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________________ कन्दवल्ली २०७४ कन्दुभेदन कन्दबल्ली-संज्ञा स्त्री० [ सं० स्त्री० ] (१) बाँझ | कन्दामृता-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कन्द गुडूची। खेखसा | बन ककोड़ा । बन्ध्या कर्कोटकी । रा० कन्द गिलोय । रा०नि० व०३ । नि० व० ३ । (२) भूमि कुष्माण्ड। पाताल कन्दाह-संज्ञा पुं० [सं० पु.] सूरन । कन्द सूरन । कोहड़ा, वै० निघ। रा०नि० व०७ । जमीकन्द । कन्द बिष-संज्ञा पुं॰ [सं० पुं०] वह पौधा जिसका कन्दाल-संज्ञा पुं० [सं० पुं०] तिलकन्द । रा० कंद विषैला हो । वह पौधा जिसके कन्द में बिष नि०। हो । सुश्रुत के अनुसार कालकूट, वत्सनाभ, सर्षप कन्दालु-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (१)त्रिपर्णीलता । पालक, कर्दमक, वैराटक, मुस्तक शृंगीबिष, प्रपौं- त्रिपर्णिका । अमलोलवा । (२) कासालु। डरीक, मूलक, हालाहल, महाविष, और कर्कटक कसालू । (३) धरणीकन्द । रा०नि० व०७ । ये तेरह कन्दबिष हैं। इनमें वत्सनाभ चार प्रकार भूमि कुष्माण्ड। का होता है और मुस्तक दो प्रकार का तथा सर्षप कन्दिरी-संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ स्त्री ] लजालू । छुईमुई। छः प्रकार का और शेष सब एक-एक प्रकार के ही लज्जालुका । श० चि०। होते हैं। सु. कल्प० २१०। कन्दी-संज्ञा पुं० [सं० पु. कन्दिन् ] कटुशूरण, कन्दशाक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] वह पौधा जिसका किनकिना ज़मीकंद । सूरन । रा० नि० व०७ । कंद तरकारी के काम आता है । शाक में व्यवहृत कन्दु-संज्ञा पु० [सं० पु स्त्री०। (१) स्वेदनहोनेवाला कन्द समस्त शाक में सूरन श्रेष्ट होता पत्र । तवा | स्वेदनी । अ० हला.। (२)सुरा है।-भा० । दे० "कन्दवर्ग"। बनाने का बरतन । सुराकरण पात्र। (३) कन्द शालिनी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] बाँझ खखसा गेण्डक । गेंडा । (४) करवीर। कनेर । रा० वन्ध्या कर्कोटकी । वै० निघः । नि०। (५) लौहनिर्मित पाकपात्र । लोहे की कन्दशूरगा-संज्ञा पुं० [सं० पु.] सूरन । श्रोल | कड़ाही । (६) भर्जनपान । भूजने का वरतन । कन्दुक-संज्ञा पुं० [सं० की० ] (१) सुपारी। . जमीकंद । रा०नि० व०७। कन्द संज्ञ-संज्ञा पु० [सं० की.] कन्दरोग । योन्यर्श पुगीफल । पूगफल । (२) अंकुर। कोंपल । योनिकंद । त्रिका० । दे० 'कंदरोग"। वै० निघ । (३) गोल तकिया । गल-तकिया । गेंडुत्रा । सज्ञा पु० [सं० पु.] गेंद । गण्डक । कन्द सभव-वि॰ [सं० त्रि० ] कन्द से उत्पन्न कन्दुपक्क-वि० [सं०नि०] बिना पानी लगाये तवे होनेवाला। पर पका हुआ । भुनी हुई चीज (चावल आदि) कन्दसार-संज्ञा पु० [सं० की. ] सूरन आदि कंद जलोपसेक बिना, केवल पात्र में अग्नि से भुना - समूह । हुश्रा (तण्डुलादि बहुरी, भुना हुश्रा दाना )। कन्द सूरण-संज्ञा पु० [सं० पु.] सूरन | नि० शि० स्मृतिकार कहते हैंरा०नि०। कंदुपक्कानि तैलानि पायसं दधि शक्तवः। _ कन्दा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] (१) कन्द गुडूची __ कंद गिलोय । वै० निधः । (२) बन्ध्या कों. द्विजैरेतानि भोज्यानि शूद्रगेहकृतान्यपि ॥" टकी । बांझ खेखसा । रा०नि०नि०शि०। (कूर्मपुराण) संज्ञा पु० दे० "कन्दा"! कन्दुभेदन-संज्ञा पुं० [सं० की.] एक प्रकार की कन्दाढय-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) एक प्रकार | विडिका । के कंद का नाम । धरणी कंद । रा०नि०व०७। वात दूषित होकर उत्पन्न कठिन पीत वर्ण की बै० निध० । (२) भूमि कुष्माण्ड । भूई पीड़िका को कन्दुभेदन कहते हैं । यथाकोहड़ा। 'वातेन कठिनं पीतं जायते कन्दु भेदनम् । कन्दाद्य-संज्ञा पुं० [सं० पु.] धरणी नाम का चिकित्सा-पीपल वृक्ष की छाल जलाकर भस्म करें,पुनः उसमें मक्खन समान भाग मिश्रित
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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