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________________ कपासे २०१७ घरक के बृहणीय वर्ग सूत्र-स्थान चतुर्थ अध्याय अर्थात् यह कफ, कृमि रोग, उदर रोग और में भारद्वाजी का पाठ पाया है। हृद्रोग का नाश करती है। नव्यमत कृष्णकार्पासिका कट्वी चोष्णा हृद्रोगनाशिनी । कैम्प-बेल-पूयमेह और फिरङ्ग रोग पर- कृमि मलं चामवातं उदरं चार्शक हरेत् ॥ इसकी जड़ और फल काम में आता है । इसकी (भा०) प्रकृति उष्ण और रूक्ष है । पर कोई कोई शीतल अर्थ-यह स्वाद में चरपरी तथा गरम है और और कोई तर बतलाते हैं। रविवार को उखाड़ी हृद्रोग, कृमि, मल, आमवात, उदर, एवं बवासीर हुई जड़ चाबने से बिच्छू का ज़हर उतरता है। इन रोगों को दूर करती है। इसके पत्तों को तिल-तैल में पकाकर लेप करने से नोट-पूर्वोक्त कपासों के अतिरिक्र एक प्रकार बादी का दर्द नष्ट होता है। वैद्यों के अनुसार की कपास और है। जिसे 'पीली कपास" कहते जंगली कपास (रुई) शीतल, मुख के स्वाद को हैं और जिसका गोंद कतीरा" कहलाता है । वि० सुधारनेवाली और क्षत के लिए गुणकारी है। दे. "पीली कपास"। -ख००। | कपास-[बं०] रूई। काली कपास कपास-का-झाड़-[द०] कपास । पर्या-कालाञ्जनी, अञ्जनी, रेचनी, असि कपास कुहिरी- म०] केवाँच । ताजनी, नीलाञ्जनी, कृष्णाभा, काली, कृष्णाञ्जनी कपास-नु-झाड़-[गु०] कपास । (रा०नि०), कृष्ण कार्पासिका कृष्ण कार्पासी, कपास-नु-बीज-[ गु० ] बिनौला । कपास का बीया । कृष्णकार्पास, शिलाअनी, काली, -सं० । काली कपास -हिं० । कालिकाासिकनी ( तुला), | कपास-बीज-संज्ञा पुं० [हिं० कपास+सं० बोज] बिनौला। काल कापास-बं० | Gossypium Nigr कपासी-संज्ञा स्त्री० [देश॰] (1) एक मझोले um-ले० । काली कापशी -मरा० । हिंखणी डील डौल का एक पेड़ जिसे भोटिया बादाम कपाशिया-गु०॥ • कहते हैं। इसका फल खाया जाता है और . (N. O. Malvaceoe ) बादाम के नाम से प्रसिद्ध है। फिंदक (२) यह देव कपास की जाति का ही एक पौधा है एक प्रकार का छोटा झाड़ या वृक्ष जो प्रायः सारे विशेष विवरण के लिए पासान्तर्गत टिप्पणी भारत, मलयद्वीप, जावा और आस्ट्रेलिया में अवलोकन करें। पाया जाता है । यह गरमी और बरसात में फूलता ___ गुणधर्म तथा प्रयोग और जाड़े में फलता है, इसके फलको 'मरोड़फली' कहते हैं। आयुर्वेदीय मतानुसार कपास्या-[ राजपु.] कपास । कालाञ्जनी कटूष्णा च मलामकृमिशोधनी। कपि-संज्ञा पुं॰ [सं० पुं०, स्त्री.] (1) बंदर । अपानावर्त्तशमनी जठरामय हारिणी॥ वानर । रत्ना० । (२) शिलारस नाम की सुगं(राजनिघण्टु ४ वर्ग) धित ओषधि । सिलक । रा०नि०व०१२। अर्थात् काली कपास चरपरी एवं उष्ण है और | (३) अमड़ा। आम्रातक । (४) केवाँच । यह मल ( पाठांतर से अम्ल ) श्राम तथा कृमि शुकशिम्बी। (५) कंजा । करंज विशेष । श. नाशक और अपानवायु के श्रावर्त को शमन करती च०। (६) लालचन्दन । (७) सूअर। वराह । तथा जठर रोगों का नाश करती है। (८) धूप। (6) हाथी। गज। (१०) कृमिश्लेष्मोदरहरा हृद्रोग हारिणी । कोकिल । (११) सूर्य । (१२) आँवला । (द्रव०नि०) श्रामलको । (१३) पिंगलवर्ण। ४३ फा० ___कार्पास वर्ग
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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