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________________ फटेकरां कटैकरा -संज्ञा पुं० [ कलेरा ] कटैया-संज्ञा स्त्री० [सं० कंटक ] भटकटैया । कण्ट कारी । i कटैर-संज्ञा पु ं० [हिं० कटहर ] कटहल | पास । कला-संज्ञा पुं० [?] एक क़ीमती पत्थर । कटोड - [पं० ] मरघलवा ( पं० ) । कटोद - संज्ञा पुं० [सं० पुं०] कटोरा । च० सू० १५ अ० । कटोन (टौ)-कैड-मरवर- [ मल० ] मानकंद | कटोन-थेक मरवर- | अंबरकंद । भुइकाकली ( Eulophia Nuda, Lindl.) कटोर - कटोरक-संज्ञा पुं० [सं० क्री० ] एक प्रकार का मिट्टी का बरतन । कटोरा । श० च० कटोरा - संज्ञा पु ं० [सं० स्त्री० ] धातु का प्याला । बेला । श० च० | कटोरी - संज्ञा स्त्री० [ • कटोरा । बेलिया । प्यालो । कटोरिया । [० कटोरा का श्रल्पा० ] छोटा संज्ञा स्त्री० [ पं०, सिंध ] श्रम्बष्ठा । पाठा । कटोल- कटूल - संज्ञा पुं० [सं० पुं० ] कटुरस । चरपरा रस । चरपराहट । उणा० । वि० [सं० त्रि० ] कटु | कड़वा । संज्ञा पुं० [?] ( १ ) उश्नान । नोट – इलाजुलगुर्बा में उश्नान के विषय में उल्लेख है, कि यह श्रतिशक में उपयोगी है। कटोल को कूट छानकर पहले दिन एक माशा, दूसरे रोज़ दो माशे इसी प्रकार प्रतिदिन एक-एक माशा बढ़ाकर सप्ताह पर्यन्त सेवन करें। इसके उपरांत त्याग दें। इस बीच में एक बार कै और विरेचन होगा। इसके सेवनकाल में केवल अम्ल वस्तुओंके और किसी चीज़का परहेज नहीं । कटोल कूट छानकर पानी में मिलाकर सर्पदष्ट व्यक्ति को पान करावें । इससे कै श्रायेगी और साँप का ज़हर नष्ट होगा । (२) बाँझ ककोड़े की जड़ । दे० "खेखसा" । कटौसी-संज्ञा पु ं०, दे० " कटवाँसी" । कटकटी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कटंकटेरी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] दारूहल्दी । के० दे० नि० । नि० शि० । कटूकला - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] वृहती । बड़ी कटेरी | वन भंटा । २८ फा० कट्टरम् तुलसी कटकाली - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] अल्पायुषी । बजर | | ( Corypha Umbraculifera) कट्की - [ बं०, हिं०] कुटकी । कटुकोमजंग-[ संथाल ] पुदु (हिं०)। Viscumarticulatum, Burm.) कट्ग मुर्गम्- नितूरु - [ ते० ] हीरादोखी । दम्मुल् खवै। कट्ट - [ ता०] [ बहु० कंडलु ] काष्ठ । काठ | लकड़ी | कट्टर जाति - [ ता० ] यबरूज । ( Mandragora officinarum, Linn.) कट्ट इत्तुल्लवा - [ मल० ] वन तुलसी । कट्टक -संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] निर्मली। फल । कट्ट (त) काम्बु - [ ता० ] कत्था | खैर । कट्ट-कस्तूरी - [ मल० लता कस्तूरी । मुश्कदाना । - गिरि- [ ना० ] कीड़ामार । गंधानी । धूम्रपत्रा । Aristolochia bracteata, Reta. कट्टट्टी - [ मल० ] कचनार । कट्ट-बोग्गु ते ] लकड़ी का कोयला | कट्टम - [ ता० ] पटचउली ( बं० ) । कट्ट-मरणक - [aro ] जंगली रेंड | कट्ट-मक्कु -[ ता० ] जंगली रेंड | कट्टर - [ मदरास ) (Dolichos falcatus, Klein. ) कल्ली -[ मदरास ] धनियाँ । धन्याक | कांथमीर । कट्टरतैल-संज्ञा पुं० [सं० नी० ] एक तै ज्वर एवं विदाह में उपयोगी होती है । योग और निर्माण विधि - मूच्छित तिल तैल ४ शराव, कल्क द्रव्य सब मिलाकर १ शराब और तक्र २४ शराव इनसे यथाविधि तैल सिद्ध करें । कल्क द्रव्य ये हैं- सोंचर नमक, सोंठ, कुट, मूर्वा की जड़, लाक्षा, हल्दी, और मजीठ । गुण- इस तेल के लगाने से ज्वर में होने वाला शीत और दाह दूर होता है । वै० निघ० । कट्टर - तुलसी - [ मल० ] रामतुलसी ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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