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________________ कनेर २०६३ शेख के लेखानुसार यद्यपि कनेर विष है, पर सुदाब एवं मदिरा के साथ कथित कर पीने से कीट-दष्ट विष प्रभाव दूर हो जाता है । किंतु सत्य यह है कि उक्त उपाय से भी यह निरापद नहीं हैं । इसे अकेला कथित कर तो कदापि न पीना चाहिये । सुदाब, अंजीर और मक्खन या शराब, अंजीर और मक्खन या केवल शराब और सुदाब के साथ भी इसे १२ या १४ माशे से अधिक न पियें। मनुष्य और क्षुद्र चतुष्पद जीवों तथा कुत्तों के लिये कनेर विष है । मदिरा और सुदाव से केवल इतनी बात और होती है कि उसका विष प्रभाव कुछ कम हो जाता है अर्थात् ये उसके दर्पन हैं । इसकी पत्ती से छींकें श्राती हैं । श्रतएव मस्तिष्क की शुद्धि के लिये कतिपय नस्यौषधों में इसका रस डालते हैं | सफेद कनेर के पीले पत्तों को कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनायें। जिस श्रोर सिर में दर्द हो, उस तरफ की नाक में एक-दो चावल भर इस चूर्ण के सुँघने से छींकें श्राकर और नाक टपककर सिर दर्द मिट जाता है। 1 नोट - इसके फूलों के चूर्ण का नस्य पत्तों के चूर्ण की अपेक्षा अधिक वलशाली होता है । इसके फूल मलने से मुखमंडल का रंग निखर ता है। इसके काढ़े से सिर धोने से इंद्रलुप्त वागंज आराम होता है। यही नहीं, प्रत्युत इससे चौपायों की खुजली में भी उपकार होता है । इसका काढ़ा घर में छिड़कने से दीमक और पिस्सू मर जाते हैं । टपकाया हुआ दही, पीला गंधक और कनेर की पत्ती इनको बराबर बराबर लेकर बारीक पीसकर बकरी की चर्बी में मिला मर्दन करने से एक सप्ताह के भीतर तर खुजली नष्ट होती है । यदि सम्यक् संशोधनोपरांत बारह बार इसे श्वित्र पर लगाया जाय, तो अतिशय उपकार हो । सफेद फूलवाले कनेर की जड़ को गोदुग्ध में खूब पकाकर दूध को पृथक् कर लेवें और उसका दही जमा देवें । पुनः उक्त दहीको बिलोकर मक्खन निकालें ओर थोड़ी मात्रा में इसे सेवन करें। यह वाजीकरण और स्तंभक है। घी की मात्रा १-२ कनेर बूँद, यह मालिश श्रोर खाने के काम श्राता है एवं उभय विध उपयोगी है। जब दाँत हिलते हों, तव सफेद कनेर की दातीन बार २ करने से दाँत की जड़ दृढ़ हो जाती है ( और उसमें कीड़े नहीं लगते ) कहते हैं कि - ३॥ माशे की मात्रा में इसकी पत्ती वा फूल पकाकर या कच्चा पीसकर सेवन करने से खुनाक रोग उत्पन्न होजाता है । इससे व्याकुलता, प्रदाह और उदराध्मान होता है। नेत्र लाल होकर उबल आते हैं और अंत में मृत्यु हो जाती है । उक्त लक्षणों के उपस्थित होते ही Sant करायें। ( या मनकारी यन्त्र द्वारा श्रामाशय की शुद्ध करें। यदि विष श्रामाशय से उतर कर प्रांतों पर प्रभाव कर चुका हो तो ) वस्ति देवें, और रोगी को श्राराम से सुलाए । तदुपरांत जब श्रामाशय और श्रांत्र शुद्ध हो जाँय, तव मुर्गे का चिकना शोरबा शीतल करके पिलाएं, छाछ और ईसबगोल का लबाब मीठे बादाम के तेल में कतीरे का लवाब मिलाकर पिलायें । ताज़े खजूर भक्षण करना इसके लिए प्रतीब गुणकारी है 1 इसकी पत्तियों को श्रीटा पीसकर और तेल में मिलाकर लेप करने से संधिगत वेदना शाँत होती है। इसकी पत्तियों के काढ़े से आतशक के क्षत धोने से उपकार होता है । इसकी जड़ शीतल जल में पीसकर, उससे सोर के मस्सों को धोने से मस्से दूर हो जाते । ख० श्र० । कर लघु, उष्ण एवं दृष्टि शक्ति को कम करने वाला है और यह शरीर की जोशीदगी, कोद, ar, विस्फोट और समस्त प्रकार के बिषों को दूर करता है। कहते हैं कि भारतवासियों के गृह मैं इसका फूल रखने से उनमें परस्पर युद्ध का कारण बनता है । वाजिकारक प्रलेपों और तिलानों में इसकी छाल काममें श्राती है । - ता० श० । सफेद कनेर के पके फल के वीज का महीन चूर्ण कर रखें, नीव एवं शक्तिहीन व्यक्ति को प्रथम दिन एक रत्ती की मात्रा में मक्खन में
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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