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________________ कपूर और एलुमा की मोलियाँ बनाकर बर्तने से सूजाक में जलन एवं खुजली और बारम्बार शिश्नगत उत्तेजना का निवारण होता है। प्रदाई रत्ती की मात्रा में कपूर स्फूर्तिदायक एवं स्वेदजनक है और यह वातनाड़ी विषयक वेदना का निवारण करता है। कपूर का लेप करने से क्षत सुधरने लग जाता है । विशूचिका के प्रारम्भ में इसका उपयोग करने से कै और दस्त रुक जाता है। विषचिका में हर चौथे घंटे ५ रत्ती कपूर देने से उपकार होता है । केले पर कपूर बुरक कर खिलाने से सुख पूर्वक शिशु-प्रसव होता है। इसके निमित्त दस रत्ती कपूर पर्याप्त है । ५ से १० रत्ती तक कपूर स्फूर्ति और उद्वेग पैदा करता है, आक्षेप दूर करता है और स्वेद, निद्रा तथा नामर्दी उत्पन्न करता है । दंत-शूल, चिरकारी गठिया, कष्ट | रज, न्याकुलता, ज्वरोत्तर होनेवाली निर्बलता, । कुकर खाँसी, फेफड़े का सड़ जाना, विचिका, । कंपवायु, सियों के प्रासेब का रोग, मृगी, प्रसूता ज्वर, दिल धड़कना इत्यादि व्याधियों में कपूर का प्रयोग गुणकारी है । सदा कपूर का व्यवहार करने | से शरीर में स्फूर्ति रहती है, इससे कीड़े नष्ट हो जाते हैं, कपूर और मिश्री पीसकर अवचूर्णन करने | से मुखपाक माराम होता है। कपूर और सफेद चंदन घिसकर सूंघने से गरमी का शिरःशूल नष्ट होता है। कीट-भक्षित दाँतों में कपूर धारण करने से दंत-शूल मिटता है। सिरका में कपूर मिलाकर लेप करने से भिड़ और मक्खी का ज़हर उतर जाता है। वट-क्षीर में कपूर को खरल करके आँख में लगाने से फूखा कट जाता है । ___ कपूर की धूनी देने से रक्र-क्षरण निवृत्त | होता है। __एक भाग कपूर और ४ भाग सफेद कत्था इनकी गोलियाँ बनाकर एक रत्ती से चार रत्ती तक खिलाने से पिस ज्वर जाता रहता है। एक माशा कपूर को कई सोला गुलाब के अर्क में घोंटकर पिलाने से संखिया का जहर उतरता है कपूर को सिरके में पीस कर लगाने से बिच्छू का जहर उतरता है । तारपीन तैल में कपूर मिला कर लगाने से वक्षःस्थलस्थ उद्दष्टन दूर होता है। ___ पानीसे परिपूर्ण बोतल में एक तोला कपूर डाल. कर उसमें डाट लगाकर दो घंटे पड़ा रखें। पुनः उसमें से ३ मा० इमली का गूदा और ३ माशा खाँड़ मिलाकर पिलाने से ज्वरोष्मा तथा लू मिटती है।-ख० अ०। ___ तालीफ़ शरीफी-मुफ़रिदात हिंदी श्रादि में जो आयुर्वेद के द्रव्य गुण विषयक ग्रंथों के अरबी वा फारसी अनुवाद ग्रंथ है, कपूर के आयुर्वेदोक्त गुण-प्रयोगों का उल्लेख हुआ है। गायतुल मनहूम नामक कानून की टीका में लिखा है कि कपूर अपने प्रभाव (खासियत) और शीत एवं रूक्षता के कारण शव को सड़ने से बचाता है। इसलिये इसे कफन में रखते हैं। नव्यमत खोरी-वाझरूप से प्रयोग करने पर, कपूर स्वक् लोहित्योत्पादक एवं शोथ तथा अर्बुद का विलीनत्व साधक है । योग्य औषधीय मात्रा में सेवन करने से कपूर हृदय की कार्य-तत्परता, निःश्वासोच्छवास एवं रकसंवहन क्रिया वर्द्धित करता है । कपूर स्त्री-संभोग-स्पृहावर्द्धक है, पर इसके दीर्घकाल के सेवन से जननेन्द्रिय निर्बल होजाती है । यह गर्भाशय को उत्तेजित करता और प्रार्तव रजःस्राव की वृद्धि करता है। त्वचा पर यह वर्द्धित स्वेदस्राव उपस्थित करता है। 'गनोरिया-सूजाक' रोगी के शिश्न की अति यन्त्रणादायक आकर्षणवत् पीड़ा किंवा शिश्न की अधोवक्रता उत्पन्न होने पर बेदनाहर रूप से कपूर व्यवहार किया जाता है। भक्षित कपूर शरीर के भीतर आत्मीकृत होकर पुनः धर्म,मूत्र तथा श्लेष्मा के साथ वहिःतिप्त होता है और प्रायः यह मूत्राल्पता एवं मूत्रणक्लेश उत्पादन करता है। अधिक मात्रा में कपूर सेवन करने से पाकस्थाली तथा श्रान्त्र में प्रदाह उत्पन्न हो जाता है। एवं उत्तेजक (Irritant)विष भक्षण के अपरापर लक्षण प्रकाश पाते हैं । कपूर के मानाधिस्म होनेपर हृदय का अवसाद, शरीरोष्मा की कमी के
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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