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________________ कनकाद २०४४ संज्ञा पुं० [ मल० ] बरना | वरुण । संज्ञा पु ं० [ गु० ] कंद | गड्डा ( गु० ) । (Bulb or Tuber) नाद - [ श्रु० ] एक प्रकार की मछली । कनइल - संज्ञा पुं० [देश० ] कनेर । करवीर । कनई -संज्ञा स्त्री० [सं० कांड वा कंदल ] ( १ ) कनखा नई शाखा । कल्ला । कोपल । ( २ ) कीचड़ । गीली मिट्टी । जो यौगिक शब्दों में श्राता है। जैसे - कनपटी | कनकइया - [ कना० ] लताफटकरी | कानफटा । कर्ण कनपेड़ा, कनछेदन | स्फोटा, दे० " कनफोड़ा" । कनक कदली-सज्ञा पुं० [सं० केला । कनक कन्दर्प रस - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] एक वाजीकरण श्रौषधि | शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, सोने की भस्म और लोह भस्म बराबर बराबर लेकर ताँबे के खरल में कज्जली बनायें । फिर इसे सरसों और काले धतूरे के स्वरस में ३-३ दिन तक खरला करें। इसके पश्चात् ३ दिन तक सरसों के तेल में घोट कर धूप में सुखायें। फिर इसे यथाविधि बालुकायंत्र में तब तक पकायें, जब तक कि बालू गरम हो जाय। इसके पश्चात् उसे स्वाङ्ग शीतल हो जाने पर निकाल कर रखें 1 इसे "हेमाङ्ग सुन्दर रस" कहते हैं। इसमें पारे का चौथा भाग स्वर्ण भस्भ तथा कान्त लोह भस्म और वैक्रान्त भस्म मिलालें तो इसका नाम "कनक कदपरस" हो जाता है। गुण तथा उपयोग विधि - इसे १ माशा की मात्रानुसार मिश्री, शहद और घी में मिलाकर कोष्णा गो दुग्ध के साथ १२ दिन तक सेवन करने से धातु क्षीणता दूर होकर अत्यन्त काम की वृद्धि होती है । व्यवहारिक मात्रा १ रती है । रस० र० वाजी० । कनउंगली - संज्ञा स्त्री० [सं० कनीयान, हिं० कानीx उगली ] सबसे छोटी उंगली । कनिष्टिका, कानी उँगली । कान खुजलाने में प्रायः काम श्राने से हाथ की सबसे छोटी उँगली 'कन उँगली” कहलाती है । कनक - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) कसौंजा । कासमर्द्द क्षुप | रा० नि० व० ४ | के० दे० नि० | (२) जयपाल वृक्ष | जमालगोटे का चुप । (३) पलाश (रक्त ) । टेसू का पेड़ । ढाक । च० चि० १ ० । ( ४ ) नाग केसर का पेड़ । (५) चंपे का पेड़ । चम्पक वृक्ष । ( ६ ) काली अगर कृष्णहागुरु वृक्ष | मे० कनिक । ( ७ ) धुस्तूर वृक्ष । धतूरे का पेड़ । यथा - " निशाकनक - कल्का भ्यां । " - प० मु० । (८) एक प्रकार का गुग्गुल कण गुग्गुल । कनक गुग्गुल | रा० नि० वo १२ | ( 8 ) लाख का पेड़ अर्थात् पलास ) लाक्षातरू । श० मा० । १० ) काला धतूरा | कृष्ण धुस्तूर | रा०नि० १० । भैष० वात चि० विषसिंदु तै । ( ११ ) लाल कचनार का पेड़ | कांचनार वृक्ष । ( १२ ) कालीय वृक्ष | कलम्बक | पीला चन्दन | (१३) खजूर । (१४) 1 तून | तूणी । ० कनकचम्पा संज्ञा पुं० [सं० नी० ] ( १ ) सोना । सुवर्ण (२) सुहागा, टङ्कण । ( ३ ) कसौंदी | नि० शि० । संज्ञा पुं० [सं० कणिक गेहूं का आटा ] ( १ ) गेहूं का श्राटा । कनिक । (२) गेहूं । संज्ञा पु ं० [ ० ] बांस । संज्ञा पु ं [ पं० गेहूं । एक प्रकार का कनक गैरिक-संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] खूब लाल गेरु | सोना गेरु । स्वर्ण गैरिक भा० म० ४ भ० विषचि० । कनक चम्पक-संज्ञा पुं० [सं० पु ं०] दे० " कनक चम्पा, कनकचम्पा -संज्ञा पु ं० [सं० कनकचम्पकः ] मध्यम श्राकार का मुकुन्द जातीय एक वृत्त जिसकी छाल खाकी रंग की होती है। इसकी टहनियों और फल के दलों के नीचे की हरी कटोरी रोएँदार होती है । इसके पत्ते बड़े और कुम्हड़े, ननुए श्रादि की तरह के होते हैं । फल इसके अत्यन्त सफेद और मीठी सुगंध के होते हैं। यह दलदलों में प्रायः होता है । बसंत और ग्रीष्म में फूलता है फूल सुगंधिविशिष्ट होता है। इसकी लकड़ी के तख्ते मजबूत और अच्छे होते हैं । पर्या॰—कनकचम्पकः, कर्णिकार, कर्णिकारक -सं० । कनियार, कनकचंपा, कनिधारी, कलियारी,
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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