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________________ कपूर २१२३ कपूर हृदय एवं रक्त-संवहन-त्वचा और श्लैष्मिक ___ कपूर किंचित् कफ निःसारक [ Expectoraकला द्वारा यह रक में अपरिवर्तित रूप में प्रविष्ट nt) है। हो जाता और रक्त के श्वेताणुओं की संख्या वृद्धि वातनाड़ी-संस्थान-यह मस्तिष्क को उत्ते. करता है । हृदयपर कपूरका उत्तेजक प्रभाव कुछतो जित करता है । इसके अत्यधिक मात्रा में सेवन सरल रूप से ओर कुछ प्रामाशय द्वारा होता है, करने से उद्वेग ( Excitement ), शिरोभ्रजिससे नाड़ी परिपूर्ण और बलवतो हो जाती है। मण, विचार-विभ्रम, असंबद्ध गति और कभी कभी परन्तु उसकी गति तोव नहीं होती । वरन् कपूर श्राक्षेप-पे लक्षण उपस्थित होते हैं। तदुपरांत की अधिक मात्रा से नाड़ी क्षीण एवं द्रुतगामिनी निःसंतता एवं घोर निद्रा (Stupor)उपस्थित हो जाती है। यद्यपि रोगी-शय्यागत अनुभव होना संभाव्य होता है । किसो किसो पर इसका (Clinical experience) से यह प्रगट मनोल्लासकारी प्रभाव होता है जिससे उसमें नृत्य होता है कि कपूर रक्रपरिभ्रमणोत्तेजक है, तथापि और हास्य के विचारयुक रुचिका कल्पनायें उत्पन्न इसका शोणित-संक्रमण एवं हृद्त प्रभाव विषयक होती हैं। इसके विपरीत अन्य लोगों में इससे ज्ञान अपूर्ण तथा अनिश्चित है। सोधा शोणित किसी प्रकार का उद्वेग दृष्टिगत नहीं हुआ है। (Circulation) में इसका अंतः क्षेप करने अपितु इससे एक प्रकार का तंद्रा एवं निद्रायुक्त से यह धामनिक चाप को वृद्धि करता है। परन्तु अवसाद को प्रतीत हुई है। इसके सेवन से प्रथम इसका उक प्रभाव अक्षुण्ण वा सार्वदिक नहीं तो उद्दीपक प्रभाव होता है, तदुपरांत परावर्तित होता ओर प्रायशः इससे कुछ भी वृद्धि नहीं गत्यवसादक, फलतः यह प्रार निवारक प्रभाव होती । कतिपय प्रयोगों में इससे हृदयोद्दीप्ति करता है। इससे रक्रनालियों को गति देने वाले प्रत्यक्ष देखी गई है; जब कि अन्यों को कोई परि- ( Vaso-motor) एवं श्वास-प्रश्वास केन्द्र वर्तन दृष्टिगत नहीं हुआ । संभवतः यह हृत्पेशियों उत्तजित होते हैं। को उत्तेजित करता है । इसके प्रयोग से हृदयगत त्वचा-संभवतः प्रामाशयगत क्षोभ के कारण रकनलिकाएँ (Coronary vessels) मुख द्वारा कर सेवन के बाद ही त्वगीय रक परिविस्तृत हो जाते हैं। परन्तु यह निश्चित नहीं वाहनियों का विस्तार उपस्थित होता है। यह है कि ऐसा इसे औषधीय मात्रा में प्रयुक्त करने से पसोने के साथ वहिः शिप्त होता है। प्रस्तु, स्वेभी होता है (कुरानो)। यह बात सुझाई गई दोत्पादक वात-केन्द्रों पर प्रत्यवतया एवं स्वेद है, कि यद्यपि स्वस्थ हृदय पर कपूर का कोई ग्रन्थियों पर स्थानीय प्रभाव करके यह स्वेद की प्रभाव नहीं होता, तथापि असंयत वा निर्बल उत्पत्ति को अभिवड़ित करता है। हृदय को यह सुस्थता प्रदान करता है। यह स्वगीय __ संवर्तन-शरीर रचना संबन्धी संवर्तन क्रिया तप्रणालियों को विस्फारित करता है और सुरासा- पर इसका क्या प्रभाव होता है, यह अभी तक रवत् औषयानुभूति प्रदान करता है। है। संभवतः अज्ञात है; सिवाय इसके कि यह रुग्णावस्था एवं यह त्वगीय रक्तप्रणालियों एवं हार्दीय धमनियों को स्वस्थावस्था में शारीरिक ताप को कम करता है विस्फारित कर, ठीक उसी प्रकार पुनः रक्रवितरण और मूत्र में कैम्फो-ग्लाइक्युरोनिक एसिड' रूप में संपादन करता है, जिस प्रकार कुचलीन Stryc- इसका उत्सर्ग होता है। bnim (दे० "कुचला")। संक्षोभक होने के तापक्रम (Temperatue) स्वस्थाकारण, जब इसका अंतः क्षेप किया जाता है, तब वस्था में शारीरिक ताप-क्रम पर इसका अत्यल्प यह परावर्तित सोषुम्नोद्दीप्ति को उत्तेजित करता प्रभाव होता है, परन्तु मुख्यतः त्वगीय रक्क्रप्रयाहै (Gunn)। (मे० मे० घोष) लीय विस्तारजन्य संतापाभाव के कारण ज्वरावस्था निःश्वासोच्छवास-इससे श्वासोच्छवास में इसका मंद ज्वरहर प्रभाव होता है। किसी भाँति तीव्र हो जाता है और वायु प्रणाली __ जननेन्द्रिय कहते हैं कि साधारण मात्रा में गत द्रव क्षरण अभिवर्द्धित हो जाता है। इस हेतु | देने से यह वृष्य वा वाजीकरण (Aphrods.
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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