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________________ कबाबचीनी २१४३ कबाबचीनी मिलता है, वास्तव में कबाबचीनी नहीं, प्रत्युत उसका एक भेद है । गुणधर्म में यह कबाबचीनी । ही के समान होता है। फार्माकोग्राफिया नामक प्रन्थ के प्रणेता हमारा ध्यान इस बात की ओर आकृष्ट करते हैं कि यद्यपि प्राचीन भारव्य चिकित्सकों को मूत्र एवं जननावयवों पर होने वाले कबाबचीनी के प्रभावों का ज्ञान था। तथापि यरोपीय चिकित्सकों को ईसवी सन् की अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में उक्त ओषधि का ज्ञान हुधा। रासायनिक संघटन–इसमें एक क्रियाशील सार ३ प्रतिशत, एक अस्थिर तैल १० से १८ प्रतिशत (जो ब्रिटिश फार्माकोपिया में श्राफिशल है) यह कबाबचीनी के बहिरत्वक और श्राभ्यंतरिक बीज में वर्तमान होता है। कुछ स्नेह-मय-कोष पुष्प-गुच्छ, फल-की डंटियों तथा पत्तों में पाये जाते हैं। परंतु गुच्छांश जो कभी-कभी कबाबचीनी में मिले-जुले पाये जाते हैं। उनका विश्लेषण करने पर यह ज्ञात हुआ कि उनमें अस्थिर तैल की कुल मात्रा १७ प्रतिशत थी। एक स्नेहमय राल-Oleo-resin ३ प्रतिशत जिसमें कबाबीन ( Cubebin) एक उदासीन पदार्थ २ प्रतिशत तथा कबाबाम्ल(Cubebic acid) १ प्रतिशत होते हैं । पाइपरीन; एक वसामय पदार्थ वा स्नेह; मोम (Wax); श्वेतसार, स्नेह, निर्यास (gum) और भस्म ५ प्रतिशत (Malates of ma. gnesium and Calcium.), कबाबीन (क्युबेबीन ) रंगविहीन स्फटिक रूप में प्राप्त की जाती है। गंधकाम्ल में डालने से यह गहरा उन्नाबी रंग पैदा करती है। इसमें कोई लाभकारक वा हानिप्रद गुण मालूम नहीं हुश्रा। कबाबाम्ल (क्युबेबिक एसिड) का अनुपात .६६ प्रतिशत होता है । यह सफेद एवं अनिश्चित प्राकृति की डलियों के रूपमें होता है। गंधकाम्ल में मिलाने से गंभीर अरुण वर्ण उत्पन्न करता है । यदि इसमें प्रभावशून्य रालदारं निर्यास मिल जाय, जिसका अनुपात २.५ प्रतिशत होता है। तो प्रस्राव प्रारम्भ हो जाता है । कबावचीनी में अत्यल्प मात्रा में एक प्रकार का कपूर भी पाया जाता है। __ मिश्रण-कभी कभी इसमें मिलावट भी करदी जाती है। प्रायः इसी की जाति के कतिपय अन्य फल जो प्राकृति श्रादि में इसी के तद्वत् होते हैं । इसी में मिभूत कर दिए जाते हैं। संख्या में वे पांच हैं। उनमें से एक कांगो प्रदेश अर्थात् अफ. रीका का फल है. जो अफरीकी कबाबचीनी के नाम से प्रख्यात है। नकली कबाबचीनी साधारण तया असलीसे किंचिन् वृहत्तर एवं रंग और सुगंधि में सर्वथा भिन्न होती है। किसी-किसी की डंडी टेढ़ी होती है और कोई अपेक्षाकृत अधिक कड़वी होती है। औषधार्थ व्यवहार-पूर्णतया विकसित सूखे कच्चेफल जिन्हें कबाबचीनी कहते हैं। और उन फलों द्वारा प्राप्त तैल। मात्रा-चूर्ण ३० से ६० ग्रेन-२ से ४ ग्राम (१५ से ३० रत्ती) एलोपैथी में। आयुर्वेद में २॥ मा० से १० मा० तक। प्रभाव-सुरभित (Aromatic), उत्तेजक, मूत्रल, प्राध्मान हर ओर श्लेष्मानिःसारक। औषध-निर्माण-चूर्ण. मात्रा-५ से १० रत्तो । कल्क; फाण्ट-( Infusion.) . मात्रा-अाधी छु० से १ छ; स्नेह, मात्रा-५ से.. बूद। लुभाब के साथ वा जल मिश्रित शर्बत के साथ । एलोपैथी में इसका टिचर और तेल काम में आता है। और ब्रिटिश फार्माकोपिया में ऑफिशल हैं। टिकच्यरा क्युबेवी-Tinctura cubebe -ले० । टिंक्चर श्राफ क्युबेब्स Tine• ture of cubebs -अं० । कबाबासव, कबाबारिष्ट -सं०,हिं० । सबग़हे कबाबः, तअफ्रीन कबाबः -ति० | यह कुछ कुछ भूरे रंग का तरल है। शक्ति (५ में १)। निर्माण--क्रम—कबाबचीनी का चूर्ण ४ श्राउंस; सुरासार (६०%) आवश्यकतानुसार, चूर्ण को दो फ्लुइड पाउन्स पानी से क्रेदित करके
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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