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________________ कर्णसमीप २२८३ कर्णामृततैल कण समीप-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] कनपटी । शंख- कर्णशकुली । अञ्जलि के द्रव्य ग्रहण को भाँति . देश । रा०नि० व. ११। यह शब्द ग्रहण की योग्यता रखता है इसी से कर्णसूची-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कर्णवेध करने अञ्जलि के साथ उपमा दी गई है। __ की सूची । कान छेदने की सूई । कर्णाञ्जली-संज्ञा स्त्री० [सं० पु.] कर्णशकुनी। कर्ण सूटी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] एक प्रकार का कर्णायवर्ती लाला ग्रंथि-संज्ञा स्त्री० [सं०] कान की ली के नीचे और सामने स्थित एक ग्रन्थि जो ___ कीड़ा। कणस्पोटा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक लता का लाला उत्पन्न करती है। संख्या में ये दो होती हैं, कनपेड़ का रोग इसी ग्रंथि के सूजने से होता है। ___ नाम कनफोड़ा । वि० दे० "कनफोड़ा"। गुद्दः नतियः गुद्दः उजि.नयः, गुद्दतुल उजन कर्णनाव-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कान बहने का अा ( Parotid gland) प्र० शा०। रोग । कर्ण संस्राव । कर्णाटी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] विश्वप्रथि। हंसकण स्रोत-संज्ञा पु. [ सं० ली.] कर्णाञ्जली। पदी का चुप लाल रंग का लजालू । रा०नि० ( External acoustic meatus )| व०५। अ. शा०। कर्णान्तर द्वार-संज्ञा पु[सं०] भीतरी कान कामुंह । कर्ण हीन-संज्ञा पु० [सं० पु.] साँप । सर्प । साँप | (Opening of Internal audiके कान नहीं होते । (भारत, अनु० ६६ अ.) tory maetus.) वि० [सं० वि० ] बहरा । वधिर । पान्तरनाली-संज्ञा स्त्री० सं० स्त्री.] कान के कण क्ष्वेड-संज्ञा पुं॰ [ सं० पु.], कान का एक भीतर की नाली।( Internal acoustic रोग जिसमें पित्त और कफयुक्र वायु कान में घुस meatus) प्र० शा० । जाने से बाँसुरी का सा शब्द सुन पड़ता है। कर्णान्तरिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक पेशी । यथा _ (Stapedius muscle) वायुः पित्तादिभियुक्तो वेणुघोषसमं स्वनम्। | कर्णान्द, कान्द-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कर्णकरोति कण योः दवंडं कण वड़ः स उच्यत॥। पाल । कान की लव । हे. च । मा०नि०। कर्णाभरणक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] अमलतास । सुश्रुत के अनुसार श्रम करने से, धातु क्षय से, पारग्वध का वृक्ष | रा०नि०व०६। रूखे और कसैले भोजन करने से, तथा. शिरो कर्णामयन्न तैल-संज्ञा पुं॰ [सं० क्ली० ] कर्ण रोग विरेचन करने के उपरांत शीतल आहार विहार __ में प्रयुक्त उक्त नाम की तैलौषधि । करने से वायु शब्द के मार्ग में व्याप्त हो जाती है __ योग-कूठ, सोंठ, बच, हींग, सोया, सहिजन और कानों में अत्यन्त वेड़ शब्द करती है। सेंधा नमक और बकरे के मूत्र से पकाया हुआ सु. उ० २० अ०। तैल सब प्रकार के कर्ण रोगों का नाश करता है। नोट-कर्णवेडऔर कर्णनाद के अर्थांतर के र०र० स० २४०। लिए दे० "कर्णनाद" कर्णामृत तैल-संज्ञा पुं॰ [सं० क्ली० ] एक तैलौषधि कर्णाख्य-संज्ञा पु० [सं० पु.] सफ़ेद कटसरैया, | योग यह है हींग, नीम के पत्ते, संखिया और श्वेत झिटी । वै. निघः।। समुद्रफेन इनको बराबर लेकर गोमूत्र और कड़वे कर्णाग्रवर्ती लाला ग्रन्थि-संज्ञा स्त्री० [सं० ] लाला | तेल में यथाविधि तेल सिद्ध करें। स्रावकारी एक ग्रंथि विशेष । (Parotid गुण, प्रयोग-इसे मनुष्य, हाथी और घोड़ों ___gland.)प्र० शा० । ह० श० र० । के कान में भरने से उनके कण रोग और शिर पर कर्णाञ्जलि-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] Fxternal लगाने से शिर के रोग नष्ट होते हैं । यह ब्रह्मदेव acoustic meatus कर्णस्रोत । कान का का कहा हुश्रा योग है। ( यो० त० कर्ण रोक छेद । सिमान (अ०)। अ० शा० । प्र. शा० ।। चि०)
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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