SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कनीपसजहर कनीपस जहर - [ ८० ] गोरोचन | बादजहर । पाद जहर | कानी । Silicate of Magnesia & Iron) Bezoar Stone. कनीयस - संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] ताँबा । ताम्र | हे० च० । वि० [सं० त्रि० ] ( १ ) अल्प तर । ( २ ) अपेक्षाकृत अल्प वयस्क । श्रधिक कमसिन । कनीयान् -संज्ञा पुं० [सं० पु० ] एक प्रकार की सोमलता । सु० चि० २६ श्र० । दे० " सोम" । कनीयस् - वि० [सं० त्रि० ] [स्त्री० कनीयसी ] (१) छोटा भाई | अनुज । त्रिका० ( २ ) त्यल्प | बहुत छोटा । मे० । २०५८ कनीयः पञ्चमूल - संज्ञा पुं० [सं० की ० ] गोखरू, भटकटैया, बनभंटा, पिठवन और सरिवन इन पाँच श्रौषधियों का समुदाय । ह्रस्व पञ्चमूल । यथा -- "त्रिकण्टक वृहतीद्वय पृथक्पर्णी विदारि गन्धा ।" सु० सू० ३८ श्र० । कनुगचेट्ट ु–[ ते० ] करंज । कंजा । किरमाल । कनुपलचोरक - [ ते० ] ऊख | गन्ना | ईख । कनू - [ फ्रा० ] ( १ ) भांग । ( २ ) संधी | ताड़ी | ( ३ ) पीरनी । कनूचा - संज्ञा पु ं० दे० " कनौचा " । कनूदान, कनूदान:- [ फ्रा० ] बिजया बीज । तुख्म भंग | शहदानज | कनूरक - [पं०, बं०] कंचुरा । कन्ना । कनूरिया - [ उड़ीसा ] सन । श्रम्बारी । (द० ) । मेष्टपात (बं० ) । कनूला - [ ? ] कनूसती - [ तबरिस्तान ] ज़रूर की एक बड़ी जाति । कनेर - संज्ञा पु ं० [सं० कणेर ] एक पेड़ जो ८-६ फुट तक ऊंचा होता है। इसमें शाखाएँ प्रायः जड़ से फूटा करती हैं। डालियों के दोनों श्रीर दो-दो पत्तियाँ एक साथ श्रामने सामने निक ती हैं। पत्तियाँ एक एक बित्ता लंबी और श्राध अंगुल से एक अंगुल तक चौड़ी और नुकीली ऊपर से मसृण और नीचे से खुरदरी होती है और उन पर बारीक बारीक सफेद रगें स्पष्ट दिखाई देती कनेर 1 हैं । ये कड़ी, स्थूल, चिकनी और हरे रंग की होती हैं । डाल में से सफेद दूध निकलता है । फूल के विचार से यह दो प्रकार का है, सफेद फूल का कनेर और लाल फूल का कनेर । दोनों प्रकार के कनेर सदा फूलते रहते हैं और बड़े विषैले होते हैं। सफेद फूल का कनेर अधिक विषैला माना जाता है। फूल खुरदरे होते हैं और उन पर बालों की तरह एक वस्तु जमा हो जाती है फूलों के झड़ जाने पर आठ दस अंगुल लंबी पतली पतली कड़ी फलियाँ लगती हैं । फलियों के पकने पर उनके भीतर से बहुत छोटे छोटे कुछ कुछ काले रंग के बीज मदार की तरह रुई में लगे निकलते हैं । जड़ लंबी, पतली, खारी तथा प्रायः सफ़ेद और रक्ताभ होती है । वाजीकरण एवं स्तम्भनके लिये सफेद फूल वाला लाल फूल वाले की अपेक्षा वलवत्तर सिद्ध होता है । औषधि में उसी का अधिक व्यवहार भी दिखाई देता है । ५ मा० (४ श्राना ) की मात्रा में कनेर की जड़ की छाल का चूर्ण सेवन कराने से प्रति तीव्र विष प्रभाव प्रगट होते देखा गया है। कनेर घोड़ों के लिये बड़ा भयंकर विष है, इसीलिये संस्कृत कोषों में इसके "अश्वघ्न" " हयमारक" तुरंगारि" श्रादि नाम मिलते हैं। श्रश्व शब्द उपलक्षण मात्र है । वह कुत्ता, वि और गाय प्रभृति के लिये भी घातक विष है । निघंटुधों में केवल सफेद फूल वाले कनेर के पर्याय स्वरूप "अश्वघ्न” "हमारक" प्रभृति शब्द पठित होने से लाल कनेर के हय्मारकत्व गुण में संदेह करना उचित नहीं क्यों कि उक्त संदेह के निवारण के लिये ही निघंटुकार पुनः लिखते हैं- 'चतुर्विधोऽयं गुणे तुल्यः” । सफेद गुलाबी और लाल कनेर भारतवर्ष में बगीचों के भीतर लगाये जाते हैं। ये दोनों प्रकार कनेर सर्वत्र प्रसिद्ध हैं । वैद्यक में दो प्रकार के श्रोर कनेर लिखे हैंएक गुलाबी फूल का दूसरा काले फूल का | गुलाबी फूलवाले कनेर को लाल कनेर के अंतगंत ही समझना चाहिये; पर काले रंग का सिवाय राजनिघंटु तथा निघंटुरत्नाकर ग्रंथ के और कहीं देखने या सुनने में नहीं श्राया है । काला कनेर पेक्षाकृत दुर्लभतम है। इसकी पत्ती वभनेटी वा
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy