामाली । वंशपत्री । कलसी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] दे॰ “कलसि"। कलहनाशन-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (१) कुरैया । कलसुन्दा-बम्ब० ] कटसरैया । कुटजवृक्ष । (२) पूतीकरंज । नाटा करंज । श०सा० । कलसूस-[Celsus ] एक रोम देशीय हकीम जो कलहप्रिया-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] गोराटिका । वहाँ के हकीमों में पहला था जिसने चिकित्सा सारिका । मैना । रा०नि० व. १६ । शास्त्र का इतिहास लिखा है। कलहड़पात-संज्ञा पुं॰ [हिं० कल-काला+हड़+पात= अलाईदीन-[१] बलचूस। पत्ता] नुसखा सईदी नामक हस्तलिखित पुस्तक कलहंस-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) हंस । (२) के अनुसार एक प्रकार की ललाई लिये काले रंग राजहंस । कादंब हंस । रत्ना० । पर्या-कादम्बः | के पत्ते जो नेपाल और नादौन के पर्वतों से लाये
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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