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________________ करेला २५६ करेला बीज अधिक होते है और इसका छिलका करेली के समय खानदेश जिले के लोगों ने करेले जैसा मांसल नहीं होताहै। बंगाल में इसे "काशीर पत्तियाँ चबाकर जीवन धारण किया था। उच्छे" कहते हैं । बन करेला की बेल अत्यन्त पो०- काण्डीरः, काण्डकटुकः, नासावीण एवं करेले की बेलकी अपेक्षा सुदीर्घतर होती संवेदनः, पटुः, उग्रकाण्डः, तोयवल्ली, कारवल्ली; है। वृहनिघण्टु रत्नाकर में जलज कारवेल का सुकाण्डक: (ध० नि०, रा. नि०), करका, उल्लेख दृष्टिगत होता है। कोचबिहार में एक कारवल्ली, चीरिपत्रः, करिल्लका, सूक्ष्मवल्लो, प्रकार का जंगली करेला देखा गया है जो जल वा कण्टफला, पीतपुष्पा, अम्बुवल्लिका (रा०नि० जलासन्न भूमि में न उत्पन्न होने पर भी नितांत ७०) कठिल्लः, कारवेल्लः (भा०) कठिल्लकः, श्राद्र एवं छायान्वित भूमि में अति आनन्द सुषवी (अ.), कारवेल्लकः, राजवल्ली (र.), पूर्वक सुदीर्घ क्षीण प्रतान विस्तार करता है। सुषवी (अ. टी.), ऊद्ध र्वाषितः (त्रि०), वक्तव्य-रॉक्सवर्ग (पृ० ६६६ ) और कठिल्लका, कठिल्लका, कण्डूरः, काण्डकटूकः, डीमक ( २य खण्ड ७६ पृ.) ने सुषवी का सुकाण्डः,-सं० । करेला, करैला, करोला-हिं० । बंगला नाम. शुद्र फल कारबेल्ल अथात् उच्छे करेला-द० । कोरोला, करला, बड़ करेला, उच्छे लिखा है। धन्वन रि ने कारबेल्ल के पर्यायों का गाछ, करला उच्छे, बड़ उच्छे-बं० । किसाउल निर्देश इस प्रकार किया है। बरी-अ० । सीमाहंग-फ्रा० । मोमोर्डिका करंटिया, "काण्डीरः काण्ड कटुको नासासंवेदनः पटुः । Momordica Cbarantia, Linn. उग्रकाण्डस्तोयबल्ली कारवल्ली सुकाण्डकः॥" stol Momordique-charantia-satol Gurkenahnlicher, Balsamapfel राजनिघण्टु-के ववर्थ निर्देश स्थल पर यह जर पावका-चेडि-ता०मद। पावका-काय(कल) उल्लिखित है सेल्लकाकर, करिला, काकड़ा-चेडु, काकर-चेट्ट"सुषवी कटुहुञ्छ्याश्च विश्रुता स्थूलजीरके। ते। कैप्प-वल्लि, पावक्का-चेटि, पाण्टी-पावेल, तिलके च छिन्नरुहा सुषवी केतकी भवेत्" । कप्पक्क, पावल-मल० । हागल-कायि-गिडा, हागल सुतरां निवण्टुद्वय के मत से सुषवी शब्द का -कना० । करोला, कार्ली, कारले, करेटी-मरा० । क्षद्र फल कारवेल्लार्थ दिर्घट है। निघण्टद्वय में करेलो, करेटी, करेला, कडवाबेला-गु० । केहिगाकारवल्ली भेद स्वीकृत नहीं है। किंतु भावप्रकाश बिङ्-बर० । कारला-बम्ब । पावक्का-चेडि-मदन कार लिखते हैं सलरा-उत्० । हागल, कारेलाइ- काकराठी कों० । करेन, शलरा, फालरा-3डि । करविलकारवेल्लं कठिल्लं स्यात् कारवेल्लीततोलघुः। (सिंहली)। ककरल-पासा। करिला-पं०। तदनुसार करेली का नाम कारवेल्ली है। वैद्यक में | ___ करेली-सिंध । कारली-मार० । कहीं भी क्षुद्रफल कारवेल के अर्थ में सुषवी शब्द | परिचय ज्ञापिका संज्ञा-"चिरितपत्रः," 'सूचमवल्ली, का प्रयोग देखने में नहीं पाया है। सुषवी से "पीतपुष्पः" । करेला और करेली दोनों का अर्थ ले सकते हैं। कुष्माण्ड वर्ग जिन्होंने 'किसाउल हिमार' प्रारब्यसंज्ञा का व्यव- (N.O. Cucurbtaceae) हार करेला के अर्थ में किया है। उन्होंने भूल की उत्पत्ति स्थान-समग्र भारतवर्ष विशेषतः है। किसाउल हिमार की गंध बहुत खराब एवं मलय, चीन और अफरीका में भी पाया जाता है। तीव्र होती है और वह इन्द्रायन की अपेक्षा __औषधार्थ व्यवहार-फल, बीज, पत्र एवं प्रवलतर विरेचक है। परन्तु करेले में उन गुण समग्रलता । मात्रा-पत्रस्वरस, १-२ तोले, नहीं होते । उसके विपरीत यह प्रामाशय वलप्रद वमन रेचनार्थ १० तोले पर्यत । दीपन पाचन और संग्राही होता है तथा खाद्य के रासायनिक संघटन-एक जल विलेय तिक काम आता है। सन् १८७७-७८ ई. के दुर्भिक्ष ग्ल्युकोसाइड जो ईथर में अविलेय होता है, एक
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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