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________________ कबाबचीनी २१४८ कबार आर. एन. चोपरा-मसाला (Condi- करती है। इसलिये गायकगण इसका बहुत व्यक ment) रूप से कबाबचीनी का प्रचुरता के हार करते हैं । कबाबचीनी के सेवन की सर्वोत्तम साथ उपयोग होता है, प्रधानतः उष्णकटिबन्ध, विधि इसे दुग्ध में मिलाकर सेवन करना है और स्थित प्रदेशों में। कहते हैं कि प्राचीन भारव्य तैल को लबाब (Mucilage) में मिलाकर । एव पारस्य चिकित्सकों ने इसका जनन-मूत्रेन्द्रिय हकीम लोग इसे वस्ति तथा वृक्तगत सिकता एवं सम्बन्धी रोगों में व्यवहार किया है। पश्चिमात्य अश्मरी निःसारक मानते हैं । शिरःशूल में इसे चिकित्सा में इसका व्यवहार मध्य युग में हुआ। गुलाब जल में पीसकर मस्तक पर लगाते हैं।इसकी क्रियाशीलता इसके फल में स्थित एक (The Indian Materia Medica, प्रकार के अस्थिर तेज पर जो इसमें अधिकाधिक P.262-3) १० से १५ प्रतिशत तक होता है, निर्भर करती कबाबचीनी और धातु-भस्में है। इसका तेल प्रिय एवं विशिष्ट गंधि ओर पारद और वङ्ग भस्म-शुद्ध वंग २ तोले, शुद्ध पारा १ तोला । प्रथम वंग को पिघलाकर हरिताभ बैंगनी रंगका होताहै और जनन-पूत्रेन्द्रिय उसमें पारा मिलायें। फिर इसे लवणाक जल से संबंधिनी व्याधियों जैसे वस्तिप्रदाह, औपसर्गिक खूब खरल करते जाय और उन जल बदलते मेह और चिरकारी पूयमेह (gleet) में यद्यपि जायँ । जब उसको स्याही दूर हो जाय और वह थोड़े पैमाने पर, व्यवहार होता है । -( Indi एक दम सफ़ेद होकर खूब चमकने लगे, तब श्रादी gevous product of India, P. के रस में घोटकर उसकी टिकिया बनालें। इसके 227) बाद कबाबचीनी ३ तो. रेवन्दचीनी ३ तोला, . नादकी-कबाबचीनी प्राध्मान नाशक चोबचीनी ३ तो०, दालचीनी ३ तो०-इनको मसाले के रूप में व्यवहृत होती है । मूत्र-जननेन्द्रिय आदी के रस में पीसकर कल्क प्रस्तुत करें। फिर विषयक व्याधियों जैसे औपसर्गिक मेह, चिरकारी उस टिकिया को इसके भीतर रखकर ऊपर से . पूयमेह (gleet) श्वेत प्रदर तथा स्त्रियों के कपड़ मिट्टी कर पाँच सेर उपलों की भाग दें। नाना प्रकार के अन्य योनिमार्गगत स्रावों में यह उक्त टिकिया भस्म हुई मिलेगी। श्लैष्मिक कला को उत्तेजन प्रदान करती है । जरा मात्रा-एक चावल बराबर उपयुक्र अनुपान के जन्य कफ रोग में श्लेष्मा निःसारक रूप से इसका साथ । व्यवहार होताहै। पोटासियम नाइट्ट और कबाब- | कबाब:-[१०] कबाबचीनी । चीनी का चूर्ण प्रत्येक ५ रत्ती-इनको मिलाकर | कबाबः खंदा-[फा०] तुम्बुरु । क्रागिरः । सेवन करें। यह औपसर्गिक मेह की उत्कृष्ट | कबाबः दहन कुशाद:-[फा०] कबाबा से कुछ बड़ा औषध है। मूत्रमार्गस्थ पुराण क्षत (gleet) एक प्रसिद्ध बीज | तुम्बुरु । तथा चिरकारी औपसर्गिक मेह में १५ रत्ती कबाब- कबाबः दहन शिगाफ्त:-[फा०] तुम्बुरु । चीनी का चूर्ण और २॥ रत्ती फिटकिरी का चूर्ण कबाबः तबा हब्बुल उरूस-[१०] कबाबचीनी । मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करें। श्लेष्मानिः | कबाबःशिकम दरीदः-[फा०] प्रियंगु । अक्लंजः । सारक रूप से ५ रत्ती कबाबचीनी का चूर्ण ३० कवाबः शिगाफ्त:-[फा०] प्रियंगु । बूंद लबाब ( Mucilage) और प्राधी कवाबः सोनी-[१०] कबाबचीनी । छटाँक दारचीनो के अर्क (Cinnamon कबाबीन-[ मुअ० ] कबावचीनी का सत । (Cubewatr) में मिलाकर, दिन में तीन बार सेवन | bin.) करने से कास (Bronchitis) तथा स्वर | कबामत रानः-[?] अनार की वह कलो जिसमें गाँठ यंत्रप्रदाह (Laryngitis) में उपकार होता न पड़ी हो। है । कबाबचीनी स्वर रजुओं में तनाव उत्पन्न कबार-संज्ञा पु० [ देश० ] एक छोटा पेड़ वा करती है और कंडको पिच्छिल श्लेष्मा से शुद्ध माड़ी।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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