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________________ कमल २१६८ कमल पक, कफवातजनक, (पाठांतर से कफवातहर) वल्य, ग्राही तथा रक्तपित्त और दाहनाशक है। । नोट--यद्यपि मखाने का लावा कमलगट्टे के भूनने से भी बन सकता है, तथापि बिहारादि पूर्व देशों में प्रायः यह मखाना के बीजों को भूनकर ही बनाया जाता है, जो कमलगट्टे से सर्वथा भिन्न पदार्थ है। विशेष विवरण हेतु देखो "मखाना"। मृणाल वा कमल की डंडी अविदाहि विसं प्रोक्तं रक्तपित्त प्रसादनम् । विष्टम्भि मधुरं रूक्षं दुर्जरं वातकोपनम् ॥ _ (ध०नि०) कमलनाल-अविदाही, रक्तपित्त प्रसादक, विष्टंभकारक, मधुर, रूत, दुर्जर ( कठिनता से पचनेवाली) और वातप्रकोपक है। मृणालं शिशिरं तिक्तं कषायं पित्तदाहजित् । मूत्रकृच्छ विकारघ्नं रक्तवान्तिहरं परम् ॥ (रा०नि०) कमल की नाल-शीतल, कड़वी, कषेली तथा पित्त, दाह मूत्रकृच्छ , रुधिर विकार और वमन को दूर करनेवाली है। मृणालं शीतलं वृष्यं पित्तदाहासजिद्गुरु । दुर्जरं स्वादुपाकश्च स्तन्यानिल कफप्रदम् ॥ संग्राहि मधुरं रूक्षं शालूकमपि तद्गुणम् । (भा० पू० ख०, ५ पु. वं.) मृणाल ( कमल की डंडी)-शीतल, वृष्य, पित्तनिवारक, दाहहारक, रक्कदोषनाशक, भारी, दुर्जर, पचने में स्वादिष्ट, स्तनों में दूध उत्पन्न करनेवाली, वातकारक, कफजनक, संग्राही, मधुर और रूखी है। शालूक वा पद्मकन्द के गुण भी इसी के समान जानने चाहिये। पद्मकन्दः कषायः स्यात्स्वादे तितोविपाकतः । शीतवीर्योऽस्रपित्तोत्थ रोगभङ्गाय कल्पते ॥ (ध० नि०) , पद्मकन्द-स्वाद में कसेला, विपाक में कड़वा और शीतवीर्य है तथा रक्तपित्त जन्य रोगों के निवारण के लिये इसकी कल्पना होती है। शालूकं कटुविष्टम्भि रूक्ष रुच्यं कफापहम् ।। कषायं कासपित्तघ्नं तृष्णा दाह निवारणम् ।। (रा०नि०व०१०) शालूक (कमलकन्द, भसीडा)-चरपरा विष्टम्भी, रूक्ष, रुचिकारक, कफनाशक, कसेला, खाँसी तथा पित्तनाशक और तृष्णा (प्यास) एवं दाह का निवारण करता है। शालुकः कटुकश्चोक्त: तुवरो मधुरो गुरुः । मलस्तम्भकरो रुच्यो(रूक्षो)नेत्र्यो वृष्यश्चशीतल दुर्जरो ग्राहको रक्तपित्तं दाहं तृषां कफम् ॥ पित्तवातश्च गुल्मश्च पिसं कासं कृमींस्तथा । मुखरोगं रक्तदोषं नाशयेदिति च स्मृतः।। (वै निघ०, नि००) शालूक (कमलकन्द मुरार)-चरपरा, कषेला, मधुर, भारी, मलस्तम्भकारक, रुचिकारक (वा रूक्ष), नेत्र को हितकारी, शीतल, वृष्य, दुर्जर, ग्राही (मलरोधक) तथा रक्तपित्त, दाह, प्यास, कफ, पित्त और वात, गुल्म, पित्त, कास, कृमि, मुखरोग और रक्तविकार इनको नष्ट करता है। शालूकं शीतलं वृष्यं पित्तदाहाननुद् गुरुः । दुर्जरं स्वादुपाकञ्च स्तन्यानिल कफप्रदम् ॥ संग्राहि मधुरं रूक्षं भिस्साण्डमपि तद्गुणम् । (भा० पू० १ भ, शाक-व०) शालूक (कमलकन्द)-शीतल, वृष्य. भारी, दुर्जर, स्वादुपाकी तथा पित्त, दाह एवं रकविकार नाशक, स्तनों में दूध उत्पन्न करनेवाला, वात. कारक, कफजनक, संग्राही, मधुर और रूक्ष है। भिस्साण्ड के भी ये ही गुण हैं। पद्ममधु वा मकरंद अरविन्दाहृतः शीतो मकरन्दोऽतिहणः । त्रिदोष शमनः सर्वनेत्रामय निसूदनः ॥ (प्रा० सं०) कमल का मधु-शीतल, अत्यन्त वृंहण (पुष्टिकारक) त्रिदोषनाशक और सर्व प्रकार के नेत्र रोगों को दूर करनेवाला है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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