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________________ २२४५ कपाल-चीनी जाती है। परन्तु शेख बू प्रखीसीना के कथना- बू अलीसीना के कथनानुसार इसकी अवरोधोद्नुसार यह द्वितीय कक्षा पर्यंत गरम तथा खुश्क. घाटिनी शकि इतनी क्षीणतर है, कि यह दालहै। कोई-कोई कहते हैं कि यह तृतीय कक्षा में चीनी की जगह काम नहीं दे सकती । इसको उष्ण तथा रूप है। मसीह इब्न हुक्म के मत से मुंह में रखने से स्वर शुद्ध होता है। इसके इसमें गर्मी और सर्दी दोनों हैं, पर गर्मी • चाबने से मुख सुवासित हो जाता है और उसकी प्रबलसर है। दुगंधि जाती रहती है। इससे मुखपाक में भी हानिकर्ता-वस्ति और वृक को। उपकार होता है । यह श्रामाशय तथा मसूढ़े को दर्पन-वस्ति के लिये मस्तगी, शिरःशूल में शक्ति प्रदान करती है और कण्ठशूल को लाभकारी सफेद चन्दन और गुलाब तथा वृक्क में काकनज | है । यह दस्तों को रोकती, खफकान को दूर प्रतिनिधि-दालचीनी, इलायची, बालछड़ करती, वृक्त एवं प्लीहा व यकृतगत व्याधियों को और अस्तरून, कण्ठ के लिये अकरकरा और लाभ पहुँचाती, खूब पेशाव लाती, मूत्रमार्गस्थ यकृत के लिये पिप्पली। क्षतों को शुद्ध करती और शय्यामूत्र एवं अवाधमात्रा-वयस्क ४॥ माशे तक, काथ में मूत्र-सलसुलबोल को लाभ पहुँचाती है। उदर्द १ माशे तक । अल्पवयस्क, १ से १॥ मा0 तक। रोग वा पित्ती उछलने पर बारह रत्ती कबाबचीनी इसमें १० वर्ष तक शनि रहती है। पीसकर सिकंजबीन मिलाकर चाटने से उपकार गुण, कर्म, प्रयोग-कबाबचीनी आमाशय होता है। यह पेट के नलों को शनिप्रदान करती बखप्रद अर्थात् दीपन-पाचन, वाह्य तथा वक्षोदर है। यह वायु अनुलोमन करती है। इसे चाबकर अंतरावयवों-अह शा और मसूढ़े को शक्ति प्रदान इंद्री पर लगाने से सहवास में प्रानन्द करती है। यह तारल्यजनक, अवरोधोद्धाटक, वायु प्राप्त होता है और स्त्री को तो इतना अानन्द प्राप्त को अनुलोम करनेवाली, मूत्रल और मूत्रमार्गस्थ होता है, कि सिवाय उस पुरुष के वह अन्य तादि को स्वच्छ करनेवाली है तथा चिरकालानु- किसी भी पुरुष की कामना नहीं करती। दालबन्धी अपस्मार, यकृत एवं प्लीहा के रोग, सूज़ाक चीनी, अकरकरा और कबाबचीनी प्रत्येक १ मा० और शय्यामूत्र (सलसुल्बोल ) आदि रोगों में पीसकर शहद में गोली बनाये और सुखाकर रखलें उपकारी है। -(मु. ना.) स्त्री सहवास से एक घड़ी पूर्व एक गोली मुंह में कबाबचीनी तारल्यजनक, अवरोधोद्धाटक, मुख को रखकर मुख-लाला को इंद्री पर लगाएं और सूखने सुवासित करनेवाली, आमाशय तथा मसूढ़े को पर रति करें । स्त्री को असोम आनन्द प्रायेगा। बलप्रद, अपस्मारहर, मुखपाक विनाशक, खनकान इस योग से भी दम्पति को आनन्द आयेगाको दर करनेवाली, स्वर को साफ करनेवाली कबाबचीनी २ मा०, सोंठ २ मा०, अकरकरा २ वायु को अनुलोम करनेवाली, मूत्रल, अश्मरीभेद मा०, सुभद-नागरमोथा २ मा०, लोबान १ मा०, और अतिसारहर है।--ना० मु. कतीरा १ मा० इनको पीसकर मुंह की लार में यह रूह को लतीफ़ करती है तथा अवरोधो- मिलाकर इंद्री पर लेपन करें । सूजाक में इसका द्घाटन करती, देह के सूक्ष्म स्रोतों का भी उद्घाटन उपयोग उस अवस्था में होता है, जब प्रदाह एवं करती और चिरकारी शिरःशूल को नष्ट करती है। सूजन के सभी लक्षण दूर होजाते हैं। ३॥ मा० कबाबचीनी का चूर्ण ॥ माशे मूली के पानी के | से भामाशा पर्यन्त कबाबचीनी को पीसकर एक साथ निरंतर एक सप्ताह पयंत प्रत्यह फाँकने से प्याले भर ताजा दही में जो बहुत अम्ल न हो, शिरःशूल निवृत्त होता है। इससे कामला रोग- प्रक्षेप देवें, पुनः उक्न प्याले को गाढ़े कपड़े से यान आराम होता है । यह यकृतीय अवरोध का दृढ़तापूर्वक बांधकर ग्रीष्म ऋतु में रात को आकाश उद्घाटन करती है। किंतु पुरानी हो जाने पर के नीचे और शरद-ऋतु में जहाँ चाहे रख दें। अवरोधोद्घाटिनी शक्ति क्षीण हो जाती है । शेख ! प्रातःकाल उसे मिलाकर पीलें। तीन दिन तक
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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