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________________ २२१३ कारख निःसत होते हैं। इसे बालों में लगाने से जूयें मष्ट होती हैं । शरीर पर इसका अभ्यंग करने से कण्डवा खाज का निवारण होता है। शिरोऽभ्यंग करने से इंद्रलुप्त वा खालित्य अर्थात् गंज रोग का नाश होता है। इसको जड़ दाँतों के नीचे दाबकर स्त्री-मंग करने से स्तंभन होता है। इसकी गंध, मोतिया और घमेली की गंध की विरोधिनी है और बच को खराब कर देती है। निघंटुसंग्रह के अनुसार इसकी पत्ती और छाल पानी में पीसकर पीने से बवासोर श्राराम होता है। इसकी लकड़ी की दातौन करने से दाँत दृढ़ होते हैं। इसके बीजों का प्रलेप करने से चम्मरोग आराम होते हैं । इसके पत्तोंको पीसकर लेप करनेसे क्षतज कृमि नष्ट होते हैं । दुष्ट व्रण में इसको जड़ का रस लगाने से उपकार होता है। कण्डू एवं त्वचा के कई अन्य रोगों को मिटाने के लिये इसका तेल अतीव गुणकारी होता है । फिरंगीय वा अन्य प्रकार के चट्ठों पर, इसके तेल में नीबू का रस लगाने से बहुत उपकार होता है । करंज और चित्रक के पत्र, कालीमिर्च तथा लघण-इसको पीसकर दही के साथ चटाने से कुष्ठ रोग श्राराम होता है। उदर के कोष्ठों के बढ़ जाने (प्लोह यकृद्विवृद्धि) पर इसकी डाली का रस, जड़ और तेल सेव्य है। इसकी जड़ का रस नारियल का दूध और चूने का पानी-इन्हें एकत्र मिलाकर पिलाने से सजाक आराम होता है। करंज की पत्ती और चीते की पत्ती के रस में कालीमिर्च और नमक की बुकनी का प्रक्षेप देकर पिलाने से • पाचन को निर्बलता, अतिसार और श्राध्मान इनका निवारण होता है । इसके फूलों का काढ़ा पिलाने से बहुमूत्र रोग आराम होता है । इसके फलों को तागे में पिरोकर हार बनाकर धारण कराने से कूकर खाँसी (कुत्ता खाँसी) मिटती है । इसके बीजों ( फलमजा चूर्ण) को शहद के साथ चटाने से भी उक्त लाभ होता है । रनार्श में इसकी कोमल पत्तियोंका प्रलेप लाभकारी होताहै इसकी जड़ की छाल के दूधिया रस की पिचकारी | देने से भगंदर शोघ्र भर जाता है। इसकी जड़ की | छाल के दूधिया रस में, समान भाग तिलों का तेल | और किंचित् नीलाथोथा मिलाकर लगाने से अस्थि ब्रण पूरित होते हैं। मृगी में इसके पत्तों का सेवन अति गुणकारी है। इसकी गिरी के चूर्ण में शक्कर मिलाकर फाँकने से बवासीर श्राराम होता है। किंतु इसके सेवन काल में स्निग्ध पदार्थों का आहार करना चाहिये। इसकी सेवन विधि यह है-प्रथम दिवस इसको गिरी का चूर्ण एक माशा, तीन माशे शहद के साथ चटायें। तदुपरांत एकएक माशा चूर्ण उत्तरोत्तर बढ़ाते हुये ग्यारह दिवस पर्यन्त बढ़ाकर पुनः उसी प्रकार क्रमशः एक एक माशा कम करते हुये तीन माशे मात्रा पर श्रा जाँय । इससे पथरी नष्ट होती है। इसके हरे पत्तों को पीसकर सेंधानमक मिला भक्षण करने से कै बंद होती है । कै बंद करने के लिये इसकी बीज मजा को सेंक और कुचलकर कई बार खिलाना पड़ता है । उष्ण और शोथ निवाकर औषधियों के साथ इसका प्रलेप करने या इसके साथ सेंक करने से वातजशूल मिटता है। टेसू के फूलों के रस में करंज के बीजों का चूर्ण भिगोकर सुखायें । फिर उसको सलाई वा वर्ति प्रस्तुत करलेवें। यह सलाई आँख में फेरने से फूला कट जाता है । अविभेदक में, इसके फूल और गुड़ को पीसकर गरम पानी के साथ नाक में टपकाने से उपकार होता है। इसका रस लगाने से क्षतज कृमि नष्ट होते हैं । इसके एक बीज की गिरी ओर एक रत्ती नोलाथोथा-इन दोनों को पीसकर सरसों के प्रमाण की वटिकायें निर्मित करें। इसमें से एक-एक वटी नित्य प्रति सेवन कराने से पसली का दर्द श्राराम होता है। इसके पत्तों का रस हवेली और तलुओं पर मर्दन करने से बीर्य स्तम्भन होता है । कुसुम के रंग से रंगे हुये लाल कपड़े में एक करंज लाल तागे से बाँधकर गर्भवती स्त्री की कटि में बँधा रखने से गर्भपात नहीं होता। इसकी मींगी को दूध में भिगो-पीसकर मुखमंडल पर मर्दन करने से चेहरे की कांति बढ़ती है। इसकी मींगी को पानी में पीसकर लगाने से कफज ज्वर छूटता है। इसका फल खाने के काम आता है। (अनुभूत चिकित्सा सागर में इसी तरह लिखा है ) ख० अ०। .
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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