SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एफिड्रा १७५७ एफिडू scent Sodium-Salicylate.] दे० खंडा, खामा, (कनावार ) । फोक-(सतलज "सोडियम सैलिसिलेट"। की घाटी)। सोम कल्पलता-(बं०)। माहुअंग एफिड़ा-संज्ञा पु. [ ले. Ephedra. ] एक -(चीन)। मारोह-(जापान)। ओषधि जि.सका पौधा छोटी झाड़ी वा सुप को नोटः-(१) उक्त संज्ञाओं का विस्तृत विवतरह होता है। इसकी जड़ में से ही स्तम्भ रण एफिडा के भेदों के साथ दिया जायगा । समूह निकलते हैं, जिनमें से पतली लम्बी शाखाएँ (२) एचीशन ( Aitchison ) के अनुफूटती हैं। ये पत्रशून्य दृग्गोचर होती हैं। सार यद्यपि लाहौल में एपिडा वत्गैरिस के कतिशाखाओं में कतिपय पोर वा ग्रन्थियाँ होती हैं। पयांश का औषधीय उपयोग होता है. तो भी स्तम्भ साधारण पंसिल से अधिक मोटे नहीं भारतवर्ष में प्राचीनकाल में इस प्रोषधि का होते और भूमि की ओर झुके होते हैं। पृथ्वी औषध की कोटि में परिगणन नहीं हुआ । प्राचीन के समीप से कांड से शाखाएँ अधिक फूटती है। आयुर्वेदीय एवं यूनानी ग्रन्थों में एफिड़ा का और झाड़ की तरह फैलती या सोधी ऊपर को उल्लेख नहीं देखा जाता । परन्तु कुछ लोगों का खड़ी रहती है। कांड कुछ कड़ा और बादामी विचार है कि एकिडा की एक जाति जो सम्भवतः रंग का होता है। उस पर कहीं-कहीं सफेदी एफिड़ा इंटरमिडिया (Ephedra Interलिए चौड़े-चौड़े चिह्न पाए जाते हैं। शाखाएँ media ) है और जिसका उल्लेख आगे सरल गम्भीर हरित वर्ण की, पतली, कोमल और आयेगा, वह आयुर्वेदिक सुप्रसिद्ध सोमलता लगभग १२ इंच दीर्घ, रेखायुक्र, तरंगायित और नामक ओषधि है, जिसका स्वरस वैदिक काल में मसृण होती हैं। इसमें ४-५ जोड़ें पाई जाती हैं। भारतीय ऋषिगण पान करते थे। परन्तु इसके समयदि वहाँ ध्यानपूर्वक देखा जाय, तो पत्तों की । र्थन में कोई सर्ववादिसम्मत प्रमाण उपलब्ध नहीं जगह दो सम्मुखवर्ती और तिर्यक आवरण-कोष होते । यही कारण है कि एफिडा को कोई प्राचीन से वर्तमान होते हैं, जिनके शीर्ष सूक्ष्मान एवं वैद्यकीय संज्ञा भी नहीं दी गई है। हाँ! किसी बादामी होते हैं। सिरों की नोक किंचित् पीछे किसी स्थान में इसके कतिपय देशी नाम अवश्य को मुड़ी होती है। शाखागत माध्यमिक पोर्वे मिलते हैं, जिन्हें ऊपर दिया गया है। विदे किंचित् खुरदरे होते हैं । स्तम्भ को चीरकर देखने "अमसानिया"। से कुछ तंतु से दिखाई देते हैं और उसके भीतर ___ एफिड्रा वर्ग गूदा और केन्द्र से त्वचा की अोर मजागत (N. 0. Gnetaceae.) किरण (Medullars-roys) भी फूटती उद्भवस्थान-उत्तर चीन देश, भारतवर्ष के हुई दिखाई देती हैं। ताजी शाखाओं में हलकी अनेक स्थल, तिब्बत से लेकर सिक्कम तक तथा सी सुगंध होती है जो शुष्क होने के उपरांत जाती भूमण्डल के अन्य अनेक स्थल में यह उत्पन्न रहती है। शाखाओं का स्वाद कषाय होता है। होता हैं। शाखाओं पर छोटे-छोटे बेर जैसे लाल फल एफिड़ा की अन्य जातियाँभी लगते हैं जो बहिरावरण (छिलका) युक्त वनस्पतिशास्त्र-वेत्ताओं ने एफिड़ा के बहुसंख्यक और सरसमंजरीवत् होते हैं । बीज का एक पार्श्व भेद स्थिर किए हैं। इस प्रकार के अन्वेषण वा उभय पार्श्व उन्नतोदर वा नतोदर होते हैं। करनेवाले विदेशी हैं। इसलिए एपि.ड्रा के भेदों पतली शाखा में प्रभावात्मक औषधांश अधिक के साथ उन अन्वेषकों के नाम भी लगे होते हैं पाया जाता है। स्तम्भ निरर्थक वा प्रभाव शून्य समझा और अंग्रेज़ी में उसी प्रकार प्रयोग में आते हैं । जाता है । सूखी टहनियों में भी औषधीय प्रभाव हमारे यहाँ उन भेदों की देशी संज्ञाएँ अज्ञात सी चिरकाल तक स्थिर रहता है। हैं। इसलिए भारतवर्ष के प्रत्येक भाग में ये उसी पग्योय-अमसानिया, बुतशुर, चेवा-(पं०)। प्रकार अपरिचित सी हैं, जिस प्रकार आंग्ल वा
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy