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________________ कपूर २१२५ उत्तेजक रूप से त्वग्ररोग विशेष पाददारी ( Chilblains) में कनूर का उपयोग होता है। मृदु लोहित्योत्पादक गुणोंके कारण यह श्राम वातिक व्याधियों में प्रयुक्त बहुशः श्रभ्यगौषधों का एक लोकप्रिय उपादान है । अमोनिएटेड कैम्फर लिनिमेंट एक प्रबल काउंटर इरिटेंट है और यह छाला डालने के काम आ सकता है । आन्तरिक प्रयोग मुख-मुख दोर्गन्ध्यनिवारणार्थ प्रायः करित खटिका ( Camphorated Chalk ) दंत मंजन का व्यवहार किया जाता है। या पानमें कपूर डालकर खाते हैं। कोट-भक्षित दंत में कोरल कै फर लगाने से तत्क्षण वेदना शांत होती है। शिशुओं के उदराम्मान एवं उदरशूल के लिए कपूर जल ( Camphor water ) एक घरेलू दवा है । उदराध्मान तथा वयस्क उदर शूल मैं स्प्रिंट श्राफ कैम्फर का व्यवहार करने से बहुत उपकार होता है। ग्रीष्मातिसार ( Summer Diarrhoea ) तथा विषूचिका की तो यह गुणकारी श्रोषध है । अस्तु, उक्त रोग में प्रारम्भ से ही रोगी को दस या पंद्रह मिनट पर ५-६ बूँद स्पिरिटस कैम्फोरी फार्शियार उस समय तक देते रहें। जबतक कि रोग के लक्षण घट न जायें, इसके बाद इसे एक-एक घण्टाके उपरांत दें । नोट - विषूचिका की अंतिम अवस्था में यह उपयोगी सिद्ध नहीं होती । श्वासोच्छवास पथ — कपूर सूँघने या इसके नस्य लेने से प्रतिश्याय ( Coryza ) रोग वा छक्का विशिष्ट चिरकारीनजला (Catarrh) श्रीराम होजाता है । इसके साथ ही ५-५ बूँद स्पिरिट प्रति १५ मिनट पर मुख द्वारा सेवन कराना चाहिये । पैरेगोरिक के रूप में अथवा पारसीक यवानी संयुक्त वटी योग के रूप में चिरकारी कास ( Bronchitis ) में इसका सेवन विशेष गुणकारी होता है । रक्त परिभ्रमण - ( Circulation ) मार्ग से कपूर का अभिशोषण बहुत मंदगति से होता है । श्रतएव रक्तपरिभ्रमणोद्दीपक रूप से कपूरकचरी इसका स्वगधोऽन्तःक्षेप करना चाहिए। श्रौपसर्गिक ज्वरों, फुफ्फुसशोथ ( न्युमोनिया ) जीवाणुमयता (Sept.ccemia) इत्यादि रोगी की अंतिम अवस्था में हृदय को उत्तेजित रखने वा उसे वलप्रदान करने के लिए इसका उपयोग करते हैं । जब सहसा श्वास प्रश्वास तथा हृदय का कार्य बन्द हो जाता है, तब तैल वा ईथर ( १ घन शतांसमीटर में 1⁄2-१ रत्ती कपूर ) विलीन कपूर का सेवन अतिशय गुणकारी होता है । परंतु बहुतों को इसकी उपादेयता में संदेह है । नाड़ी संस्थान - बहुशः श्राक्षेप विशिष्ट रोगों यथा, - वातज हृत्स्पंदन, कंपदात, योषापस्मार इत्यादि में इसके उपयोग से संदेहपूर्ण परिणाम प्राप्त हुए । जननेन्द्रिय ( Genital organs) अधिक परिमाण में सेवन करने से यह कामेच्छा और (Chordee) को रोकता है। सीने पर लगाने वा ११ रती की मात्रा में मुख द्वारा सेवन करने से यह स्तन्यहर प्रभाव करता है । पत्रीलेखन बिषयक संकेत - इसके उपयोग का सर्वोत्कृष्ट प्रकार यह है कि इसे दुग्ध में ( २ ॥ तोले वा १ श्राउंस दुग्ध में 9 ड्राम कपूर ) विलीन करके सेवन करें । इससे इसके अप्रिय स्वाद का भी निवारण हो जाता है। इसके स्पिरिट को चीनी के ऊपर डालकर या इमलशन बनाकर सेवन कर सकते हैं। कपूर चूर्ण को केचट में डालकर वा गोली बनाकर सेवन कर सकते हैं । त्वगधोऽन्तःक्षेप के लिए इसे जैतून तेल ( ५ में (१) वा ईथर में विलीन करके उपयोग कर सकते हैं । मे० मे० घोष | (२) कचूर | कर्चूरकंद । शटी । ( ३ ) कच्ची हलदी । श्रार्द्र हरिद्रा । काँचा हलुद (बं० ) श० च० । कपूर इंग्रिस - [ मल० ] ( Calcii carbonas ) विलायती चूना । गिले क्रीमूलिया । कपूर कचर - [ बम्ब० ] कपूर कंचरी । कपूर कचरी - संज्ञा स्त्री० [हिं० कपूर+कचरी ] एक बेल वा सुप, जिसकी जड़ सुगंधित होती है और दवा के काम में श्राती है। हिमालय में इसे
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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