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________________ २११८ कपूर इससे संतानोत्पत्ति रुक जाती है । दर्पंन - अंबर, कस्तूरी, जुन्दबेदस्तर, उष्ण एवं सुगन्धित औषध, गुलकन्द, रोग़न सौसन, रोग़न चमेली, तिल तैल, रोग़न बनफ़शा और मसाले का तेल । वस्ति एवं वृक्कगत श्रश्मरी रोग में माजून वर्द वस्ति एवं गुलाब पाक इसका उत्तम दर्पन है । बनफ़शा, नीलोफ़र, केशर और गुलकंद शिरः शूल उत्पन्न होने के रुद्रक हैं । वैद्यों के मत से इसका दर्पन्न पिप्पली, मधु, शुरठी, काली मिर्च, विषखपड़े की जड़ और भृंगराज स्वरप है । प्रतिनिधि - द्विगुण बंशलोचन और समभाग श्वेत चन्दन र करुवा । मात्रा - निस्वाहुल् श्रद्विया के अनुसार ४ | यत्र से ६ रत्ती तक। किसी-किसी के मत से सप्ताह भर में ३॥ माशा तक खा लेना चाहिये । नौ माशा कामावसाय उत्पन्न करता है घोर आमाशय को विकृत करता है । हकीम शरीफ़ खाँ के पिता ने एक तोला कपूर प्लेग के रोगी को खिजवा दिया। इसके सेवन से वह उसी दिन रोग मुक हो गया । वैद्यों के मत से वेदना एवं श्राक्षेप निवृत्यर्थ एवं शक्ति वृद्धि के लिये तथा स्वेद लाने के लिये कपूर की मात्रा 1⁄2 रत्ती से ५ रत्ती तक है। एल्लोपैथीय द्रव्य-गुण विषयक ग्रन्थों में इसकी मात्रा २ से ५ ग्रेन = ( १३ से ३२ ग्राम ) लिखी है। गुण, कर्म, प्रयोग — यह प्रकोप जनित नकसीर का रुद्वक है; क्यों कि अपनी शीतलता एवं रूक्षता के कारण यह तजन्य प्रकोप को शांत करता है ( क्योंकि जोश और उबाल हरारत और रतूत से पैदा होता है ) । यह उग्रशोथ एवं पित्तज शिरःशूल को गुणकारी है और कुलाश्र ( मुखपाक ) को बहुत लाभ पहुँचाता है । क्योंकि यह सरदी पहुँचाता और रूक्षता उत्पन्न करता है । इसके सूँघने से मस्तिष्कगत श्रार्द्रता शुष्कीभूत हो जाती है । जिससे अनिद्रा का प्रादुर्भाव होता है । यह उष्ण प्रकृतिवालों की ज्ञानेन्द्रियों को शक्तिप्रदान करता है । क्यों कि यह उनके मस्तिष्क की समता स्थापित करता है। यह बालों को शीघ्र श्वेत करता है । चाहे इसको मुख द्वारा बिलाया जाय अथवा इसका वाह्यरूप से उपयोग किया 1 कपूर जाय । इसको मुख द्वारा प्रयोजित करने से जो बात श्वेत होते हैं, उसका कारण यह होता है, कि यह प्रकृति को शीतल कर देता है, जिससे श्लेष्मीय ( कफज द्रव) अधिक हो जाती हैं । परन्तु जब बालों पर इसका वाह्यरूपेण उपयोग कियाजाता है, तब उसके श्वेत होने का कारण यह होता है कि यह बालों की ऊष्मा को प्रशमित कर देता है और उनकी तूतों (द्रवों) को विलीन होने से रोक देता है । श्रथवा उसका कारण यह होता है, कि यह बालों को अपने शीत की श्रधिaar से स्थूल (कसी ) कर देता है और उनके घटकों को एकत्रीभूत करता है, जिससे बालों के हार के मार्ग अवरुद्व हो जाते हैं । श्रस्तु उसी प्रकार पलित रोग का प्रादुर्भाव होता है, जिस प्रकार श्रधिक सर्दी पहुँचने के कारण खेती - फ़सल सफेद हो जाती है । यह कामावसाय कारक वा क्लीवताजनक है; क्योंकि यह यीर्य को जमा देता है और वृक्क एवं थंड को शीत पहुँचाता है। इसकी लकड़ी के दरारों से निकला हुआ कपूर अन्य सब प्रकार के कपूरों से अपेक्षाकृत अधिक प्रभावपूर्ण होता है । नफ़ी० । कपूर कैसूरी निद्राजनक, मनोल्लासकारी, और हृदय तथा मस्तिष्क को बलप्रद है एवं अनिद्रा, तृषा, यकृत एवं वृक्क प्रदाह, मूत्र की जलन, गरमी का ज्वर, तपेदिक, फुफ्फुसौष ( ज्ञातुजनव ), व्रण, उरःक्षत, संग्रहणी ( ख़िल्फ़ः ) श्रोर नकसीर इन रोगों को नष्ट करता है । —मु० ना० । यूनानी चिकित्सकों के अनुसार कपूर मनोल्लासकारी है और हृदय तथा उष्ण मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता, तपेदिक एवं दूषित ज्वर- तपेनफ़िनी को निवारण करता है । यह फुफ्फुसोष, श्रतिसार उरःक्षत धौर फुफ्फुसीय तत को धाराम पहुँचाता है । यह पित्तज श्रतिसार को नष्ट करता, प्यास को कम करता और यकृत वृक्क एवं मूत्र के दाह को शमन करता है। 1 थोड़ा सा कपूर काहू के तेल में मिलाकर नाक में टपकाने से मस्तिष्कगत ऊष्मा कम हो जाती है । श्रौर नींद श्रा जाती है। खजाइनुल् बिया के लेखक लिखते हैं, "मैं प्रायः इसको
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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