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________________ कपूर भली भाँति जानते थे । श्रतएव उन्हीं से युरूप निवासी और उत्तर कालीन युनानी चिकित्सकों को इसका ज्ञान हुआ । इसी कारण इसका युनानी नाम 'काफूरा' है, जो इसके अरबी नाम काफूर से व्युत्पन्न है । युरूपवासियों को मध्य काल ( ईसवी सन् की पाँचवी से पंद्रहवीं शताब्दी) में अरब वासियों से प्रथम बोर्नियो कैम्फर का ज्ञान प्राप्त हुआ । 1 २१०७ कपूर के सम्बन्ध में प्राचीन अर्वाचीन मत कपूर भेद-धन्वन्तरीय नामक प्राचीन श्रायुर्वेदी द्रव्यगुण विषयक ग्रन्थ में कपूर का कोई भेद स्वीकार नहीं किया गया है। राजनिघंटुकार ( निघंटु रत्नाकर में ) गुण, स्वाद एवं वीर्य के अनुसार इन चोदह प्रकार के कपूर का नामोल्लेख किया है, यथा पोतास, भीमसेनी शितकर, शंकरावास, प्रांशु, पिञ्ज, दसार, हिमयुता, वालुका, जूटिका, तुषार, हिम, शीतल और पकिका (पञ्चिका पच्चिका ) । उत्पत्तिस्थान — स्थान भेद से पुनः कपूर इन तीन श्र ेणियों में विभक्त किया गया है, यथा— शिर, मध्य थोर तल । स्तम्भ के श्रग्र भाग में होने वाला कपूर शिर संज्ञक, मध्य में मध्यम और पत्तों के तले होनेवाला तल संज्ञक है | प्रकाशवान् स्वच्छ और फूला हुआ - शिर, सामान्य फूला हुआ और स्वच्छ - मध्यम श्रोर तल में होनेवाला चूर्णवत् भारी है । स्तम्भ के गर्भ में स्थित कपूर- उत्तम, स्तम्भ के बाहर होनेवाला - मध्यम तथा निर्मल और कुछ पीलापन युक्र श्रेष्ठ कपूर, मध्य में होनेवाला है, कड़ा, सफेद, रूखा और फूला हुआ वाह्य कपूर कहलाता है । इससे नि राजनिघंटुकार ने 'चीनकपूर' नामक अन्यतम प्रकार के कपूर के गुण पर्याय लिपिवद्ध किये हैं । राजवल्लभ और भावप्रकाश में पक्क और अपक्क भेद पर इन दो प्रकार के कपूरों का उल्लेख देखने में आता है । इसके अतिरिक्त भावप्रकाश में चीनाक कपूर - चिनिया कपूर नामक एक और प्रकार के कपूर का उल्लेख मिलता है । राजनिघंटु में पक्कापक्क कर्पूर का विवरण नहीं पाया जाता । राजनि• टुकार ने चीजकपूर का एक पर्याय 'कृत्रिम ' लिखा है, जिससे यह विदित होता है कि चीन कपूर ही कृत्रिम कपूर है। 1 अनुभूत चिकित्सा - सागर नामक अर्वाचीन ग्रंथ के अनुसार कपूर कई प्रकार का है। उनमें से मुख्य तीन भेद इस प्रकार है । १ – कपूर, ( २ ) चोनिया कपूर श्रोर ( ३ ) भीमसेनी कपूर । श्रांर्यऔषध नामक ग्रंथ में कपूर के दो भेदोंका उल्लेख पाया जाता है। प्रथम वह जो इसके रस को पका कर तैयार किया जाता है । द्वितीय वह जो बिना पकाये इसके वृक्ष में छेवा श्रादि देकर प्राप्त किया जाता है । पकाया हुआ लघु एवं बहुत सस्ता होता है। बाजारों में मिलने वाला साधारण कपूर पकाया हुआ कपूर है। बिना पकाया हुआ बहुत साफ और बढ़िया होता है । इसलिये बहुमूल्य होता है। इसके एक पडका मूल्य लगभग १००) होता है और पक्क एक पोंड ॥ ) में मिलता है । अपक को 'बरास' और 'भोमसेनो' भी कहते हैं । कपूर बोर्नियो टापू से आता है ओर एक पेड़ में अधिक से अधिक दश पोंड तक निकलता है । आईन अकबर नामक फ़ारसी भाषा के ग्रंथ में लिखा है, कि कतिपय ग्रंथों से यह ज्ञात होता है कि जिसे वृक्ष से प्राप्त करते हैं उसे 'भीमसेन' या 'जौदाना' कहते हैं । यूनानियों ने तीन प्रकार के कपूर का उल्लेख किया है, यथा - ( १ ) रियाही । यह रक्ताभ श्वेत मस्तगी के समान होता है और आपसे श्राप वृक्ष के भीतर से उबलकर निकलता । यह उच्चकोटि का एवं सर्व श्रेष्ठ होता है। गरमी लगने या भूप में रखा रहने से यह नरम हो जाता है और प्रति शीघ्र पिघलता है । यह बहुत कम उपलब्ध होता है। हिंदी में इसको भीमसेनी कहते हैं। इसका रियाही नाम इस कारण बड़ा कि अत्यन्त सूक्ष्म होने की वजह से यह वायु - रियाह के साथ उड़ता है। किसी किसी के मत से शाह रियाह को लक्ष्य करके इसका नाम काफूर रियाही रक्खा गया है । रियाह वह पहला व्यक्ति है जिसने इसको सर्व प्रथम पहिचाना या जिसको यह सर्वप्रथम मिला, या जिसके जमाने में यह पाया गया, वह हिंदुस्तान का अधिपति था । (२) क़सूरी - यह क़सूर नामक स्थान से प्राप्त होता है | क़सूर संभवतः फारमूसा द्वीप में अथवा लंका से लगा हुआ एक स्थान का नाम है। यह अत्मव
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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