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________________ एनुग-पल्लेरु-मुल्लु १७५४ पिना एनुग-पल्लेरु-मुल्लु -[ ते० ] बड़ा गोखरू | ख़सक- एनोगीसस-लेटिफोलिया - [ ले० Anogeissus कलाँ । latifolia ] धातकी । धव । धवा । एनोडाइन - [ ० Anodyne ] श्रङ्गमई - प्रशमन । एनुगपिप्पल्लु -[ ० ] गजपिप्पली ! गजपीपल । एनून - संज्ञा पु ं० [० ए नून] किताबुल्फ़लाहत के रचयिता ग़ाफ़िक़ी कहते हैं कि इस शब्द का व्यवहार इन बूटियों के अर्थ में होता है - ( १ ) इससे श्रभिप्राय एक अत्यन्त तिक्र वनस्पति से है, जिसकी शाखें कड़ी और पतली होती हैं । इसकी पत्तियाँ "नास" की पत्तियों की तरह और मज़बूत होती हैं । डालियों का रंग न खुला हुआ लाल होता है, न खुला हुआ काला — दोनों रंगों के बोच होता है । टहनियों में कालापन लिये सुरमई रंग के पुष्प श्राते हैं, जो दुन्नी चवन्नी की तरह गोल होते हैं । यह पर्वतों में उत्पन्न होती है । ( २ ) इस जाति के पत्ते मरुए के पत्तों की तरह सुगंधित और उनसे दीर्घतर होते हैं। शाखें लगभग दो गज के लम्बी, पतली, खड़ी और सफेद होती हैं और तने में से जड़ के समीप से फूटती हैं । टहनियों की छोरों पर पीले रंग के फूल लगते हैं । इसके चर्वण करने से जिह्वा में खिंचावट जान पड़ती है । यह जाति भी पहाड़ों में उत्पन्न होती है और गुणधर्म में प्रथम जाति की अपेक्षा निरापद है । स्पेन देशीय चिकित्सक प्रथम जाति को “सनाथ एल्दी” कहते हैं। अफरीका में एक गिरोह का यह श्रभिमत है कि यही माहीज़हर है । प्रकृति — तृतीय कक्षा के प्रथमांश में उष्ण एवं रूक्ष । हानिकर्त्ता - हल्लासकारक है । दर्पनाशक - उन्नाब और अनीसून । मात्रा- ७ मा० से १० मा० तक । गुण-कर्म-प्रयोग—स्पेननिवासी इसे सनाय | मक्की की जगह प्रयोग करते हैं। क्योंकि कफ, पित्त तथा वायु को यह दस्तों की राह निकालता है। विशेषकर वायु तथा कफ को निकालने के लिये परमोपयोगी है। इसका काथ पीने से कटि, संधि, कुति एवं रींगन वायु का शूल निवृत्त होता है । ख० श्र० । एन्थी फेलाण्ड्रियम् - [ले०Enanthe-phellandrium ] वाटर-फेनेल सीड । वेदनाहर | एनोडाइन- कोलॉइड - [ ० Anodyne-colloid] दे० " कलोडियम्" | एनोडाइन टिंक्चर - [ श्रंo Anodyne tincture] शूलनिवारक टिंक्चर | दे० " पोस्ता " । एनोडाइन- वेसीकैंट - [ श्रं० Anodyne vesi cant] व्यथाहर फोस्काजनक | दे० " कैन्थरिस" | एनोथेरा - बाइएन्निस - [ ले० Enothera bie nnis ] ईवनिंग प्राइमरोज़ | एनोना - [ ? ] रामफल । दे० "अनोना” | एन्दरु- } [ सिं० ] एरंडबीज । रैंडी | एन्दरु-अ एन्दरु- गट्टा - [ सिं०] एरंडवृक्ष । रेंड़ । विंदीदारु । एन्दरु- तेल - [ सिं०] एरण्ड तेल । रेंड़ी का तेल । कैटर आइल | एन्दारु -[ सिं०] एरंडबीज | रेंड़ी | एन्द्रानी - [ सिंध ] बीजबन्द । मचोटी । केसरी | साउर्राई - (०) । हज़ारबन्द क - ( फ्रा० ) । फा० इं० ३ भ० । एन्द्रु अट्ट - [ सिं० ] दे० "एन्दरु श्रट्ट" । एन्युलीन - [ श्रं० Enulin ] इन्युलोन । एन्सल, एनसल - [ [सं०] छोटी इलायची । सूक्ष्मैला । एन्हाइड्रस-बूल-फैट-[ श्रं० Anhydrouswool fat ] दे० "एडेप्स लेनी न्हाईड्रोसस्” । एन्हाइड्रा-फ्लकचुअन्स- [ ले Enhydrafluctuans, Lour.] हिलमोचिका । हेलेञ्चा | हिंचा । हर्कुच । एपिईन -[ श्रं० A piin. ] एक प्रकार का सत्व जो अजमोदे में होता है । एपिएष्ट्रम् - [ ले० A piastrum. ] कबीकज । देव काण्डर । एपिऑल - [ अं० Apiol ] अजमोदे का तेल । दे० " अजमोदा " | एपिथीमून-[ यू० ] अन ्मतीमून । एपिनार्ड - ( कानू ) - [फ्रां० Epinard Cornu] पालक | पालक्य ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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