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________________ कदलो २०२७ कदली - इन दोनों से दूनी शक्कर भी मिला लेवें । इस नुस्खे के कुछ दिन बराबर सेवन करने से प्रदर रोग निश्चय ही आराम हो जाता हैं । अथवा प्रथम दो द्रव्यों में निी और शहद मिलाकर, कुछ दिन ... सेवन करने से प्रमेह या पानी-समान धातु का | गिरना श्राराम हो जाता है। सोरे-शाम, एक-एक पका हुअा केला छः-छः ६. माशे घी के साथ खाने से, पाठ दिन में ही प्रदर - रोग में लाभ जान पड़ता है। इससे यदि किसी | को स प्रतीत हो तो इसमें चार वूद शहद भी मिला ले थे, इससे प्रमेह. प्रदर और धातुरोग दोनों श्राराम हो जाते हैं, केला प्रमेह-नाराक है। केले के पत्ते खूब महीन पीसकर, दूध में खीर बन.कर, दो-तीन दिन खाने से प्रदर रोग में उपकार होता है। केले की पकी फली, विदारीकंद और शतावर | इनको एकत्र मिलाकर, दूध के साथ, सवेरे ही .. पीने से सोम रोग नष्ट हो जाता है। __ केले की पकी फली, पामलों का स्वरस, शहद और मिश्री इन सबको मिलाकर खाने से सोमरोग और मूत्रातिसार अवश्य आराम हो जाते हैं। __ केले की राख और श्योनाक के पत्तों की राख हरताल, नमक और छोकरे के बीज-इनको एकत्र पीसकर लेप करने से बाल गिर जाते हैं। __ केले के पेड़ के भीतरी भाग को छाया में सुखा- | कर, पीस-कूटकर चूर्ण बना लेवें। इसमें से ६ | माशे या १ तोले चूर्ण मिश्री मिलाकर खाने और ऊपर से जल पीने से प्रमेह रोग का नाश होता है। पका केला वातज और पित्तज कास को दूर | करता है। एक केले को गहर में छिलका हटाकर ५ काली मिर्च या १ पीपर खोसकर, रात में, प्रोस की जगह में रख देवें, सवेरे ही छिलका हटाकर • पहले मिर्च या पीपर खा लेवें । तदुपरांत केला । इस उपाय से सूखी और पित्त को खाँसी जाती केला तासोर में शीतल, चिरपाकी, दस्त के रोकने और बाँधनेवाला, कफ-पित्त, रुधिर-विकार, घाव, य रोग और बादी को नारा करता है। प्रतिसार-संग्रहणी में, कच्चे केले को उबालकर छील लेते हैं । पुनः दो-चार लोगों का छोक देकर केले को दही, धनिया हल्दी, सेंधानमक, गोल मिर्च मिलाकर पकाने से अत्यंत स्वादिष्ट तरकारी बन जाती है। यदि खानेवाला रोगी न हो तो - जरा-सो अनवूर की खाई और लाल मिर्च डाल देने से ऐसा स्वादिष्ट साग बनता है कि, खाने वाले उँगलियाँ चाटते हैं। __प्यास के लिये हैजे-विशूचिका में केले के खंभे का जल निकालकर देना अच्छा है। इससे विशूचिका के रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। इसकी मात्रा ४ तोले की है। उन जल के पोने और लगाने से साँप का विष, सखिया-विष, हरतान विष और चूहे का विष नष्ट होता है। केले के पानी से पेशाब साफ होता है। हमारे यहाँ तो सर्प आदि विषैले जानवरों के काटने पर केले का जल देने की पुरानी चाल है। अब तो डाक्टर भी इसे सर्प-विष को उत्तम दवा कहते हैं। इसके सिवा, केले के पानी के पिलाने से सूजन, खाँसी, श्वास, अम्लपित्त, पीलिया, कामला, पित्त विकार, दाह यकृत को सूजन, तिबो का बढ़ना, रक्रपित्त, अतिसार, खून को गरमी, कफ का जमाव, जलोदर, शीतपित्त, फीलपाँव, प्रदररोग, योनिरोग, प्रमेह और उपदंश-गरमी रोग पाराम होते हैं। पारद विष, और वृश्चिक विष प्रभृति में भी यह परमोत्तम है सारांश केले का रस अनेक दुःसाध्य और भयंकर रोगों का निःसंदेह वीजोन्मूलक है। __केले के खम्भ का रस सूजाक रोग को अमूल्य औषधि है । विधि यह है केले के खम्भ वा तने को कूट पीसकर, कपड़े में रखकर उसे निचोड़ लेवें। इसमें से निकला हुआ पानी सा द्रव ही केले का पानी वा रस है। इसको साधारण मात्रा ४ तोले की है । इसे दिन में तीन बार सेवन करना चाहिये । इस रस को मात्रा से पीने से पेशाब खूब पका केला स्वादिष्ट, शीतल वीर्यवद्धंक,पुष्टिकारक, रुचिकारक और म.सवर्द्धक है ।भूख प्यास, | । चक्षुरोंग और प्रमेह का नारा करता है। कच्चा
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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