SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कमल २१६२ शालूक मानने पर डल्वण के मत के साथ इसका विरोध घटित होता है। चरक के मूत्र विरजनीय वर्ग की व्याख्या में चक्रपाणि लिखते हैं “सौगन्धिकः शुन्दी" (सू० ४०)। सारांश यह कि सौगन्धिक के परिचय के विषय में प्राचार्यगण परस्पर विसम्वादी हैं। रक्तपन की खड़ी का रंग गुलाब के फूल की पखड़ी के रंग का होता है। जिस प्रकार बंगाल में श्वेतपद्म प्रचुर मात्रा में होता है, उसी प्रकार कोच बिहार में रक्तपद्म सुलभ है । शालूक के फूल का संस्कृत नाम कुमुद है। शालूक वा कूई शरद ऋतु में फूलती है। निघण्टुकार सुद्र उत्पलत्रय को इस प्रकार व्याख्या करते हैं-"ईषच्छीतं बिदुः पनमीषन्नील मथोत्पलम् । ईषद्रनं तु नलिनं सुदन्तच्चोत्पलत्रयं" । श्वेत सुदि, नीलसुदि और रक्तशालूक इन तीन प्रकार के फूलों को मुद्रउत्पल कहते हैं । बङ्गाल में रकशालूक को "रककम्बल" कहते हैं । अज्ञ लोग इसे ही रक्कपद्म कहने के भ्रम में पड़े रहते हैं । पद्मिनी के प्रत्यंग विशेष के नाम के विषय में भावप्रकाश लिखते हैं-मूल, भाल, दल, फूल और फल सहित पद्म को पद्मिनी कहते हैं । कुमुदिनी, नलिनी प्रभृति का अर्थ भी इसी प्रकार जानना । पद्म के मूल को शालूक, माल को मृणाल, कोमल नवीन पत्तोंको संवर्तिका केसर को किंजल्क; बीजकोष वा छत्ता को कर्णिका एवं पुष्परस को मकरंद कहते हैं। अमरसिंह के मत से मृणाल पद्ममूल को कहते हैं। विस शब्द मृणाल का पर्यायवाची है । वैद्यक में बहुस्थल पर विस और मृणाल एकत्र उल्लिखित हुए हैं। टीकाकारगण इस प्रकार अर्थ करते हैं"मृणालं स्थूलमृणालं, विसंतु स्वल्प मृणालं" "बिसशब्देन मृणालनिर्गत:प्रतानः" शिवदासः। "मृणालं स्थूलं, बिसं मृणालान्निर्गत प्रतानः" इति वृन्दीकायां श्रीकण्ठः। सुश्रुत भी लिखते हैं-"प्रतानाः पद्मिनी कन्दाद्विसादीनां यथा जलम्" (शा० । अ०) कमल की सामान्य संज्ञाएँ-- पाथोजं, कमलं, नभं, नलिनं, अम्भोज, अंबुभन्म, अम्बुजं; श्रीः, पद्म, अम्बुरुहं, सारसं, पकेजं, सरसीरुहं, कुटपं, पाथोरुहं, पुष्कर, वार्ज, तामरसं . कुशेशयं, कजं, कों, अरविन्दं, शतपत्रं, बिस. कुसुमं, सहस्रपत्रं, महोत्पलं, वारिरह, सरसिजं, सलिलजं, पङ्केरुहं, राजीवं, वेदवह्नि, (रा० नि०) विसप्रसून, (भा०) वारिज, कवारं, श्रास्यपत्रं, वनशोभन, सरोरुह, जलजन्म, जलरुट् , जलरुह, सरोजं; सरोजन्म, सरोरुट पङ्कज, पङ्कजं, अम्भोजं, अम्बूज, श्रीवास, श्रीपर्ण, इन्दिरालयं, जलेजातं, नलं, नालिक, नालीकं, वनजं, अम्लानं, पुष्टकं अब्जः, अम्बुपद्म, सजलं, पङ्कट, पङ्कजन्म, पङ्करह वारिरोह, अम्बुरोह, अम्बपद्मं -सं० । नोट-जलवाचक सब शब्दों में 'ज'; 'जात', 'जन्म' श्रादि प्रत्यय लगाने से कमल-बाची शब्द बनते हैं; जैसे-वारिज, नीरज, कंज आदि । पुरइन, कँवल, कमल, -हिं० | पद्म, कमल, -बं०। कातिलुन्नह ल-श्र० । कमल -बम्ब० । निम्फी निलम्बो Nymphae Nelumbo | निलम्बियम् स्पेसिप्रोसम् Nelumbium Speciosum, Willd, Wight. to 11 इजिप्सियन लोटस Egyptian Lotus, सेक्रेड लोटस Sacred Lotus -अं० ।। Nelumbium Magnifique; aterat Nelumbc. -क्रां० । पैक्टिजेनीलम्बो Pactige Nelumbo -जर० । कालावा, तामर अल्लितामर, एर-तामर-वेरु -ते। अम्बल-ता। विलिय तामरे-का० । न्यडले हुवु, तावरे-कना०। कमल -मरा० । सेवक -गोश्रा । पब्बन -सिंध । तामर, अरविंदम् -मल० । पदम -उड़ि। काँचल -40। पियुम्, नीलम् -सिंहली । कमल के अंग-प्रत्यंगों के नाम पद्मिनी-(कमल का झाड़ वा समग्र क्षुप) पद्मिनी, कुटपिनी, नलिनी, कुमुदती, पलाशिनो, पद्मवती, वनखण्डा, सरोरुहा, ( ध० नि०), पद्मिनी, नलिनी, कुटपिनो, अब्जिनो ( रा०नि०) पद्मिनी, नलिनी, विसिनी, कमलिनी (भा० ) पद्मपण्ड, कुन्दिनी, मृणालिनी, पंकजिनी, सरोजिनी, अरिबिन्दिनी; नालिकिनी, अम्भोजिनी, पुष्करिणी, जम्बालिनी, -सं० । कमल का फाड़ -हिं० । पझेर झाड़ -बं० । The Cntire
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy